किसी ने कहा, थोड़ी सी गंभीरता बेहद खतरनाक होती है... और, ढेर सी गंभीरता तो बिलकुल ही जानलेवा साबित हो सकती है...!
अब लीजिये... आप कहेंगे, पता नहीं क्यूं लोग ऐसे पागल होते हैं कि कुछ भी कह देते हैं। मगर जरा ठहर कर गौर कर के देखें, तो अहसास होता है कि जो पते की बातें होती हैं, वो प्रथम दृष्टया बेहद हास्यास्पद ही लगती हैं मगर उनमें जीवन के सहज-सरल-सुगम यथार्थ का मर्म भरा होता है।
बात सिर्फ इतनी सी है कि हर विचार, हर कर्म व हर व्यवहार की एक खूबसूरत हद होती है। कर्म, विचार व व्यवहार अपने आप में शायद अच्छे या बुरे की परिभाषा में ना भी बांधे जा सकें मगर उनकी सार्थकता व उपयोगिता तभी साबित होती है जब वे एक बेहद खुशनुमेंपन के दायरे व सीमा में होती हैं।
तो, कुल मिलाकर जीवन का मर्म बस इतना ही है कि आपकी दाल में नमक कितना है - कम हुआ तो बेकार, ज्यादा हुआ तो भी बेकार... बस सही नमक ही जीवन की उपलब्धता व सार्थकता है।
बड़ा या महान कौन होता है, यह तो समाज-संस्कृति के बदलते मानकों के अनुसार कोई भी हो जाता है। मगर खूबसूरत और प्यारा वो इंसान होता है जो इस नमक के सही अनुपात को पकड़ पाये। महान लोग तो भरे पड़े हैं चारों ओर, कोई बेहद खूबसूरत-प्यारा इंसान नहीं मिलता...
… मिलता तो न जाने कितने ही सिलसिले, संगीत के रागों की तरह चल निकलते। है ना...!
**