शिमला के श्री सोहन लाल गुप्ता मेरे पारिवारिक मित्र अपने आॅडिट विभाग से किसी ट्रेनिंग के लिये जम्मू भेजे गये। वह अपनी धार्मिक आस्था के कारण जम्मू के प्रसिद्ध राजसी रघुनाथ मंदिर में दर्शन कर प्रसाद चढ़ाने गये। उस समय उनकी कोई पारिवारिक समस्या चल रही थी। मंदिर उस समय बंद था। वह किसी दूसरे मंदिर में कोई पुल पार कर गये, वहां भी वह मंदिर बंद निकला। इस प्रकार निराश अपने निवास पर जाने लगे तो एक फ़क़ीर रास्ते में दिखाई पड़ा। उसके पास जाकर उन्होंने वह प्रसाद वाली मिठाई उस फ़क़ीर को देनी चाही तो उसने उसे लेने से मना कर दिया।
उस समय अंधेरा हो रहा था। गुप्ता जी को लगा कि उनका प्रसाद किसी कारणवश कहीं स्वीकार नहीं हो रहा है। इस बीच वह कुर्ता पायजामा पहने मुस्लिम लगने वाला फ़क़ीर बोला कि मुझे पास की दुकान से पुरियां खिला दो। गुप्ता जी ने कहा यहां जंगल में कोई दुकान कहां है। उस फकीर ने एक ओर इशारा कर बताया और दोनों कुछ दूरी पर एक दुकान पर पूरियों के लिये पहुंचे।
वह दुकान खाली थी केवल वह दोनों एक सादी लकड़ी की बेंच पर आमने-सामने बैठ गये और दुकानदार से पूरीयां लेकर फकीर को खिलाने के पश्चात जब चलने को उठे तो उस फकीर ने कहा कि मुझे कुछ पैसे भी दो। गुप्ता जी के पास दो पर्स थे। एक में कई सौ के बड़े नोट और दूसरी पर्स में कुछ छोटे नोट और रेजगारी यानि सिक्के थे।
गुप्ता जी ने उस फ़क़ीर से दोनों पर्स एक के ऊपर दूसरी रखते हुये कहा कि एक पर्स में ज्यादा और दूसरी में कम पैसे है। आप मेरी बंद हथेली में रखी एक पर्स खींचो जो आपके हाथ में आयेगी वह आप ले लेना।
उस फ़क़ीर ने उनके कहने पर पर्स खींचा उसमें केवल कुछ सिक्के थे। फ़क़ीर ने सिक्के निकालकर खाली पर्स गुप्ता जी को लौटा दी और बोला- बैठो अभी मत जाना। गुप्ता जी ने सोचा यह फकीर दिखाई देने वाले अंजान व्यक्ति ने अधिक राशि वाली पर्स देख ली। जम्मू की यह सुनसान जगह है। यहां से शीघ्र चला जाये। वैसे ही वह फकीर बोला कि मैं किसी का दिया मुफ्त में नहीं खाता। बैठो मैं तुम्हें कुछ दूंगा जिसको पास रखने से तुुम्हारी समस्या दूर हो जायेगी।
गुप्ता जी फिर उस बेंच पर उस फकीर के सामने बैठ गये। उस फ़क़ीर ने अपने लंबे कुर्ते की जेब से तीन हीरे जैसे पत्थर के टुकड़े निकाल कर गुप्ता जी को दे दिये। और फिर दोनों अपनी-अपनी दिशा की ओर चले गये।
मैं शिमला के एक रेस्तरां से इस घटित कहानी से पूर्व निकल रहा था कि उस रेस्तरां में कुछ दूर बैठे गुप्ता जी ने मुझे देखकर बुलाया और बोले कि मैं कई महीनों से आपसे नहीं मिला किन्तु आज वह एक विशेष चमत्कारी घटना सुनाना चाहता है। मैं बैठ गया तब उन्होंने उपरोक्त जम्मू की घटित घटना सुनाई। जब वह यह फ़क़ीर वाली घटना सुना रहे थे तो मेरे मानस पटल पूरा दृश्य हूबहू अंकित होने लगा।
मैंने उनसे कनफर्म किया कि वह फ़कीर किस सूरत का कैसे कपड़े वाला किस दिशा में बैंच पर बैठा और पूरी वाला दुकानदार किधर था इत्यादि। गुप्ता जी ने अपनी सहमति जताई, फिर मैंने पूछा कि उनकी कौन सी समस्या थी और क्या हल हो गई? तो उन्होंने बताया कि कई समस्याओ के अतिरिक्त उनकी एक बहन का विवाह नहीं हो रहा था। आयु बढ़ती जा रही थी, सारे प्रयत्न विफल हो चुके थे। उन पत्थरों को रखने के बाद तुरंत जम्मू से लौट कर जब शिमला आया तो सारी समस्याएं स्वतः ही हल हो गई।
जब वह यह विचित्र कहानी सुनाकर उठने लगे तब मुझे बड़ी तीव्रता से पूर्वाभासित होने लगा कि मेरी भी एक समस्या है और यह दिया हुआ पत्थर मुझे मिलना चाहिये किन्तु मैं उसे गुप्ता जी से नहीं मांगूगा और लेना उचित नहीं है। किन्तु यह पत्थर मेरे पास आयेगा क्योंकि मेरे मन में तीव्र इच्छा थी।
इस दुविधा की मानसिक स्थिति में उनके साथ मालरोड़ तक उनके साथ चला, जहां से उनका रास्ता अपने घर को जाता था। मैंने उस स्थिति को टालने के लिये उन्हें बड़ी कठिनाई से यह कहकर विदा किया कि मैं सामने वाली शाॅप से कुछ खरीदूंगा और फिर कभी मिलूंगा। वह चले गये।
कुछ सामान खरीद कर जब मैं अपने निवास पर पहुंचा तो आश्चर्यचकित रह गया कि गुप्ता जी अपने निवास पर जाकर एक फ़क़ीर का दिया पत्थर लेकर मेरे पहुंचने से पहले ही सोफ़े पर बैठे मेरा घर पहुंचने का इंतजार कर रहे थे।
उन्हें अपने घर बैठे देख कर मैंने कहा कि आप कैसे आ गये। अभी कुछ देर पूर्व तो हम दोनों मिले थे। वह बोले बताउंगा, बैठो तो सही। जब कुछ क्षण पश्चात मैंने फिर पूछा तो उन्होंने उत्तर देने की बजाय वह चमत्कारी हीरे के समान चमकता एक बड़ा सा टुकड़ा मुझे देते हुये कहा कि वह मुझे यह फ़क़ीर वाले पत्थर मुझे देने के लिये आये हैं। मन में चाहते हुये भी मैंने उसे लेने से मना कर दिया। किन्तु गुप्ता जी के इस आग्रह पर वह स्वयं इसे देना चाहते है, मैंने कहा यह उनके लिये विशेष है और उस फ़क़ीर ने उन्हें दिया है। तो उनका मुझे देने के लिये तर्क था कि फ़क़ीर ने कहा था कि वह एक टुकड़ा किसी और को भी दे सकते हैं। मेरी तीव्र इच्छा सोच या गुप्ता का उदार हृदय या उसी फ़कीर को वरदान कुछ भी कहा जाये वह मेेरे पास आ गया। जिसे मैं कुछ घंटे पूर्व गुप्ता जी द्वारा सुनाई घटना के समय सोच रहा था।
मैंने यह कहते हुये वह पत्थर लिया कि गुप्ता जी को जब मैं वापिस करूं तो लेना होगा। किन्तु मेरी समस्या का समाधान के पश्चात् लौटाने के आग्रह के बाद भी उन्होंने वापस नहीं लिया। ऐसे उदार हृदय के परोपकारी व्यक्ति समाज में बिरले ही मिलते हैं। उनका पूरा परिवार इसी तरह का है। आज यह विचित्र घटना लिखते हुये मुझे दुख हो रहा है कि वह कहीं जन्म ले चुके होंगे या मोक्ष मिल गया होगा। उनको मैं नमन करता हूं।
उनके साथ अनेकों रहस्मयी घटनाओं का मुझसे सम्बध है।