तन के चलती है, स्वबोध के अहंकार में,
झुकती नहीं, अकड़न उसकी छूटती नहीं...
उसको झुकाता है कोई, रास्ता दिखाता है,
अच्छाई-सच्चाई से परिचय कराता है,
झुक कर आशीष लेना सिखलाता है,
करुणा के संगीत का सुर-ताल बतलाता है,
कोई है जिसे रुख मोड़ने का हुनर आता है...
यही है वो जिससे खुदा भी डर जाता है,
उसकी बच्चों सी जिद सर-आंखों पर उठाता है,
... तन के चलती है जो अपनी यह गुड़िया,
सत्य झुक कर सिजदे में सलाम करता है...!
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# शब्दनगरी निवासी अपनी छोटी बहन को समर्पित...