ईरान का एक परिवार वहां के शासक खुमैनी के कठोर व्यवहार से तंग होकर अपना देश छोड़ किसी देश में पलायन कर जाना चाहते थे। ईरान में 18 से 20 /25 वर्ष के युवकों को सेना में भर्ती होने का आदेश दिया गया। जो आदेश का पालन नहीं करेगा उन्हें एक लाइन में खड़ा कर गोली मार देने का आदेश था। ऐसा ही एक परिवार जो आदेश ना मानने वाले थे, भाग कर बचता बचाता यूनेस्को की सुरक्षा के कारण भारत में शिमला हिमाचल प्रदेश आया। मैं उस समय ‘युद्ध और शान्ति‘ सम्बधी मूर्तिकार के रूप में एक मानवाकर मूर्ति संयोजन के लिये यथार्थवादी एक ऐसे माॅडल की खोज कर रहा था जो शान्ति का प्रतीक होने के साथ युद्ध की विभिषिका का भुगत भोगी रहा हो। इसे संयोग ही कहेंगे कि ईरान से शिमला आया ऐसा माॅडल युवक जिसका नाम ‘फरहाद’ था, मिल गया।
वह फारसी तथा टूटी - फूटी अंग्रेजी जानता था। उसकी बेसिक मूर्ति बनाने के लिए मैंने उससे कहा कि वह भारतीय युवती से उनके नेत्रों की विशेष बनावट और व्यवहार के कारण शादी करना चाहता है। उसे मुझ पर विश्वास था इसलिये उस युवती को मुझसे मिलवाया। मैंने तुरन्त देखकर कहा... वह धोखे में है। यह किसी और से विवाह करेगी। किन्तु इस बीच ‘फ़रहाद ने अपनी मां को शिमला शादी के लिये बुला लिया और मुझे अपनी मां से मिलवाया। मां मुझसे मिलकर संतुष्ट थी। वह शादी के विरोध में थी और चाहती थी कि मैं ‘फ़रहाद‘ को शादी ना करने को समझाउं।
मैंने कहा कि मुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्योंकि स्वतः ही ‘फ़रहाद‘ की शादी भारतीय लड़की से नहीं होगी। वह एक शिमला काॅलेज की युवती थी। जो मेरी बात को उसे ‘फ़रहाद‘ को समझाती थी। ‘फरहाद’ बड़ी मुश्किल से उस युवती के समझाने के बाद मूर्ति माॅडल बनने के लिये राज़ी हो गया किन्तु कुछ शंकित था। जब उसने मूर्ति रचना वाले कला कक्ष को देखा तो उसकी शंका दूर हो गई और वह मूर्ति माॅडल बनने के लिए तैयार हो गया। ईरान से आई ‘फ़रहाद‘ की मां को मैंने बताया कि उसके पति डाॅक्टर हैं। एक काले रंग की अलमारी में दवाइयां रखी जाती थी और वह घर में किधर रखी है और वह पड़ोस की ईरानी लड़की से शादी करना चाहता था। शिमला में आये उसके बेटे फरहाद की शादी किसी इरानी लड़की से ही होगी। जो बिल्कुल सच निकला। शिमला की भारतीय लड़की जिससे वह शादी करना चाहता था उसने एक प्राध्यापक से दूसरे दिन ही शादी कर ली।
मेरी शक्तिपरक्ता की एक स्पर्श से ‘फ्ररहाद’ को मानसिक शान्ति मिलती थी। वह शिमला छोड़कर दिल्ली चला गया। एक धार्मिक सेवादार बन एक इरानी लड़की जिसका विवरण बिन देखे मैंने दिया, उससे शादी कर ली। कई वर्षो बाद मुझे एक पत्र फरहाद का आया कि उसकी इच्छा मुझसे मिलने की है। वह भारत छोड़कर कनाडा जा रहा है। किन्तु दोबारा कभी नहीं मिला।