क्या लिखा होता है मेरी डायरी में
यही कुछ नज्में कुछ शायरी कुछ गजलें
और कुछ आधी अधूरी सी कविताएँ
और इन्ही कविताओं में कुछ रोता बिलखता ,
कुछ टुटा फूटा कुछ ख्यालों में खोया ,
और कुछ खुद में ही बातें करता हुआ शब्द
कुछ पन्नों पर स्याही पिघला हुआ है
शायद कोई टुटा ख्वाब शब्दों में ढल रहा होगा
तो दर्द बूँद बूँद बनकर आँखों से टपक रहा होगा
एक पन्ना सादा सादा सा है
उसपर उतना कुछ नहीं लिखा है
बस लहू के कुछ छींटें हैं
उस रात खून हुआ था क्या!
कहीं किसी ने कांच से नब्ज तो नहीं काट ली थी
किसी ने खामोशी से बहुत कुछ संजोया
कुछ लब्जों में दबाया ,कुछ दिल में दफ़न किया
और कुछ छलकते हुए जीते जागते
दर्द को डायरी में उड़ेल दिया ा