सबको पता है, सीधी उंगली से घी नहीं निकलता... इसलिए, उंगली टेढ़ी करने में लोग वक्त नहीं लगाते...! बुद्धिमान-चालाक-सुगढ़ होने में देर ही कितनी लगती है, अमूमन पता भी नहीं चलता उंगली कब टेढ़ी हो गई...
सीधा-सहज-सरल-सुगम होने में वक्त लगता है... सहजता-सरलता को बचा कर, सहेज कर रखने में वक्त लगता है... पर भाई जान, इतना वक्त कहां है किसी के पास...! फिर, चारो ओर शोर भी तो यही है - कोई चालाक हो जाये, उंगली टेढ़ी कर घी निकालने के हुनर की उस्तादी पा जाये तो घर-समाज के लोग कहते हैं- चलो बच्चा अब बालिग हो गया... पूत सपूत होई गवा, अब कोई टेंशन नहीं है, देर-सवेर बड़ा आदमी बन ही जायेगा...!
... याद रहे, यही उंगली जब सीधी हो जाये और उठा कर दिखा दी जाये तो बड़े-बड़ों को पवेलियन का रास्ता देखना पड़ता है।
बात बस इतनी सी ही है - इस मुए घी के लिए क्यों करते हैं उगली को टेढ़ा? बड़े साहब अगर घी ना खाकर कड़ुवा तेल ही खा लें नमक-मिर्च के साथ तो कौन आफत बरपा हुई जाई।
ई उंगली सीधी रहे और इसमें इतनी ताब रहे कि समाज के टेढ़े-बकुओं को उठा कर दिखाई जा सके और उन्हें मोहब्बत से पवेलियन के रास्ता दिखाया जा सके। अपने बच्चे सीधे हैं, बालिग नहीं भी हैं तब भी इंसान तो बनेंगे... इतना भी क्या कम है?
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