.कुछ साल पहले अंग्रेजी स्कूल लाॅरेटो कान्वेंट तारा हाल के किसी शिक्षक के कोई सम्बधी वन अधिकारी आस्ट्रेलिया जाने के सिलसिले में मुझसे मिलने की चाह में इंग्लैंड से शिमला आए। मैंने फोन पर बात कर रिज स्थित सरकारी रेस्तरां शियाना में मिलने को कहा। वहां पहुंचने पर मैंने उन को बताया जब वह इंग्लैंड में थे तो किस प्रकार के घर में रह रहे थे वह क्या पूछना चाहते हैं। उनका मेरे पास जब फ़ोन आया तब मैंने काग़ज पर जो लिखकर लाया था, वह पूर्वाभासित विचार शतप्रतिशत सच निकला।
किन्तु वह वन अधिकारी वार्तालाप करते हुये बहुत चिंतित दिखाई दे रहे थे। मैंने उनसे कहा कि वह इतने चिंतित क्यों लग रहे है। जो बात करना है वह करिये। वह बोले कि मुझे आस्ट्रेलिया जाने के लिए केंद्रीय मंत्रालय के संबधित विभाग से स्वीकृति धन राशि मिलनी थी, वह अभी तक नहीं मिली। अतः मेरे जाने का प्रेाग्राम रद्द हो जायेगा क्योंकि निश्चित समय सीमा निकल जायेगी।
मैंने सहजता से कहा कि बस इतनी बात के लिये वह इतने चिंतित हैं। उनका कहना था कि यह उनके कैरियर के लिये चिंता का विषय है। वह शक्लों सूरत से खाने पीने के शौकीन धनी परिवार के भौतिकवादी व्यक्ति लग रहे थे। मैंने उन्हें सात्वंना के स्वर में कहा कि अभी कुछ ही क्षणों में दिल्ली के सम्बधित विभाग से फोन आयेगा कि आप को आस्ट्रेलिया जाने के लिये धन राशि की स्वीकृति मिल गई है, तुरंत दिल्ली आकर उसे लेकर अपना अगला प्रोग्राम निश्चित करें।
मैं और वह दोनों आश्चर्यचकित रह गये कि वैसे ही उसी क्षण मोबाइल पर दिल्ली से स्वीकृति का फोन अनायास ही आया। वह बोले यह कैसे हुआ मैंने कहा अपने पूर्वाभास द्वारा बता रहा हूं कि जिस विदेशी आस्ट्रेलिया निवासी के आप पहले मेहमान होंगे, उसी अमुक आयु और लंबी दाड़ी होगी उसके स्वागत कक्ष में एक मेंटलपीस पर चाय की केटली रखी होगी। जिस के द्वारा वह आप को चाय पिलायेगा। जब यह सच निकले तो मुझे आस्ट्रेलिया से या बाद में भारत में आने पर बतायें कि मेरा कहा सच है या नहीं।
काफी समय बीत जाने के पश्चात एक दिन मालरोड़ काॅफी हाउस के पास बराबर में चलते हुये मिले तो लज्जित भाव से बोले कि मैं आप को आस्ट्रेलिया में व्यस्त रहने के कारण संपर्क नहीं कर पाया। किन्तु जो मैंने उन्हें बताया वह सौ फीसदी सच निकला।
मैं कभी उस देश न गया न किसी से संपर्क रहा।