न कोई ख्याल था,
न उम्मीद किसी के दीदार की,
फिर जागते हुए रात क्यों कटी,
क्यों मैं रात भर दर्द से लिपटी रही ?
मैं जाग रही थी ,या मेरे अंदर कोई ?
रोज हाले -ए -दिल चाँद को सुना ,
थोड़े सुकून से सो जाया करती ,
कल तो चाँद भी फुरकत में न था ा
छत की मुंडेर पर कब से अकेले खड़ी रही ,
न जाने किसका इंतज़ार करती रही ,
न चाँद आया,न और कोई ,
बदन थक कर चूर हो गया ,
पर आँखे अभी थकी नहीं थी ा
बादलों के देह से सहसा एक बिजली उठी ,
मेरे ह्रदय को कई टुकड़ों में बाँट गयी ,
हर टुकड़ों पर अलग -अलग अक्षर ,
और हर अक्षर में एक ही चेहरा ,
या मेरे मौला !ये तूने क्या कर दिया ,
ये किसका चेहरा मेरे आँखों में बो दिया ,
जो न आया था न आएगा ,
उसी पत्थर को मेरा खुदा बना दिया ा