मेरी जम्मू वाली घटना से संबंधित श्री सोहन लाल गुप्ता जी से वस्तुओं के मैटिरियलाइज होने अर्थात मनुष्य के समान वस्तुओं के अनायास मन की एकाग्रता द्वारा प्रकट होने की घटनाओं तथा संभावनाओं पर विचार विमर्श करते हुये उन्होंने बताया कि वह किसी कारणवश ऐसे दुर्गम पहाड़ों पर खड़े थे जहां को
हीं था। धन समाप्त हो चुका था। उन्हें अपनी तत्कालीन आवश्यकतानुसार एक कौड़ी भी पास न होने के कारण अपने निश्चित गंतव्य पर पहुंचना असंभव लगने लगा। वह स्थल वीरान सुनसान था। उन्होंने अपने परम ईष्ट श्रीराम को विनयपूर्व स्मरण किया कि वह बिना राशि क्या करे... कुछ सहायता करें।
उनके कथनानुसार उस पहाड़ी टीले पर खड़े बड़ी जोर से अंधड यानि तूफान आया और उन्होंने देखा कि मुख के पास एक उन की आवश्यकतानुसार कागज़ का नोट उड़ता हुआ ठहर सा गया। विसमय से संकट में होने पर उन्होंने उस क्षण सोच कर नोट वायुमंडल से हाथ बढ़ाकर पकड़ लिया कि यह उनके ईष्ट श्रीराम की कृपा से उनके लिये ही आया है। हिंदू पौराणिक कथाओं तथा अनेकों दृष्टांतों में माता की कृपा से साधकों के आह्वान पर खाद्य पदार्थों में सामने बैठे श्रद्धालुओं के लिये प्रसाद स्वरूप गर्म जलेबी या लड्डू इत्यादि मिष्ठान किसी बंद डिब्बे में साकार हो गये। इसी तरह की एक घटना मैंने अपने बालपन में सुनी, ऐसी एक धर्म निष्ठा विधवा महिला की बताता हूं।
वह महिला एक छोटे से बालक पुत्र के साथ अपने पति को मोक्ष की धारणा लेकर अनेकों तीर्थों पर जाकर पिंडदान हेतु ‘गया’ पहुंची। पंडे और पुजारियों द्वारा धन को दान में देते देते सारा पास का धन समाप्त हो गया। घर लौटने के लिये भी किराये के पैसे नहीं बचे। उनका पुत्र बहुत छोटा था। अपने पास सारी जेबें, बटुआ, थैला-गठरी सब कुछ टटोलने के पश्चात निराश, भय, भूख से ग्रसित अपनी पहनी साड़ी को सिर पर पल्लू वाले वस्त्र को झोली के रूप में फैलाकर ईश्वर या अपने ईष्ट से प्रार्थना की, हे ईश्वर में अपने पुत्र के साथ बिना पैसों के अपने घर कैसे वापस जा पाउंगी? भक्ति भाव में लीन उस विधवा की फैली झोली में चांदी के (उस समय विक्टोरिया के कहे जाने वाले सिक्के) गिरने लगे। जब उसकी तंद्रा टूटी तो देखा कि उसकी झोली सिक्कों से भरी थी। उसके पास कोई दानी या भीख देने वाला भी नहीं था।
वह उस धन राशि तथा अपने बच्चे को लेकर उतर प्रदेश में ‘कांट तहसील, कमललेन पूर नामक गांव लौट आई। लगभग 75 साल पूर्व उस समय मैंने वहीं उसका छोटा बेटा देखा था, जिसे वह लेकर ‘गया’ पिंडदान के लिये गई थी।
कुछ सालों बाद पता चला उसका वह बेटा सन्यासी हो गया। जिसका नाम ‘राधे श्याम’