हमनें तो नहीं बनाया...
लोगों ने ही सिखलाया,
डर में भी फर्क बतलाया,
जिसके जी में जो आया,
सबने खौफ का इल्म पढ़ाया...
मजहब, फिर खुदा से डराया,
प्रेम ने लुभाया, तो डराया,
जात-पात, धर्म समझाया,
भलाई की कीमत तुलवाया,
चतुराई का मर्म बतलाया,
जी फिर भी न भर पाया,
जन्नत और दोजख बनाया...
ये क्यूं कर नहीं बनाया,
सारा बिगाड़-तंत्र समझाया,
बस अच्छा इसंान नहीं बनाया...
... वो खौफ का सरमाया,
... हमनें तो नहीं बनाया,
लोगों ने ही सिखलाया...!