बेहाल हुए फिरते हो,
कि ‘तू’ कहां है,
है भी या नहीं
ये क्यूं नहीं पूछते,
आखिर क्यूं है
होने, न होने का
यह बेवजह सा सवाल,
बदगुमानी का मलाल...
उम्र भर तो मिला नहीं,
‘उस पार’ का भरोसा,
फिर भी क्यूं गया नहीं,
किये जतन क्या-क्या न,
सुराग कोई मिला नहीं,
छोड़ी कोई कसर नहीं,
अपनी तो घटती रही,
उम्रे-आरजू बढ़ती रही
सवाल जस का तस रहा...
गर जो यह हसरत है,
कि मिल जाये ‘वो’
तो ये बैचेनी कैसी,
जाना तो है ‘उस पार’,
आज नहीं, कल सही,
अब नहीं तो तब सही,
होगा तो मिल लेना,
गिले-शिकवे कर लेना,
फिलहाल, ये फिक्र करें,
कुछ करें या ना करें,
‘उसके’ नाम पर तमाम
बेहुदा तमाशा तो न करें...