मैं अपने कमरे में बैठी हुई ,
खिड़की से बाहर देख रही थी ,
बाहर कितना खालीपन और सन्नाटा था ,
हवाओं में कोई हलचल नहीं ,
न ही किसी पंछी का शोर था ,
आसमा का चंचल नील नयन ,
आज उदास बहुत था ,
मालूम हो रहा था जैसे कोई तूफान आके ,
इस गुलज़ार प्रकृति को उजाड़ गया हो ा
...... अचानक से स्वयं का ख्याल आया ,
गौर से बाहर देखी तो एहसास हुआ ,
ये और कुछ भी नहीं था ,
मेरे ही अंदर का उजड़ा हुआ बाग़ निकला ा