तेरे आँखों की नूर में,
देखा है कुछ ख़्वाब सा
तेरे धड़कनों की आहट में,
छिपा है कोई अल्फ़ाज़ सा
जी न पाऊँगी तनहा अकेला
गर चला गया मुझे, करके रुसबा
फिर ढूंढ ना पाओगे, मुझे मेरे मितवा
हर नकाब के साये में,
मुझे ही पाओगे, ओ बाबरा
तेरे चेहरे की मासूमियत में,
झलकता है कुछ प्यार सा
तेरे होंठो की मुस्कराहट से,
छलकता है कोई जाम सा ा
अब ख्वाहिश यही है दिल की
बना के मुझको दुलहन
बन जा तू मेरे साजन
मेरे प्यार की खुशबू से,
महका दूँ तेरा घर आँगन
मैं नदी की हूँ मंझधार
बन जा तू मेरा किनारा
तेरे दिल की आह में,
छिपा है कोई दर्द सा
मेरे हाथों की लकीरों में,
तू उभरा है कोई तस्वीर सा ा ा