एक अदद कानून चाहिए,
पर इस गुजारिश के साथ,
कि शक्ल उसकी जैसी भी हो,
अपाहिज न हो, बहरी न हो...
एक अदद कानून चाहिए,
कि मूर्खताएं कैसी भी हों,
मजबूरी, या फिर जानकर भी,
कोई फायदा न उठाये उसका...
एक अदद कानून चाहिए कि,
बेबसी में गर लड़खड़ाये कोई,
सहारा न भी हो, कोई बात नहीं,
लंगड़ी न मारे, गिराये न कोई...
हां... हां, निरा नादां नहीं हूं मैं,
समझता हूं कि गर जो ये हो जाये,
फिर राजनीति चलेगी किस बूते,
दुकानें बंद, बाजार सभी वीरां होंगे,
समाज तो पल में बेवा हो जाये,
धर्म को तो वनवास लेना होगा...
इसलिए ही तो बस एक आरजू है,
एक अदद कानून चाहिए ताकि,
‘जीयो और जीने दो’ सांस ले सके...
इंसानियत दो कदम ही सही, चल सके...