कल की रात ,बिना पलक झपके ,
एक ही लय में , एक ही सुर में ,
टकटकी लगाए मैं चाँद को देख रही थी ा
आँखों में न तो उदासी था ,
और न ही पानी ,
बस .. दिल में दर्द का एक डुबान था ा
ऐसा लग रहा था ,
मानो दूर समुंदर में ,
एक तूफान आने वाला है ,
जो अक्सर ख़ामोशी के बाद आता है ा
एक धुआँ आसमान में था ,
हौले -हौले उसमें चाँद छिप रहा था ,
और एक धुआँ मेरे अंदर उठ रहा था ,
जज्जबातों का ,काँपते हुए दर्द का ,
शायद कोई अधूरा ख्वाहिश ,
मद्धम -मद्धम जलकर राख हो रहा था ा