तर्जे-बयां, यानि किसी चीज के बारे में कहने-सुनाने का तरीका... इस तर्जे-बयां का हमारी जिंदगी में और उसके खुशनुमेंपन में बेहद संजीदा रोल है... हम हालांकि आज की तेज जिंदगी में इस तर्जे-बयां की खूबसूरती की खुशबू से लगातार महरूम होते जा रहे हैं... चलिए, थोड़ी बातचीत इसी तर्जे-बयां के फरोगे-हुस्न, यानि इसकी खूबसूरती के जलवे की की जाये।
कहते हैं, हर लफ्ज की संजीदगी, अदायगी की मोहताज होती है... शब्दों के कोई खास तयशुदा मायने-मतलब नहीं होते। अल्फाजों की अभिव्यक्ति, यानि तर्जे-बयां पर निर्भर है कि कहने वाला उसके क्या मायने रखना चाहता है। इसलिये ही, कहा गया कि शब्द संभार बोलिए, शब्द के हाथ न पांव, एक शब्द मरहम करे, एक शब्द करे घाव...।
तर्जे-बयां की हुनरबाजी और इसकी काबिलियत को एक उदाहरण से समझा जाये। कहते हैं, एक बेहद उम्दा शायर अपनी प्रेमिका की एक झलक पाने के लिए बेताब रहते थे और वो बामुश्किल उन्हें दिख पाती थीं।
प्रेमिका भी मजबूर ही रही होंगी और उन्हें भी पता था कि उनके आशिक शायर साहेब किस कदर उनके दीदार के लिए तेज धूप व बारिश में भी खुले आकाश तले उनका इंतजार किया करते थे। लोगों के ताने सुनते थे वो अलग...। फिर शायद एक दिन वे मिले और उनकी कुछ बातचीत हुई हो। बाद में शायद शायर साहेब ने इसका जिक्र करते हुए लिखा -
मर चुक कहीं के तूं गमें-हिज्रां से छूट जाये,
कहते तो हैं भले की लेकिन बुरी तरह...।
... यह शेर बेहद प्रसिद्ध गजल, रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह, अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह का हिस्सा है। इस शेर में शायर ने कहां कि उनकी प्रेमिका ने अच्छा ही कहां कि उनकी खातिर जो वे इतना परेशान रहते हैं, इससे बेहतर कि वे मर ही जायें ताकि वे जुदाई के गम से छूट जायें। मगर, शायर साहेब को अफसोस इसी बात का रहा कि इतनी अच्छी बात, जो उनके भले के लिए ही कही गयी, लेकिन यह बेहद बुरी तरह से उनकी प्रेमिका ने उनसे कही...!
तो कुल मिलाकर वही बात ले दे के तर्जे-बयां की ठहरी... बुरी से बुरी बात भी अगर अच्छे तरीके से कही जाये तो बेहद खुशनुमेंपन का सबब होती है मगर अच्छी बात भी बुरी तरीके से कही जाये तो...! आपको यहां याद दिलाता चलूं कि दुनिया में कुछ अच्छा व बुरा नही होता। होता है तो सिर्फ सुरीला या बेसुरा।
अब जरा देखिये कि यह साधारण सी बात भी गजल में कितनी खूबसूरती से कही गयी। यही है तर्जे-बयां के फरोगे-हुस्न की खुशबू का लुत्फ! आज, चारों ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के लिए सब लड़ते-भिड़ते हैं, मगर कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं होता कि तर्जे-बयां के हुनर को निखारा जाना भी इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का एक बेहद जरूरी कर्तव्य है। लफ्जों की लयकारी, शब्दों के आमद की अभिव्यक्ति, अल्फाजों की अदायगी और कहने-सुनाने की गजलकारी का सौन्दर्य क्यों खोते जा रहे हमलोग? सुर के भटकाव की चर्चा क्यूं नहीं होती!
चलिए, इस तर्जे-बयां की काबिलियत को हम सब लोग मिलजुल कर बेहतर करते हैं... खूबसूरत जिंदगी के फरोगे-हुस्न को तर्जे-बयां की खुशगवारी से और भी रोशन करते हैं...
# Last write up: thanks everyone for your affection: My apologies if my words hurt you…