सोलन में चंबाघाट की गुफा में एक ऐसे सन्यासी से मेरी मिलने की तीव्र इच्छा हुई। उनसे मिलना कठिन था। वह हड्डियों वाला एक साधारण गांव वाला जैसा व्यक्ति था। हम दोनों कृतज्ञता के भाव से फिर कुछ क्षण अन्दर धूने के पास बैठ कर आशीर्वाद लेकर लौट आये। उनका चित्र मेरे पास है।
दोबारा एक बार फिर मैं सोलन उसी महाविद्यालय में परीक्षण के लिये गया। तब उन महात्मा की खोज में जम्मू से दो एडवोकेट उनके दर्शनार्थ राह में मिल गये। फिर उनके दर्शन हुये।
इसके पश्चात सोलन महाविद्यालय में Examiner बन कर शिमला से गया। वहां के परिचित क्रिश्चियन कमर्शियल आर्ट के प्रवक्ता श्री बलबीर सिंह मुझसे मिलकर बोले कि चलो। आपको एक साधु से मिलवायें। परीक्षा समाप्त होने के पश्चात वह मुझे एक अन्य गुुफा में जटोली वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध सन्यासी से मिलावायेंगे क्योंकि मुझे विचित्र रहस्यवादी साधु-सन्त तथा अन्य लोगों से मिलने का शौक है।
मैं उनके साथ उनकी मोटर बाईक पर कुछ किलोमीटर सोलन से दूर राजगढ़ रोड़ पर जटोली वाले प्रसिद्ध न्यासी से मिलने पहुंच गया। सड़क के ऊपर पास ही गुफा थी। मेरी कल्पना से परे बाहर एक मैदान था। उसी के एक ओर बड़े कमरे जैसी गुफा थी। प्रवेश करने पर दाईं ओर एक मिटटी पत्थर का स्टेज नुमा आसन पर जटाधारी युवा सन्यासी सफेद कपड़ें पहने बैठे थे। इशारे से हम दोनों को नीचे सामने पड़ी दरी पर बैठने को कहा... मैं आश्चर्य चकित था क्योंकि उस गोलाकार गुफा के भीतर सामने बाईं ओर एक लोहे की गोदरेज जैसी अल्मारी रखी थी और गुफा में सूर्य प्रकाश होने पर भी बिजली का बल्ब जल रहा था।
जैसे हम दोनों महात्मा जी के सामने नीचे आसन पर बैठे उन्होंने किसी सेवादार द्वारा चाय का आदेश दे दिया और एक सिगरेट की डिब्बी हमारे क्रिश्चियन साथी प्रवक्ता की ओर ऊपर आसन से फेंक दी। कुछ वार्ता के बाद ही कुछ क्षणों में दो गिलास चाय हम दोनों के लिये आई। मेरा परिचय पाकर बोले कि वह मुझे कई वर्षो से एक मेरे परिचित नाहन के रहने वाले श्री शिव दयाल द्वारा बुलाते रहे और आप आये नहीं। मैंने पूछा बताइये क्या प्रयोजन था। व्यस्त होने के कारण मैं नहीं आ सका। आज मिलना था सो आ गया। महात्मा जी बोले इस गुफा के बाहर एक विशाल शिव प्रतिमा बनवाने का विचार था।
मैंने कहा मैं सरकारी सेवा में किसी महाविद्यालय में प्रवक्ता हूं। अतः यहां रहकर शिव प्रतिमा बनाना सम्भव नहीं था अब आप चाहें तो शिमला से बनाकर यहां भेज दूंगा। वो बोले कि सारी सुविधा आपको मिलेगी। मैंने कहा ठीक है, मैं सोचकर बताउंगा, यहां रहकर बनाना तो कठिन है। उस समय मेरे मन में उन महात्मा की जीवनी आने लगी जो बाद में सच निकली।
फिर हमारी अन्य बातें होती रही। मैंने कहा कि महात्मा जी अभी 29 वर्ष के युवा वैज्ञानिक हैं। यहां आने से पूर्व गुजरात आपकी कर्म स्थली रही है। पर सब कुछ त्याग सन्यास लेकर यहां कैसे पहुंच गये। वह बाले बस घूमते फिरते इधर हिमाचल सोलन से कुछ दूर राजगढ़ रोड़ पर इस गुफा के सम्बध में पता चला तो यहां आकर आसन लगा बैठ गया। बड़ा सुन्दर शान्त स्थल है।
कई विभिन्न विषयों पर चर्चा होने के बाद मैंने उनसे पूछा कि आप कई वर्षो से इस क्षेत्र में हैं। आपकी जानकारी में आप के अतिरिक्त कोई अन्य सिद्ध साधु योगी या महात्मा इस क्षेत्र में है, जिनसे आप परिचित हैं या जिनके बारे में कुछ सुना हो।
कुछ सोचकर वह बोले कि केवल एक महात्मा चम्बा घाट की गुफा क्षेत्र में हैं। जो साधनारत है। इसके अतिरिक्त मेरी जानकारी में कोई नहीं है। उन चंबाघाट महात्मा से मैं पहले ही मिल चुका था।
महात्मा जी से मैंने जिज्ञासा हेतु पूछा, कृपा कर आप बतायेंगे कि जो मैंने आपके बारे में बताया वह कहां तक सत्य है। मैं परा-मनोविज्ञानिक आभास द्वारा बताये सत्य को जानना चाहता हूं। उनका उतर था... हां सब सच है।
मैंने कहा फिर यह भी बताने की कृपा करें कि सन्यास इस अल्प आयु में क्यों या कैसे ले लिया। वह मित्र भाव से मुस्कराये और बोले... कि मैं एक सत्यकथा, जो इस गुफा में घटी सुनाता हूं। उसमें आपको उत्तर मिल जायेगा।
वह कहने लगे सोलन के नाहन क्षेत्र से चार पांच लोगों का एक समूह कुछ महीनों से प्रायः अवकाश पर अपनी सुविधा अनुसार रविवार को यहां सेवाभाव से आता था। एक दिन उन भक्तों में से एक युवक ने पूछा कि मैंने सन्यास क्यों ले लिया है।
वह सब इतने पढ़े लिखे नहीं थे जो मैं बौद्धिक तर्क द्वारा उन्हें बताता या समझाता। मैंने उस युवक से कहा कि अगले रविवार को आना तब बताउंगा। वह युवा अगले रविवार को अपने साथियों के साथ अपनी जिज्ञासानुसार अपने प्रश्न का उतर जानने के लिये आया। महात्मा जी बोले... आ गये तो जिसने प्रश्न पूछा था वह आगे हमारे पास आ जाये। वह युवक आगे बढ़कर महात्मा जी के निकट आ गया। जैसे ही युवक निकट आया महात्मा जी ने जोर से एक थप्पड़ उसके गाल पर मार दिया। वह और सारे साथी उग्र हो बोले महात्मा जी यह आपने क्या किया। आप महात्मा है। इस युवक ने प्रश्न ही पूछा था कोई अपराध नहीं किया।
महात्मा जी सधे हुए लहजे में बोले मैं पूछे हुए प्रश्न का उतर दे रहा हूं।
युवक से बोले मेरे मारे हुये थप्पड़ से क्या हुआ...
वह युवक बोला दर्द हो रहा है
महात्मा जी ने पूछा कहां हो रहा है।
युवक: गाल पर हो रहा है।
महात्मा जी: दिखाओ दर्द कहां है?
युवकः यह देखा गाल लाल हो गया है
महात्मा जीः यह तो गाल और उसकी खाल है
दर्द कहां, कैसा है दिखाओ
वह युवक और सारे साथी बोल पड़े महात्मा जी आप कैसी बात करते है, दर्द महससू हो रहा है दिखाने वाली चीज नहीं है, जो आपको यह युवक दिखाये। महात्मा जी बोले नाराज मत हो, पिछले रविवार को पूछे गये प्रश्न का आज दिया गया थप्पड़ उत्तर है। ऐसा ही अध्यात्म का या यूं कहो ईश्वरीय थप्पड़ या जोर का चांटा मेरे मन पर पड़ा और मैं सब कुछ छोड़ कर उस दर्द की दवा ढूढ़ रहा हूं।
सारे खुश होकर महात्मा के सामने नतमस्तक हो गये। यह कहानी उन्होंने हम दोनों को सुना कर दोबारा फिर चाय मंगवाकर पिलाई थी।
मेरा संपर्क उनसे नहीं हो पाया। पता चला उनका स्वर्गवास हो गया था। उन की स्मृति में विशाल भव्य मंन्दिर व मूर्तियां उनके बाद भक्तों ने कई वर्ष में साकार की हैं। वर्षो बाद गुफा क्षेत्र बढ़कर पास की पहाड़ी तक विकसित होने लगा। विशेष अवसरों पर सैंकड़ों श्रद्धालु तथा पर्यटक जटोली भव्य मन्दिर जाते है। मैं भी दोबारा कुछ वर्ष पूर्व गया। कीर्तन भजन चल रहा था। उस गुफा के अन्दर देखा तो उसी ऊंचे आसन पर जटोली वाले बाबा का फोटो रखा था। गुफा से बाहर आकर मैंने कीर्तन वाली भक्तों की भीड़ में किसी से पूछा कि इतने बड़े मेले जैसे समारोह का मुखिया कौन है... मैं जटोली वाले बाबा की इच्छानुसार शिव की एक अनूठी मूर्ति फुल्वारे की शक्ल में बिना किसी मूल्य के दान करना चाहता हूं। उस मूर्ति में सिर की जटाओं से जलधारा गंगा के प्रवाहित होने की व्यवस्था है। वह भक्त बोला सोलन में ट्रस्ट के मालिक से बात करनी होगी। मैंने अपना पता, फोन नंबर, कार्ड देकर कहा कि मुझसे बात कर लें महात्मा जी की इच्छानुसार मैं शिमला का मूर्तिकार शिव मूर्ति देना चाहता हूं । कई वर्ष बीत गये भक्तों की विशाल मन्दिर के बीच मैं उनकी इच्छापूर्ति नहीं कर पाया। न किसी सम्बधित ट्रस्टी ने मेरी बात की परवाह की। आज मेरे मानस पटल पर सारे बीते संस्मरण याद आ रहे हैं।
यह विचित्र सत्य घटना परा-मनोवैज्ञानिक है। उन महात्मा की ख्याति दूर-दूर तक है। अनेकों पर्यटक तथा श्रद्धालु उस मंदिर के दर्शन करने आते हैं।