तप-तप कर यह जल रही है ,
देखो तेरी धरा मर रही है ,
ऐ आसमा मेरा गला सुख रहा है ,
तेरी बेरुखी से मेरा दिल दुःख रहा है ,
मैं प्यासी हूँ , जग प्यासा है ,
देखो इस धरा का कण कण प्यासा है ,
विकल पंछी चोंच खोलकर तुम्हारी तरफ देख रहा है ,
है तुम्ही से मोहब्बत , अपना इश्क़ तो बरसाओ ,
इश्क़ की बारिश से मेरे होंठ को तो भिगाओ ,
यूँ तो बेमौसम भी भिगो जाते हो ,
आज जबकि मेरा दम घूँट रहा है ,
फिर जाना तुम क्यों नहीं आ रहे हो ??
ये आसमां जिद्द छोड़ो अब आ भी जाओ न ,
तुम बेबफा नहीं है मगर अपनी वफ़ा तो निभाओ न ,
अबकी जुदाई लम्बी हुई ,
तुम्हारी चाहत में हरपल आँहें भरते हैं ,
आ जाओ न प्रियवर तुझसे गला मिलकर रोते हैं ❤