कुछ साल पहले देश तथा विदेश के सुप्रसिद्ध अध्यात्मवादी योगी, ‘स्वामी योगा नन्द जी’ की संस्था का शिमला के प्रसिद्ध ‘गेयटी थियेटर’ मालरोड़ पर कोई कार्यक्रम था। उनका प्रोग्राम बाहर लिखा देखकर मैं अपनी जिज्ञासावश भीतर हाॅल में जाकर खाली पड़ी बाॅक्स ऑफिस की विशेष सीट पर बैठ गया। उन सीटों पर प्रायः मुख्य अतिथि ही बिठाये जाते है। कुछ समय पश्चात कार्यक्रम आरम्भ होना था। उसके व्यवस्थापक मुझ से परिचित एक प्रसिद्ध वास्तुकार थे। जब वह मिले तो मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं इस स्थान पर बैठूं या किसी दूसरी केबिन में चला जाउं। उन्होंने बड़े आदर से कहा कि आप यहां बैठे रहिये। उसके तुरन्त बाद कार्यक्रम के लिये संबंधित आश्रम के कलकता से पधारे एक गुरु आये। उनके साथ आये महात्मा को वहां बैठाया गया । कार्यक्रम से पूर्व मंच पर उनका परिचय तथा कार्यक्रम के बारे में बताया गया।
मैं दूर से ‘स्वामी योगा नंद जी’ का एक चित्र मंच पर सजाया गया फोटो देख कर यह महसूस कर रहा था कि ‘श्री योगानन्द जी’ के उस चित्र के स्थान पर मंच के अनुरूप उनका कोई अन्य मूर्ति रुप में थोड़ी बड़ी सजाई होनी चाहिए थी। सजे हुये बहुचर्चित चित्र में कुछ त्रुटि है।
यद्यपि वह चित्र लगभग उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘आटो बायोग्राफी आफ योगानंद‘ इत्यादि अनेक पुस्तकों पर छपा है। जो सम्भतयः प्रकाशन के लिये संस्था द्वारा प्रमाणित होगा। पूरा कई घंटे का कार्यक्रम देख एवं सुनकर मुझे यही लगता रहा कि मैं पास में बैठे आमंत्रित गुरु जी से कहूं। किन्तु किसी कारणवश यह सम्भव न हो सका। कार्यक्रम समाप्ति पर मैं वहां से उठकर अकेले अपनी परिकल्पना में खोया हुआ बाहर मालरोड़ पर चला जा रहा था कि लगभग एक फरलांग गेयटी हाॅल से दूर उस कार्यक्रम के कर्ता, महात्मा गुरु तथा अन्य सन्त व भक्त मेरे पीछे आकर मुझे रोककर बोले कि कलकता से आये संस्था के गुरु बात करना चाहते है।
मैंने कुछ रूक कर फिर चलते हुये बात की कि देश विदेश में ऐसे कार्यक्रमों के लिये मंच सज्जा के लिये परम्रागत चली आई प्रथानुसार यह चित्र उतना उचित तथा आकर्षक नहीं है। मैं कार्यक्रम हाॅल में बैठा सोच रहा था कि आप को बताउं किन्तु यह उस समय सम्भव न हो सका।
वह मेरा परिचय एक मूर्तिकार, कलाकार के रूप में जानकर शिमला की उस संस्था से जुड़े वास्तुकार भवरा जी की ओर देखकर बोले कि मुझसे इस सम्बध में बात करें जैसा मैंने बताया था मेरे उस विचार को मूर्ति रूप दें।
जो मैं उस कार्यक्रम हाॅल में सोच रहा था। वह बात उस संस्था के पधारे गुरु जी ने स्वयं मुझसे मिलकर कही।
यह टैलीपैथी के समान घटना है क्योंकि मेरी उनसे या किसी से यह बात कार्यक्रम से पूर्व या बाद में कभी नहीं हुई।