एक कहानी है, शायद आप सबको पता हो। बादशाह शाहजहां ताजमहल बनवाने को लेकर बेहद इमोशनल थे और उनके पास अथाह पैसा था इसलिए वे चाहते थे कि ताजमहल रातों-रात बन कर तैयार हो जाये। उनका जो मुख्य कारीगर था, उसने ताजमहल की जमीं तैयार कर ली और बादशाह से कहा कि उसे दो दिन के लिए अपने घर जाने की छुट्टी चाहिये। शाहजहां बेहद गुस्सा हुए, बोले, तुम्हें घर जाने की पड़ी है, तुम मेरा दुख नहीं देख पाते। मैं अपनी बीबी की मौत के गम में कैसा दुखी हूं और चाहता हूं कि ताजमहल जल्दी बनें ताकि मेरे दिल को थोड़ा सुकून मिले। और तुम हो कि दो दिन काम रुकवाना चाहते हो। कारीगर जिद पर अड़ा रहा। खैर, बादशाह ने उसे एक दिन की छुट्टी मंजूर की और कहा कि जाओ और एक दिन के बाद आकर तेजी से काम शुरु करो।
वह कारीगर जो एक दिन के लिए गया तो एक महीने लौट कर नहीं आया। बादशाह ने मारे गुस्से के ऐलान करवा दिया कि जो भी उस कारीगर को ढूंढ़ कर लायेगा उसे लाखों का ईनाम मिलेगा। फिर भी उसका दो महीने तक कोई पता नहीं चला। एक दिन वह कारीगर खुद ही दरबार में हाजिर हुआ। शहंशाह ने कहा, तुम्हे तो मौत की सजा मिलनी ही है क्यूं कि तुम्हारी वजह से ताजमहल का काम दो महीने से रुका पड़ा है, मगर, मुगलों की परंपरा है कि आखिरी ख्वाहिश पूरी की जाती है सो बताओ तुम्हारी अखिरी इच्छा क्या है। कारीगर ने कहा, जहांपनाह, मेरी आखिरी तमन्ना यह है कि आप दो मिनट के लिए मेरी बात सुन कर गौर करें। उसने कहा, मैं आपका दुख आपसे बेहतर समझता हूं मगर, मैं यह भी जानता हूं कि ताजमहल यमुना की गीली मिट्टी के उपर बन रहा है और इस पर हजारों टन के भारी संगमरमर का भार पड़ना है। फिर, इसे हजारों सालों तक टिका भी रखना है, इसलिये यह बेहद जरूरी था कि इसके नींव की मिट्टी मजबूत हो और ठोस हो पाये। मैं अगर यहां होता तो आप मुझे इसे दो महीनों तक मजबूत होने देने का मौका नहीं देते और फिर सब कुछ गड़बड़ हो जाता। अब आप मुझे मार भी देगें तो भी मैं बहुत खुश हूं कि मेरी जगह अब जो भी ताजमहल बनायेगा, वह महफूज रहेगा और हजारों सालों तक इसका कोई नुकसान नहीं होगा।
बादशाह को बात समझ में आ गई। उन्होंने उस कारीगर को गले लगाया और ईनाम-इकराम दिया। हम सब जानते हैं ताजमहल क्या और कैसा बना है।
हर इंसान का अपना ताजमहल होता है। हम सब कारीगर भी हैं और बादशाह भी। मगर, नींव मजबूत हो, जमीन पुख्ता हो, हम सबके ताजमहल उम्दा और अपूर्व-अनुपम बनें, यह हम सब की चाहत है। इसलिए कि इंसान के चारों ओर खूबसूरती रहे, यह अच्छा है। मगर, हम सबको यह सुनिश्चित करना है कि अपनी जमीन पुख्ता करें। आपकी मिट्टी और नींव आपको ही मजबूत करनी है। वह कोई और कर नहीं सकता।
किसी भी इंसान के अपने ताजमहल की मिट्टी है उसका अपना व्यक्तित्व और उसकी खुशबू। अच्छा इंसान होना ही मिट्टी या जमीन तैयार करना है। पैसा, ऐशो-आराम, शोहरत धड़ाम से जमीन पर आ गिरती है अगर इसंान के व्यक्तित्व की जमीन बुलंद नहीं होती।
आम तौर पर हम सब ज्यादा तवज्जो बादशाहत की चाहत को दे डालते हैं और अपने अंदर के कारीगर की नहीं सुनते। ताजमहल तो कारीगर ही बनायेगा। चाहतें अगर ताजमहल बनातीं तो बादशाहत किसके हिस्से नहीं आतीं? आज के आधुनिक दौर में बादशाहत करने की जिद लिये बैठे हैं सभी, कारीगरी के हुनर की कोई कद्र नहीं बची। सोचना हमें ही है कि अपने बच्चों की परवरिश में हम सब कैसे यह सुनिश्चित कर पायें कि उन्में बादशाहत और कारीगरी, दोनों ही उम्दा अनुपात में विकसित हों।