कुछ वर्षो पश्चात श्री अशोक अग्रवाल जी ने मुझे उत्तर प्रदेश में श्री श्याम बाबा का एक मन्दिर बनवाने के लिये जो स्थान नहीं मिल रहा था, उसके निर्णय के लिये बुलाया। मैं उस स्थल पर पहुंचा। उस स्थान का मालिक एक चावल की फैक्ट्ररी का बड़ा व्यापारी था। मैंने मिलने से पहले कहा वह मुझे जमीन के मालिक से न मिलवायें। उनसे बात करें, मैं केवल साथ में खड़ा रहूंगा। बात करने पर जमीन के मालिक ने यह कहकर मना कर दिया कि श्याम बाबा मन्दिर बनाने के लिये कहीं और चुनाव कर चुके है, जहां श्री अशोक की सहमति भी थी। यह दूसरा स्थान क्यों मांग रहे हैं, वह व्यापारी मुझसे परिचित नहीं था।
अशोक जी पास में खड़े मुझसे पूछा मैंने कहा इसी तरह सामने रोड़ के पास जगह मिल जायेगी। मैं यह कहकर निवास पर चला गया। आधे घंटे बाद वह चावल मिल मालिक एक स्क्ूटर पर मुझे ढूंढता हुए मेरे पास आया। मैं अंधेरे में अपने स्वागत कक्ष में बैठा सोच ही रहा था कि वह मिल मालिक बड़े आदर भाव से मिलकर बोले कि मुझे आपके बारे में पता चला, मेरी एक विकट समस्या है। मैंने मन्दिर के लिये जमीन देने की सहमति दे दी है और आपसे मिलने आया हूं।
मैंने कहा कि मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं। किन्तु उनके छुपाने पर समस्या न बताने पर भी मैंने उन्हें बताया कि आपके ऊपर कई करोड़ का ऋण है। आपके घर में अमुक स्थान पर एक देवता की मूर्ति है जिसकी साधना पूजा आप नहीं करते है इत्यादि। वह संतुष्ट होकर चले गये।
मेरे द्वारा कहने पर मन्दिर की जमीन मिलते ही श्री अशोक जी ने उस नगर के परिचित कई प्रसिद्ध व्यापारी नागरिकों और श्याम बाबा से जुडे़ जयपुर के बड़े भक्तों को बुलाकर मुझे उनसे मिलने का आग्रह किया और अपने निवास पर सबको बुला लिया। मैं असमंजस में था कि यह तो एक दरबार जैसा लगा है।
वहां के व्यापारी सिंघानिया जी का आग्रह था कि मैं उनके निवास वाली राइस मिल पर सब गतुंकों को बताने के बाद उनके साथ गाड़ी पर जाउं। कुछ देर बाद मैं उनके साथ गया, फिर मैंने जयपुर के पूजन कीर्तन करने वाले तथा श्याम बाबा के उच्च कोटि के भक्तों से कहा जिस प्रकार आपका विचार है वह अनुचित है। श्री श्याम बाबा जी के बारे में आपका ज्ञान अधूरा है।
मूर्ति के लिये कैसा पत्थर इत्यादि होना चाहिये बताने लगा। वहां नगर के प्रसिद्ध व्यापारी श्री सिंघानियां अपने पुत्र के साथ आकर पूछने लगे। मैंने बताया वह एक फैैक्ट्ररी अमुक मूल्य में खरीदना चाहते हैं और अपने व्यापारी भाई से चावल मिल के बीच दीवार खींच ली है इत्यादि इत्यादि।
वह मुझसे संतुष्ट हो बोले कि मेरी फीस कितनी है?
मैंने कहा मैं फीस नहीं लेता। वह सेठाना अन्दाज में आग्रह कर बोले कि आपको फीस तो लेनी ही पड़ेगी।
मैंने उन सेठ से कहा आप मुझे क्या देंगे। आप एक प्रतिष्ठित नगर के बड़े व्यापारी हैं किन्तु आपके पास देने को एक कौड़ी भी नहीं है। उन्होंने सारी जेबें टटोली किन्तु उस समय एक पैसा भी नहीं निकला। पीछे बैठे बेटे की ओर देखा मैंने कहा वह भी खाली हाथ है।
वह शर्मिंदा होकर क्षमा याचना करने लगे। मैंने कहा यह सब साधारणतया होता है। तुरन्त बाद उनके बंटवारे में अलग हुये सगे मिल मालिक भाई आगे बढ़कर पूछने लगे मुझे जो आभासित हुआ बता दिया।
लगभग तीन किलोमीटर दूर मेरे आवास पर छोड़ने आए इत्यादि।
कई वर्षो के बाद मैं फिर एक अन्य परिचित के पास अपने पैतृक स्थान उत्तर प्रदेश में अपने पुत्र तथा दामाद के साथ पता पूछता सिंघानिया को मिलने उनके कार्यालय गया। मेरी तीव्र इच्छा अनायास ही मिलने की हुई। मुझे आभासित हुआ एक नई काॅलोनी उनका पुत्र बना रहा है जो मेरे सुझाव के बिना सफल नहीं होगी।
मैंने बीते वर्षो की घटना याद दिलाई। उन्हें पहचानने में कुछ समय लगा और कहा कि वह कभी मुझसे नहीं मिले। फिर बीती खाली जेब की घटना याद आई और मेज की दराज से काजू किशमिश भेंट करने लगे। मैंने मना करते हुये कहा कि आपका बेटा क्या कर रहा है। वह बोले एक नई बड़ी काॅलोनी बना रहा है। मैंने कहा मुझसे मिलवायें- भले ही फोन पर बात कर लें।
मैं इसलिये आया, एक जो काॅलोनी मेरे परिचित स्थान पर राह में बन रही है, मैं उसके बंगले में आपके बेटे को कुछ बताना चाहता हूं। सिंघानियां जी बोले... मेरा बेटा ही यह काॅलोनी बना रहा है। मैं स्वयं उस काॅलोनी के मालिक सिंघानियां के बेटे से मिला और बताया कि मैं घर खरीदने नहीं आया हूं। आप अपने पिता के साथ श्री अशोक अग्रवाल के यहां कई वर्ष पूर्व मिले थे- उसने ग्राहक समझा था। उसके पूछने पर मैंने अपना सुझाव दिया और बताया कि यदि सुझाव नहीं मानेंगे तो काॅलोनी में कोई ग्राहक नहीं आयेंगे। कई वर्ष बाद पता चला कि वह काॅलोनी वैसी ही पड़ी है।