लगभग पांच छह वर्ष पहले एक अधेड़ आयु के एक नागा साधु मेरे द्वार पर आये। मैं उस समय अकेला टीवी पर अर्ध कुंभ हरिद्वार मेले का दृश्य देख रहा था। साधु की आवाज़ सुनकर कुछ दक्षिणा देकर लौटने लगा तो वह साधू बोला कि यदि मैं उसे आज्ञा दूं तो वह टीवी पर मेले का दृश्य देख ले। बाहर से अन्दर टीवी का दृश्य दिखाई दे रहा था। मैंने कहा... हां देख लीजिये और उसे सोफे पर बैठने को कहा।
वह फर्श पर बिछी कालीन पर बैठ गया लगभग आधा घन्टे वह हरिद्वार गंगा स्नान पर्व का आनन्द लेता रहा। मैंने उसे चाय पिलाई और सोफे पर बैठने का आग्रह किया। बैठकर वह बोला कि वह मुझे कुछ देना चाहता है।
मैंने कहा आप क्या देंगे... मैं आपको कुछ दूंगा और मैंने एक नरवदेश्वर (छोटा सा शिवलिंग) से लाकर भेंट कर कहा कि आप इसे स्वीकार करें आप शिव भक्त हैं।
मैं इसकी सेवा पूजा इत्यादि नहीं कर पा रहा हूं।
उसने स्वीकार कर लिया और विदा हो गया। उसने अपने गुरु का आश्रम हरिद्वार में बताया।
तीन चार वर्ष बाद फिर एक साधु आया। कुछ दक्षिणा देकर मैं द्वार बन्द करने लगा तो वह बोला मैं कुछ बात करना चाहता हूं। मैंने नकारात्मक लहजे में बोलकर द्वार बंद करने लगा। वह बोला मुझे कुछ और लेना नहीं है, मैं कुछ बताना चाहता हूं।
मैंने कहा मुझे कोई बात नहीं करनी। वह जोर देकर बोला आप ने पहचाना नहीं, कुछ वर्ष पूर्व आपके यहां बैठकर मैंने टीवी पर अर्धकुंभ का मेला देखा था और चाय पी थी। एक शिव लिंग आपने मुझे दिया था... मैंने रूक कर याद किया कि हां यह वहीं साधु है। अन्दर बुलाकर बैठाया... पूछा बताओ क्या बताना चाहते हो। उसने कहा जो शिवलिंग मैंने दिया था वह उसने हरिद्वार के अपने आश्रम में एक कमरे में स्थापित कर दिया। उस पर शिव रात्रि के अवसर पर मनों दूध भक्त चढ़ाते है और उसकी दैनिक पूजा अर्चना होती है।
मैंने उस पर विश्वास न करते हुये कहा कि वह छोटा सा शिवलिंग किसी बड़े शिवलिंग के साथ स्थापित किया होगा, मुझे तो यह झूठ लगा रहा है, क्या सब सच है।
वह बोला इसीलिये तो मैं आप को बताने आया। यह आश्चर्य चकित करने वाली घटना सत्य है। आश्रम के उस कमरे में केवल वही चमत्कारी मेरा दिया हुआ छोटा शिवलिंग है। भक्तों की कामना पूरी होती है, जैसा उस साधु ने बताया।
मैंने अपना मन एकाग्र कर साधु से पूछा कि पास में एक अमुक पेड़ उस आश्रम में है। वहां के लिये मैं एक शिव मूर्ति दान देना चाहता हूं। पर अपने गुरूजी से पूछ लेना क्या वह आज कल बीमार है। कुछ वार्तालाप के पश्चात उसे अपने हरिद्वार के आश्रम का पता व फोन नंबर दिखाकर आमंत्रित किया था। मुझे अपने परिवार सहित अकस्मात देहरादून व हरिद्वार कुम्भ के मेले में जाने का सौभाग्य मिला किन्तु चाह कर भी उस आश्रम में अभी तक नहीं जा पाया।
यह घटना अदभुत चमत्कारी शिवलिंग की जैसी साधु महात्मा ने बताई... क्या विचित्र नहीं है। साधु ने उस शिवलिंग को आश्रम में देखने को बुलाया भी था।