मेरे अनेक मित्रों ने मुझ से आग्रह किया कि मैं अपने परामनोवैज्ञानिक अनुभवों को एक पुस्तक के रूप में लिखूं । ऐसे अनुभव अर्थात् घटनायें साधारण व्यकितयों के साथ नहीं घटती हैं। पौराणिक कथाओं, सिद्ध साधु महात्माओं अर्थात् बिरले ही मनोविज्ञान के क्षेत्र में सुनने को मिलती है।
विदेश तथा भारत के शोधकर्ता विद्वानों ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं, किन्तु स्वयं वह विद्वान स्वयं इस प्रकार के अनुभवों से वंचित रहे हैं। उनके पास तकनीकी मनोवैज्ञानिक भाषा है, प्रयोग में लाये गये उपकरण हैं किन्तु स्वयं साधारण आभास या स्वप्न की घटनायें ही है।
मौखिक व्याख्यान देना विद्वुता, ज्ञान, भाषा पर अधिकार तथा बोलने की कला व साहस पर निर्भर है। वाणी पर संयम तथा शब्दों में विचार व्यक्त करना भीा हर व्यक्ति को नहीं आता है।
मैं प्रायः रेडियो-पत्र-पत्रिकाओं तथा दूरदर्शन के लिये एक अनोखे नये विषय अर्थात् ‘परामनोविज्ञान’ सम्बधी अपने दीर्घकालीन सत्य अनुभवों पर लिखता व बोलता रहा- किन्तु पुस्तक के रूप में मेरे अनुभव दूसरों द्वारा तथा स्वयं मुझे कठिन लग रहा था। क्रमबद्ध संयोजन के लिये घटित घटनाओं के क्रमबद्ध स्मृति पटल पर चल चित्र की तरह लाना अपेक्षाकृति कठिन था।
इस बीच शिमला में मिलने वाले मेरे एक मित्र श्री माया राम जी ने (रिटायर्ड स्टेट आफिसर यहां के नगर पालिका में रहें हैं) अपनी रूचि अनुसार दो पुस्तकें खरीदी, एक है भारतीय साधु, संत और सन्यासी तथा दूसरी है पराविध्या किंतु यह पुस्तकें मुझे यह कहते हुये भेंट की कि यह मेरे रूचि की हैं। काफी आग्रह के पश्चात मैंने स्वीकार कर ली और उन्हें पढ़कर मुझे यह आभासित हुआ मेरे साथ वर्षों से घटित परामनोवैज्ञानिक घटनायें यदि पुस्तक रूप् में संकलित हों तो शोधकर्ता तथा साधारण पाठक को सम्भवतः प्रेरित करेंगी।
इस परामनोवैज्ञानिक रहस्यमयी सत्य घटनाओं को साकार करने में हिमाचल रामपुर बुशहर के शिमला स्थित युवा कर्मठ पत्रकार श्री जगमोहन शर्मा, संस्थापक JPR Production शिमला की प्रेरणा तथा योगदान विशेष हैं, मैं दोनों महानभावों का आभार व्यक्त करता हूं। पुस्तक संकलन के लिये उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सीमा मोहन का सहयोग सराहनीय है तथा शर्मा जी के सुझाये गये मित्र कर्मवीर कमल का भी आभार व्यक्त करता हूं।
लेखकः
प्रो. एम.सी. सक्सेना
चिकित्सा मनोवैज्ञानिक, मूर्तिकार, चित्रकार
शिमला-98160-85456