लगभग चालीस वर्ष पूर्व मैं उतर प्रदेश अपने पैतृक आवास में शिमला से गया हुआ था। मेरे डाक्टर चाचा जी की पूजा की अलमारी में एक अदभुत दक्षिणावर्ती शंख रखा था। वह इतना आकर्षक था कि मैंने अपने चाचा जी से पूछा कि शंख कहां से लिया है। वह बोले कि यह कहीं से खरीदा नहीं, बल्कि किसी नागा साधू ने, जो क्लीनिक पर घूमते फिरते आया और कुछ दक्षिणा देने के पश्चात उपहार स्वरूप देकर चला गया। वह फिर कब आयेगा इसका कुछ भरोसा नहीं है।
उस सुन्दर शंख को देखकर मेरे मन में तीव्र इच्छा हुई कि मुझे ऐसा दक्षिणावर्ती शंख कहीं से आज, अभी मिलना चाहिये। उस समय तब तक मुझे एक मुखी रूद्राक्ष और दक्षिणावर्ती शंख की न तो महिमा मालूम थी, न ही देखा था...केवल सुना था उसके सम्बध में।
मेरी छोटी बेटी बहुत छोटी थी। मुझसे बोली कि आज श्री सत्यसाईं बाबा जी पुटापर्ती वाले का जन्मदिन है। मैं उन्हें बधाई का कार्ड भेजना चाहती हूं। मैंने उसका दिल रखने के लिये एक कागज़ पर बधाई पत्र के रूप में लिखने को कहा। इस बीच द्वार पर एक साधू की आवाज सुनकर वह और दूसरे परिवार के बच्चे द्वार पर पहुंच कर एक छोटा सा छपा हुआ चित्र साधू से ले आये। मेरी बेटी बोली मुझे हरिद्वार व शिव वाला चित्र साईं बाबा ने भेजा है और छविं वाला चित्र दिखाया। मैंने कहा कि तुम्हारे साईं बाबा की ओर से चित्र आ गया। वह सच जानकर खुश हो गई। उसने जब मुझे बताया कि यह द्वार पर पधारे साधू ने दिया है तो मैं बाहर द्वार पर यूं ही चला गया।
द्वार पर दो नागा साधू वस्त्र पहने बैठेे थे। मैं उन्हें कुछ दक्षिणा देने वाला था कि उनमें एक बड़ी आयु वाला साधू बोला कि मैं आप को दक्षिणवर्ती शंख देता हूं। मैं यह सुनकर आश्चर्य चकित हतप्रभ सा उस शंख को देखता रह गया। फिर उस साधू से बोला कि लगभग एक फरलांग दूरी पर बाजार में एक सेठ तथा अन्य लोग होंगे, चलो उनसे मिलाता हूं। यह बहुत बहु मूल्य है। मैं इसकी कीमत नहीं दे पाउंगा। जैसा मैंने सुना था कि ऐसा शंख अमूल्य होता है। वह बोला यह आपके लिये है। मैं आग्रह कर उन दोनों साधुओं को बाजार ले गया और सेठ को मैंने उनसे मिलवाया। वह व्यस्त थे। मैं अपने निवास पर लौटने लगा। साधु उठकर मेरे साथ चल पडे़। अन्य कई गणमान्य बैठे लोगों ने लेने के लिये देखना चाहा किंतु उस सन्यासी ने किसी को नहीं दिखाया, न ही बात की और मुझसे बोला यह आपके लिये ही है।
फिर अपने द्वार पर आकर मैंने कहा कि मेरी जेब में जो राशि है वह बहुत ही कम है। यदि में लूंगा तो उनको घाटा होगा। वह नागा साधु बोला कि मुझे इसकी चिन्ता नहीं, जितने दोगे मैं सहर्ष ले लूंगा और उसने एक मनचाहा जैसे मेरे चाचा जी के पास था दक्षिणावर्ती शंख मुझे देे दिया। दूसरा साधू बोला इस शंख के साथ एक मुखी दाना यानि रूद्राक्ष रखना हितकर होता है। आप इसे भी ले लो। बहुत आग्रह के पश्चात् भी मैंने यह सोचकर नहीं लिया कि रूद्राक्ष का मूल्य मैं नहीं दे पाउंगा।
यह कहानी या घटना थी। मेरी तीव्र इच्छा द्वारा मनचाहा दक्षिणावर्ती शंख देव कृपा से कुछ क्षणों बाद ही उसी दिन मुझे मिल गया।
इससे पूर्व ना मैंने वैसा शंख देखा था और ना ही उस जगह रहता था ना ही इससे पहले साधु कभी मिला था। अंग्रेजी की एक विदेशी द्वारा लिखी पुस्तक MIND OVER MATTER है। मैंने पढ़ी थी-मन द्वारा एकाग्र शक्ति से आश्चर्यचकित करने वाली घटनायें मैं सुनता व पढ़ता था किन्तु अब लगभग 50 वर्षों से मेरे साथ घटित हो रही है। जिन्हें मैं जिज्ञासु पाठकों के लिये जैसे-जैसे याद आ रहा है लिख रहा हूं। विदेशी ज़ीनर नामक मनोवैज्ञानिक का कथन है कि हर तीसरे व्यक्ति में विलक्षण शक्ति होती है। किन्तु हर व्यक्ति उसे क्रियात्मक रूप नहीं दे पाता।