आंखों देखी ‘ हकीकत ’ का मुगालता,
सबको है, इसलिए झूठ हकीकत है।
जमींदार होने का मिजाज सबमें है।
खुदी की जात से कोई वास्ता ही नहीं,
मसलों पे दखल की जिद मगर सबको है।
अंधेरे में कुछ नहीं बस भूत दिखता है,
टटोलकर खुदा देख पाने की आदत है।
अपना वजूद ही टुकड़ों में तकसीम है,
सच को बांटने की उम्दा वकालत है।
तेेरी कमीज मेरी कमीज से सफेद क्यूं है,
कीचड़ से इसलिए ही यारी सबको है।
सदियों की बदगुमानी की जड़े बहुत गहरी हैं,
किसी कबीर की ‘खुरपी’ को कब इजाजत है।