जर्मनी का गुलनाउ नाम का एक युवक अपने बचपन में देखे हुये स्वप्न कि उसके स्वर्गवासी पिता भारत में एक पशु रूप में मिलेंगे। वह भारत आना चाहता था। उसने अपनी मां से बार-बार यह स्वप्न आने पर भारत आने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। मां ने कहा अभी नादान बालक है, इतनी दूर दूसरे देश जाकर अपने पिता को पशु रूप में कहां ढूंढेगा। वह निराश होकर एकदिन फार्म हाउस में बने घर की छत से कूद पड़ा और आग्रह किया कि उसे भारत जाने की मां आज्ञा दे दे।
मां ने कहा कि तुम अपनी परिपक्वता का प्रमाण देना और जब बड़े हो जाओ तो भारत जाने की सोचना।
एक दिन गुलनाउ अपने घर से भाग कर फ्रांस में भिखारियों के साथ रहकर भीखारी की बस्ती में भीख मांगकर भारत जाने के लिए धन जमा करने लगा। और कुछ वर्षो बाद घर लौट कर अकेले रहने का प्रमाण अर्थात जमा पूंजी दिखा कर दे दिया। फिर कुछ वर्ष अपनी पढ़ाई की। वह मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र और मेडिसीन का स्नातक रहा। मां का आशीर्वाद लेकर एक कैमरा, दवाईयां और बाऱिश के कपड़े व शेर की खाल जैसी रजाई के खोल जैसा वस्त्र लेकर वह सलोवाकिया, टर्की, अफगानिस्तान, काबुल, कराची, लाहौर पाकिस्तान होता हुआ दिल्ली और फिर लाहुल स्पीति; हिमाचल प्रदेशद्ध उस समय के डिप्टी कमिश्नर मधुसूदन मुखर्जी की सलाह पर शिमला कला महाविद्यालय आया। उसे चित्रकारों में माडेल बनाया। फिर मूर्तिकला विभाग में मैंने उसकी नीली आंखे देखकर एक मनोविज्ञान का शब्द बोला। वह मेरा परिचय पाकर एक मित्र की तरह मुझे मिलने लगा। क्योंकि वह स्वयं मनोविज्ञान का स्नातक रहा था।
मैं उसे उसके जर्मनी के घर का हाल और रास्ते के बारे में बताता था।
उसने कार, कैमरा सब बेचकर शिमला कालीबाड़ी में एक सस्ते किराये का कमरा लिया था। वह रोज मुझसे मिलता, चाय खाना मेरे साथ मालरोड़ के एक रेस्टरां नाॅर्थ इंडियन काफी हाउस में खाता था।
एक दिन उसने बताया कि वह बौद्ध दर्शन पसंद करता था। फिर हिंदू दर्शन पढ़ने के बाद हिंदू धर्म का अनुयायी हो गया। वह पुनर्जन्म के बारे में जानना चाहता था।
मैं प्रायः उससे मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, कला सम्बधी बातें करता था। एक दिन एक विचित्र घटना घटी जिसकी कल्पना मुझे पहले नहीं थी।
एक दिन शाम को वह मालरोड़ पर मेरे कला महाविद्यालय के पास सदा की तरह मिलने आया। साथ में एक देसी कुत्ता साथ था। कई कुत्ते उस पर भौंक रहे थे। वह बोला मिस्टर सक्सेना Can you tell me who is this Dog? मैंने बड़े विश्वास से कहा कि यह तुम्हारा पिता है। तब उसने पिछली स्वप्न की सारी कहानी बताई और बताया कि मिलने से पहले वाली रात वह कुत्ता कमरे में घुस आया था। चैकीदार और लोगों के मारने भगाने पर भी नहीं भागा। फिर वह गुलनाउ के साथ शेर की खाल जैसे खोल में सो गया। जब वह मुझे मिलने आया तो कुत्ता भी उसके साथ था। यह कुत्ता उसके साथ रहा, उसने साथ नहीं छोड़ा- जैसे उसका कोई विशेष संबंध हो।
वह उस कुत्ते को स्वप्न के अनुसार पाकर मेरे कहने के बाद अस्वस्थ हो गया। यह जानकर कि वह उसका पूर्व जन्म का पिता ही है। वह उसे अपने साथ जर्मनी ले जाना चाहता था। उसेे ले जाने केे लिए कई जगह पूछताछ की, मगर सम्बन्धित लोगों ने कुत्ते को ले जाने में असमर्थता दिखाई। उसके जर्मनी लौट जाने का समय वीजा इत्यादि समाप्त हो रहा था। यह सब दिल्ली में होना था। बिना उचित अनुमति के कुत्ते को अपने देश ले जाना सम्भव नहीं था।
वह उदास हो गया उसने कालीबाड़ी शिमला मंदिर में उसेे साथ गोद में बैठाकर फोटो लिया। कुत्ता और वह दोनों सगे सम्बन्धी की तरह आसुंओं से रो रहे थे। वह एक चित्र मुझे दे गया, जो मेरे पास है। जिस पूर्व जन्म के स्वप्न के अनुसार एक कुत्ते को अर्थात अपने पिता को पाकर खोने का दुख था। वह वापस जर्मनी चला गया। इस बीच पत्र द्वारा मेरी बात यदा कदा होतीरही।
भारत से लौटकर गुलनाउ एलएसडी टैबलेट नशे की गोली पर अपनी पीएचडी के लिये इंग्लैंड के युवा छात्रों पर शोध करने लगा। एक दिन पत्र द्वारा मेरी सलाह शोध कार्य के लिये मांगी। मैंने उत्तर में लिखा कि अभी दुनिया के सारे वैज्ञानिक उपकरण मन की वास्तविक दशा जानने में सक्षम नहीं हैं। तुम्हें स्वयं बिना लिखे मेरा उत्तर मिल जाएगा।
कुछ दिनों बाद उसका गुलाबी पोस्टकार्ड नुमा कागज पर लिखा पत्र आया कि मुझे मेरा उत्तर मिल गया है। उसने अपनी शादी व घर सबको छोड़कर भारतीय साधु स्वामी ओंकारनंद के स्विजरलैंड आश्रम में सन्यास की दीक्षा ले ली है और यह भी लिखा कि उसे अध्यात्मिक ज्ञान हो गया है। वह प्रसन्नचित मेरी बातों को याद कर लेता है। साथ में एक चित्र पदम आसन में बैठे भेजा। कुछ तिब्बत बौद्ध धर्म सम्बन्धी दुर्लभ ग्रंथ भेजने की याचना की जो शिमला में उपलब्ध नहीं थी।