झूठी खबर किसी की उड़ाई हुई सी है...
वजूद अपना खुद ही एक तमाशा है,
और अब नजरे-दुनिया भी तमाशाई है...
जिंदगी के रंगमंच की रवायत ही देखिए,
दीद अंधेरे में, उजाले अदायगी को नसीब है...
जवाब भी ढूंढ़ते है सवालों के उस फकीर से,
जिसकी कैफियत, उसकी दाढ़ी सी ही बेतरतीब है...
उलझे हुए लोग, चैराहों पर दुकान खोल लेतेे हैं,
राहे-मंजिल के पैरोकारी की ये कारोबारी अजीब हैं...
जिंदगी संभली भी नहीं, जुनूने-इश्क ठान लेते हैं,
बेखुदी से सबकी सोहबत-ओ-आसनाई करीब है...
कहने का न हुनर है न सुनने का ही अखलाक,
दाद पर हुकूमत की जिद की ये हालिया तहजीब है...।
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