कोई बात नहीं, होने दें,
चाहतें हया से उठ जायें,
चलिये, होती हैं, होने दें,
मिज़ाज़ को क्या जे़ब आये,
कौन जाने, होती है, होने दें,
चालाकी जवां होके इठलाये,
रवानी है, होता है, बहकने दें,
गुस्सा आग है, सबा भी है ही,
राख सुलगती है, खैर, सुलगने दें,
दीद को अंधेरे से कब ईश्क रहा,
उजालों को आदतन भ्रम फैलाने दें...
मगर, बाखुदा, इंसानियत बीमार है,
थोड़ा ही सही, चैनो-आराम रहने दें,
भाईचारा बेनूर है, बेवा है बेचारी,
इस अबला को पर्दानशीं ही रहने दें,
मोहब्बत जी चुकी है उम्रे-रवां अपना,
उसको आखिरी हिचकी नसीब होने दें,
रिश्तों के कब्र की मिट्टी अभी ताजा है,
गर हो सके, 'जश्ने-आजादी' मुल्तवी कर दें...!