कई वर्ष पहले चम्बाघाट सोलन की गुफा में एक महान साधक महात्मा रहते थे गुफा के बारे में यह माना जाता था कि जो गुफा महाभारत काल में पांडवों के निष्कासन पर हरियाणा, पिंजौर से हिमाचल तक बनाई गई थी, वही है।
वह महात्मा जब गुफा से निकलकर ऊपर पहाड़ी गांव में आते थे तो उस पहाड़ पर एक कच्चा मिट्टी पत्थर के छोटे से कमरे में भी कुछ दिनों के लिये रहकर वापस गुफा में चले जाते थे।
उनके बारे में प्रचलित था कि जब कभी गुफा में उनके दर्शन को 5-6 लोगों से अधिक 15-20 भक्त पहुंच जाते थे और खाने का समय हो जाने पर सदा की तरह जो गांव वाले भोजन इत्यादि लाते थे वह कम पड़ने की आशंका से महात्मा की ओर देखते थे कि अब क्या किया जाये, क्योंकि अनुमान से अधिक भक्त आ गये हैं, पास कोई और साधन नहीं है। तो महात्मा जी उठकर गुफा से बाहर जाकर कोई बूटी तोड़कर लाकर खाद्य पदार्थ वाली टोकरी अथवा बर्तन में रखकर कपड़े से ढककर कहते कि भक्तों को बांट दें।
जितने भक्त आये होते उन्हें बांट देने पर भी वह अल्प लगने वाली सामग्री समाप्त नहीं होती थी। यह उस क्षेत्र में किवदंती थी।
मैंने जब यह सुना तो गुफा वाले चम्बाघाट के सिद्ध महात्मा से मिलने की तीव्र इच्छा पैदा हुई। मैं कला अध्यापकों की परीक्षा लेने शिमला से सोलन महाविद्यालय में कला विभाग में बैठा वहां के प्रवक्ता श्री जवाहर लाल शर्मा (अब लखनऊ में हैं) पूछा रहा था कि वह कभी उन गुफा वाले महात्मा से मिले हैं। तो उन्होंने बताया, वह मिल चुके हैं। वह गुफा से कुछ नीचे गांव वालों द्वारा बनाये गये कमरे में रहते हैं । सुना वह बीमार हैं। वहां जाने के लिये एक दो किलो मीटर की चढ़ाई है और गुफा के लिये काफ़ी दूर चढ़ना पड़ता है। मैंने कहा कि मैं उनके दर्शन करना चाहता हूं। वह बोले कि मिलना बहुत कठिन है। पता नहीं वह महात्मा आजकल कहां हैं। मेरी मिलने की तीव्र इच्छा भी है।
मैंने उनसे कहा कि आज दर्शन कर मुझे आज ही वापस शिमला लौट जाना है। उनकी प्रतीक्षा में कई दिन सोलन रूकना सम्भव नहीं है। मेरी महात्मा जी से मिलने की तीव्र इच्छा का प्रभाव यह हुआ कि उसी समय उनका विभागीय चपड़ासी आकर बोला कि किसी को यदि चम्बाघाट वाली गुफा में महात्मा से दर्शन करना हो तो नीचे गुफा के बाहर उस गांव वाले कमरे में महात्मा आये हुये है। वह आज हैं, कल का पता नहीं। मैंने मित्र अध्यापक शर्मा जी से कहा अपना कैमरा संभालो, मेरा तो बुलावा आ गया है। शर्मा जी ने बताया कि वह जब मिले थे तो उन्होंने फोटो खींचवाने का आग्रह करने के पश्चात भी मना कर दिया था । मैंने कहा वहीं देखेंगे। आप कैमरा लेकर शीघ्र चल पड़ें।
हम दोनों चढ़ाई चढ़ कर उस कमरे में पहुंचे। देखा तो महात्मा जी नितान्त नग्न पदम आसन लगाये एक जलते धूने के सामने टाट पर बैठे है। वह उस समय लगभग 89 वर्ष के थे। हम दोनों अभिवादन कर उनके इशारे पर पास में टाट पर बैठ गये। वह बोले चाय तो पियेंगे... मैं बड़े ध्यान से उन्हें निहार रहा था। छोटे से कमरे के चारों ओर बनी दीवारों की खुली अल्मारी में बड़े आकार की अनेकों पुस्तकें रखी थी। कमरे में केवल बाहर से आने वाली कुदरती सूर्य की ही रोशनी थी या
कुछ आभा उस छोटे से गढ्ढे में जलते धूने की थी। वह नागा साधुओं के सामने नग्न थे किन्तु लंबी जटायें या बाल न होकर अपनी मुद्रा में आसन से पैरो द्वारा ऐसे बैठे थे कि नग्न नहीं लगते थे। कुछ क्षणों में उन्होंने एक छोटे से लोटे में धूने की अग्नि से हम दोनों के लिये बड़ी स्वादिष्ट चमत्कारी चाय बनाकर दी और उनकी सरलता आत्यिमता को देखकर मैंने पूछा... महात्मा जी यदि सांसारिक गृहस्थ आश्रम में रहकर व्यक्ति कैसे तपस्या पूजा पाठ या ईश्वर की आराधना करे। उनका बड़ा स्पष्ट उत्तर था कि ‘जो प्राणी जिस जगह है उसी का ईमानदारी से पूरी ड्यूटी या कर्म निभाता है, वही उसकी ईश्वरीय आराधना है।’
फिर मैंने पूछा क्या सशरीर कोई साधु महात्मा योगी दूसरे नक्षत्रों में जा रहा है या जा सकता है।
उन्होंने एक क्षण (जो केवल मैं देख पाया) नेत्र बंद कर ध्यान मुद्रा के पश्चात कहा कि नहीं प्राचीन ग्रथों के अनुसार सशरीर इस युग में कोई नहीं जा रहा है। केवल मन से जा सकते हैं।
मैंने महात्मा जी से कहा कि आप बुरा मत माने और क्षमा करें, मेरे मन में कुछ अलग से विचार आ रहे हैं। क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं ? वह बोले जो चाहे पूछिये मैं स्पष्ट बताउंगा।
मैंने कहा कि आप बिहार के रहने वाले और अंग्रेजी शासन काल में क्रान्तिकारी रहे हैं। वह कुछ पल याद करते हुये बोले... हां यह ठीक है। वह बिहार के ही हैं और क्रांतिकारी रहे है।
मैंने पूछा आप यहां चम्बाघाट की गुफा में कैसे आये? उन्होंने बताया कि वह कुछ वर्षो पूर्व भारत में घूमते फिरते जंगलों से गुजरते शिमला के जाखू में हनुमान मंन्दिर में जो एक छोटी सी ( सम्भवतयः ) गुफा थी रहने लगा। वहां भक्त बढ़ने लगे तो भीड़-भाड़ से दूर रहने को वह स्थान छोड़कर चल पड़ा। तब तक भारत स्वतंत्र हो चुका था।
रास्ते में एक गांव का भक्त जो उन्हें जानता होगा मिल गया। वह बोला महात्मा जी आप कहां जा रहे हैं। महात्मा जी ने कहा ‘किसी गुफा की खोज में जा रहा हूं’ जहां मिल जायेगी ठहर जाउंगा। वह भक्त सोलन क्षेत्र का था। विनम्र भाव से बोला कि एक चम्बाघाट की गुफा है। वहां रहकर आप साधना करें। बस इस प्रकार मैं यहां आ गया। मेरा उद्देश्य कुछ समाज के लिए कर पाना है। यहां गांव में रोग और गरीबी देखी है। मैं यहां अपनी साधना के साथ उन सामाजिक बुराईयों को सेवा भाव से दूर करने के प्रयास में लगा हूं।
मैं कई वर्षो से यहां रह रहा हूं। यहां के राजा भी भक्ति भाव से मिलते हैं। सुधार करने में राजा तथा गांव वालों के सहयोग तथा आदर के कारण कुछ सेवा कर पा रहा हूं। मैंने कहा महात्मा जी शिमला में कुछ कृष्ण भक्त आये हैं, वह कृष्ण की भक्ति का साहित्य बांटते है। वि़शाल मन्दिर भारत में कई नगरों में बनाये हैं। आप यहां गुफा में आ गये है। वह कहने लगे कौन क्या करता है यह वह जाने। साधना पहले स्वयं अपने स्वयं के लिये होती है, बाद में समाज के लिये। मन्दिर इत्यादि बनाना मेरा उद्देश्य नहीं है। समाज जिस जगह है, वहां अपना कर्तव्य निष्ठा से निभाना ही पूजा आराधना है।
वह बोले मैं स्वाध्याय और अपने कर्म में अधिक विश्वास करता हूं। स्वतंत्रता पाने के बाद भी भारत में जीवन अभी भी अनेकों त्रूटियों से पूर्ण है। यह सामने दीवार में बने आलों मैं मैंने अपने अध्ययन के लिये ही प्राचीन पुस्तकें रखी है। मैंने काफ़ी समय बिताने के पश्चात् उनसे आग्रह पूर्ण विनती की कि वह एक फ़ोटो कमरे से बाहर चलकर प्रकाश में खिंचवाने की कृपा करें, तो मुझे प्रसन्नता होगी।
वह तुरन्त अपने कमरे में बिछा हुआ टाट कपड़े के समान लपेट कर बोले, चलो मैं तैयार हूं।
बाहर शर्मा जी ने अपने कैमरे द्वारा पदम आसन पर ज़मीन पर बैठे उन महात्मा जी का फोटो खींचा। एक फोटो मैंने भी उनके पास बैठ कर खिंचवाया। शर्मा जी जब फ़ोटो ले रहे थे और वह मेरे कमरे से बाहर केवल एक छोटे से टाट का टुकड़ा कमर से घुटने के ऊपर ही लिपेटे थे और ऊपर सिर से पूरे नग्न थे तब मैंने पूछा कि हम दोनों सूट स्वेटर इत्यादि काफी ऊनी वस्त्र पहने है और आप बिना वस्त्र के है। हम लोग पहाड़ी ठंडी तेज हवा से कांप रहे हैं क्या आप को सर्दी नहीं लगती। वह निर्विकार भाव से सधे हुये साधक भाव से बोले कि मैंने मन के साथ शरीर को भी साधा है। मुझे सर्दी, गर्मी कुछ नहीं लगती। उनका शरीर दुबला पतला था।
उनका व्यवहार पूर्ण सात्विक था। शरीर व मन पर पूर्ण अधिकार वाले सरल स्वभाव के क्रांतिकारी रहे साधक मैंने पहली बार देखे। क्रान्तिकारी रहे श्री अरविन्द घोष भी प्रसिद्ध हैं। जिनका पंडीचेरी में आश्रम है। वहां भारत व विदेश के अनेकों भक्त व दर्शक आते हैं। जिनके लिए सारे सुख साधन है। किन्तु यह चंबाघाट गुफा के क्रांतिकारी रहे साधु एकांत में रहे वाले योगी थे। यह संत एकान्त रहते में रहते थे। मेरा सौभाग्य था कि उनके दर्शन हो गये।