मैं गुड़िया तुम्हारे आँगन की ,
मैं टुकड़ा तुम्हारे कलेजे की ,
पिंजरे में कैद कर मुझको ,
दुनिया की सारी खुशियाँ दी ा
रक्षक बनाकर पायल को ,
मेरे पांव में तुमने बाँधी ,
छन -छन पायल की छनकार ,
मेरे कानों में शोर मचाती रही ा
दहलीज कभी न लांघने दी ,
बंद कर रखे थे द्वार सारे ,
मैं समझूँ ,मैं जानूँ ,
क्या चल रहा है तेरे ,
अंतरमन में द्वंद्व बाबुल ा
एक डर जो तुझको डराए ,
कोई हैवान न मुझको नोच खाये ,
मैं रीत -रिवाजों के बंधन को ,
निकाल पाँव से फेंक न दूँ ा
जब इतनी चिंता थी तुझको ,
क्यों दुल्हन बना विदा किया मुझको ,
मैं बिटिया थी या जिम्मेदारी ?
हाथ झिटक अपना ,
पराये हाथ सौंप आया ा
अब तुम सुनो मेरी व्यथा ,
प्रियतम को मैं तनिक न भाऊँ ,
देके एक बेटी का सुख ,
हाथ छोड़ आधे पथ मेरा ,
करके मेरे जीवन को बेरंग ,
चल दिया अपने प्रियसी के संग ा
कांख दबाये बेटी को ,
मैं पग पथ पर तनहा चल रही ,
दुनिया से अनभिज्ञ मन ,
दर -दर की ठोकरे खा रही ा
कल फूल बना रखा मुझको ,
आज पैरों में कांटें चुभ रहे ,
कल पिंजरे में कैद कर रखा ,
आज दुर्गा हम कैसे बने ??????