सन् 1963 में मैं अपने पुनर जागरण के कला गुरु लखनऊ राजकीय कला महाविद्यालय के मूर्तिकार प्रो. श्रीधर महापात्र जी तथा अपने गुरु भाई मूर्तिकार प्रो. दिनेश प्रताप सिंह के साथ हिमाचल में राजकीय कला व शिल्प महाविद्यालय नाहन में मनोविज्ञान तथा कला के प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन करने आया। कला महाविद्यालय के प्रधान आचार्य ने हमारे गुरु जो परीक्षक के रूप में आये थे, हम लोगों का स्वागत किया। उस समय अंधेरा हो चुका था। प्रधान आचार्य श्री हरीश चंद राय ने मुझसे कहा कि इस महाविद्यालय में सारी सुविधा मिलेगी। विशालकाय धातु की प्रतिमायें बनाना। किंतु मुझे अंधेरे में कला महाविद्यालय की धुंधली सी आकृति देखकर लगा ;पूर्वाभासद्ध कि यह महाविद्यालय बंद हो जायेगा। इसके पश्चात वह महाविद्यालय कुछ वर्षों बाद वहां से बंद हुआ, शिमला में खोला गया, फिर बंद कर दिया गया। उस समय शिमला में मेरी एक कवि सम्मेलन में प्रभावशाली कविता हिमाचल प्रदेश कांग्रेस सरकार के प्रवक्ता प्रो. तपेंद्र सिंह ने सुनकर मिलने की इच्छा व्यक्त की। वह हिमाचल में नाहन के रहने वाले थे। वार्तालाप में मैंने अपने साथ खड़े प्राध्यापक श्री जवाहर लाल शर्मा के सामने कहा कि कला महाविद्यालय को दोबारा खोलने की परिकल्पना भी आने वाले पचास वर्षो तक हिमाचल का कोई व्यक्ति या राजनेता भी नहीं कर पायेगा। वैसा ही घटित हुआ।
54 वर्ष बाद भारत सरकार के 5 करोड़ अनुदान के कारण अब 2017 में राजकीय कला महाविद्यालय फिर से दूसरा खोला जा रहा जो स्थान धामी शिमला के निकट होगा।
आज यह लिखते समय लगभग पचास साल बाद वर्तमान सरकार सोच रही है कि हिमाचल में कला महाविद्यालय केंद्रीय सरकार का होना चाहिए। यह बात भी 51वें वर्ष से आरंभ हुई। यह भविष्य वाणी व पूर्वाभास की घटना है।