ऐसी एक अति विचित्र असंभव परा-मनोवैज्ञानिक पूर्वाभास तथा भविष्यवाणी तथा भूत व भविष्य दर्शन को मैं यहां लिख रहा हूं। कई साल पहले सम्भतयः 1990 के समीप मैं सपरिवार आगरा ताजमहल देखने गया था। मेरे पास के कैमरे की फिल्म समाप्त होने पर ताजमहल के समीप एक छोटे से बाज़ार में घूमते फिरते फिल्म की रील लेने दुकान की खोज में चले जा रहा था। र्दाइं ओर सड़क पर एक बड़ा सा ज्योतिष सम्बधी विवरण नगों (कीमती स्टोन) की दुकान पर लिखे बोर्ड पर नजर गई। मैं खड़ा हो कर उसे पढ़ने लगा। परिवार के सदस्य कुछ आगे निकल गये।
इस नगों की दुकान के सामने सड़क की दूसरी ओर बैठा मालिक कुछ लोगों के साथ खाली समय में ताश के पत्ते खेल रहा था। मुझे बोर्ड पढ़ते देख दौडा़ हुआ एक ग्राहक समझकर बोला आइये-आइये अन्दर दुकान पर देखिये।
मैं चल पड़ा और बोला कि मुझे कुछ लेना नहीं है। मैं तो यूं ही बोर्ड पढ़ रहा था। मैं कैमरे की फिल्म वाली दुकानढ ढूढ़ रहा था। उसके बहुत आग्रह करने पर कि मैं केवल दुकान के भीतर प्रवेश कर देख लूं, बेशक कुछ ना लें, जैसा साधारणतः दुकानदार कहते हैं।
मैं उसके नगों के शोरूम में अंदर गया और शीशे के पारदर्शी काउंटर पर रखे रंग बिरंगे बहु मूल्य नगों को देखने लगा। मैं परिवार के कारण जल्दी में था किन्तु शीशे की तीन स्टोरी, ऊंचे खंडों वाली रैक यानि काउंटर के ऊपरी भाग पर एक बिल्कुल अखरोट के समान रखे पीस को देखकर मैंने पूछा कि यह अखरोट कैसा है। दुकानदार ने उसे उठाकर दो भागों में खोलकर दिखाया कि भीतर चारों ओर हीरे के कणों की तरह चमकते बहुत छोटे-छोटे नग लगे थे। यह कु़दरती पत्थर है, अख़रोट नहीं। उसके भीतर खाली नारियल जैसी सफेद परत थी।
मैंने उससे पूछा कि अख़रोट जैसा पत्थर कहां का है। उसने उसे अजंता, महाराष्ट्र का बताया था। फिर वहां से चलते हुये मेरी निगाह नीचे शोकेस पर बड़े सुंदर छोटे बड़े नगों में एक त्रिभुजाकार किसी पर्वत की चोटी तथा अनार के दानों के समान उसके रंग जैसे बहुमूल्य रखे पीस पर पड़ी। मैंने उसका मूल्य पूछा... दुकानदार बोला बहुत बेशकीमती इज़राइल का है। यह बेचने के लिये न होकर केवल शोभा बढ़ाने के लिये है। आप इसे नहीं ख़रीद पायेंगे। यह मुमकिन नहीं है।
मैंने कहा- मैं अभी जा रहा हूं मेरा परिवार बाहर है, मेरा इंतजार कर रहा होगा... किन्तु यह बेशकीमती नग कितने का भी हो मेरे पास आ रहा है। वह दुकानदार बोला कैसे आ रहा है? मैंने कहा कि यह बाताओ कि तुमने 12 साल पहले हिन्दू से मुसलमान धर्म अपना लिया है और आज इसी दिन अपनी बूढी़ मां को पत्र लिखा है, जो समझती है कि तुम मर चुके हो। वह दुकानदार हतप्रभ सा आश्चर्यचकित मुझसे बोला... और कुछ बतायेंगे, यह सब सच है। मैंने फिर कहा इस बात का एक और प्रमाण यह है, तुम्हारे राजस्थान वाले घर के आंगन में एक तुलसी का पूजनीय पौधा लगा है। अब यह बताओ कि नग कितने का दोगे? उसने मना कर दिया और बोला यह बेेशकीमती पीस आपके बस का नहीं है, यह ‘शो’ पीस है।
मैं फिर शोरूम से बाहर आ गया। वह दुकान का मालिक दौड़कर पीछे आकर बोला सर आइये, चाय तो पी लीजिये। मैंने कहा मैं चाय नहीं पीउंगा... मुझे एक कैमरे की रील लेनी है। वह आग्रह करने लगा कि मुझ से कुछ जरूरी बात करनी है। मैंने अंदर जाकर पूछा क्या बात करनी है। सोचा कि शायद वह मेरी पसंद वाला नग देना चाहता है किन्तु उसने फिर मना कर दिया कि वह मैं नहीं खरीद सकता। मैंने कहा कोई बात नहीं, किन्तु मुझे क्यों बुलाया तो वह बोला- कुछ पूछना है किन्तु कैसे बताउं... मैंने कहा मैं जल्दी में हूं, मैं स्वयं बता रहा हूं कि तुम्हारा व्यापार का साथी (पार्टनर) तुम्हारा मुस्लिम साला है। उससे अलग होकर तुम अपना अलग व्यापार करना चाहते हो, यही है ना तुम्हारा प्रश्न?
वह नतमस्तक हो बोला- मैं इसके बारे में ही पूछना चाहता था, याद नहीं जो कुछ मन में आया मैंने उसे बताया। जिसे उसने सच बताया कि ठीक है। मैंने फिर उससे पूछा कि अब नग के बारे में क्या विचार है? उससे मैंने कहा कि वह अखरोट जैसे नग और यह त्रिभुजाकार नीलम का दूसरा रूप वाले नग की अमुक धन्य राशि मैं दे रहा हूं जो अनुचित ना लगे और यदि इच्छा हो और उचित लगे तो दे देना। उसने रोककर मुझे वह दोनों मेरी सोच अनुसार दे दिये। मैंने इन बहुमूल्य रत्नों का पे-मेंट उस दुकानदार के अनुसार कर दिया।
अब सोचें यह घटना परा-मनोविज्ञान की है या नहीं। मैं भी स्वयं सोचता हूं... यह क्या है कि बिना जान पहचान पूर्व सोचे जो जब कभी एक क्षण मेरे मन में विचार आता है... वह सत्य घटने लगता है। यह शोध व साधना का अनूठा विषय है। पौराणिक कथनाएं ऐसी अदभुत घटनओं से भरी हैं।