गिरकर संभलना,संभल के तू चलना ,
कभी न रुकना ,बढ़ते ही रहना ,
तो क्या हुआ, गर राह है मुश्किलों का,
जो वक्त की झंझावातों से लड़ ,
अपने हार को स्वीकार कर चलता रहा ,
जीत भी हुआ है, उसी मनुष्य का ा
पथ पर चलते हुए ,
छोड़ जाना तू पाँवों के निशान ,
उसी निशान को पथ रेखा बना ,
फिर कोई परिंदा छू लेगा आसमान ा
खाकर ठोकर पत्थर से ,
बेसक तुम गिर जाओगे ,
हे ,मनुष्य फिर भी बिखरना नहीं ,
पहचान अपनी आत्मशक्ति को ,
फिर से तुम भरना एक उड़ान ा
मजाल किसकी ,कौन तुझे रोक पाएगा ,
स्वयं पर रख तू विशवास प्रगाढ़ ,
तेरा हौसला ही तुझे ,
तेरी मंजिल तक पहुंचाएगा ा
तू ठहरा हुआ पानी नहीं ,
तू नदी की धारा है ,
ये याद रखना, वो राही ,
चीर वक्ष शिलाओं की ,
तुम्हे अपना रास्ता खुद बनाना है
तेरे अंदर ही एक चिंगारी है ,
उसको फूँक लगाओ तो सही ,
ज्वाला बन जब धधक जायेगा,
फिर तेरी मंजिल को पाने से ,
रोक न पायेगा चट्टान कोई ा