बंद मुठ्ठी, हथेलियों से बड़ी हुआ चाहत ी हैं....
दुआएं, इबादत-ओ-बंदगी से बड़ी हुआ चाहती हैं,
दरियादिली, शर्ट की पाकिट से बड़ी हुआ चाहती हैं,
मोहब्बत, शब्दों की बाजीगरी से रिहा हुआ चाहती हैं,
बंद मुठ्ठी, हथेलियों से बड़ी हुआ चाहती हैं....
तहजीब, मल्टीप्लेक्स के सामने अपनी दुकां चाहती हैं
आदमीयत, चड्ढी की होर्डिंग से उंचा मकां चाहती हैं
नेटवर्क न भी हो, गुफतगूं वही ठुमरी सा बयां चाहती हैं....
बंद मुठ्ठी, हथेलियों से बड़ी हुआ चाहती हैं....।