जो न हो, उसे देख पाना,
दोनों ही मर्ज हैं मिजाज के,
दोनों ही पहलू हैं यथार्थ के,
एक को मूर्खता समझते हैं,
दूजे को गर्व से विद्वता कहते हैं,
नफा-नुकसान दोनों में बराबर है,
नाजो-अंदाज में दोनों ही पेशेवर हैं,
जरूरत दोनों की ही है समाज को,
नशा अजीज है दोनों ही मिजाज को
दोनों जो एक-दूजे से उलझे रहते हैं,
आम इंसान बेचारे दो पल जी लेते हैं...