हिमाचल में बिलासपुर और शिमला के बीच दाड़लाघाट एक स्थान है। वहां एक ज्योतिषी ब्राम्हण परिवार के स्व. पंडित चंद्रमणी जी का परिचय एक मित्र जो शिमला पंजाब बैंक के एकाउंटेट पद पर थे, उनके हाथ की उंगली में पहने एक नग (रूबी) यानि माणिक मैंने देखा। मैं उस जैसा नग खरीदना चाहता था। उन्होंने बताया कि एक ज्योतिषी पंडित जी ने जो शिमला के प्रसिद्ध ग्रैंड होटल में रहते है, उन्होंने पहनने को बताया हैं। ढूंढने पर पता चला कि वह शिमला सुप्रसिद्ध देवी के मंदिर कालीबाड़ी में मिल सकते है। संयोग से वह मुझे मिल गये और बोले कि मैं उसके साथ पास के ग्रैंड होटल में उनके कमरे में चलूं। वहां बैठकर बात होगी। मैं उनके कमरे में चला गया। वहां देखा तो उनके आफिसनुमा कमरे पर उनके क्षेत्र के लोग बैठे उन पंडित जी का इंतजार कर रहे थे। मुझे बैठाकर वह उन गांव वाले परिचित श्रद्धालुओं से बोले कि वह दूसरे कमरे से जाकर बीस मिनट पश्चात मिलेंगे, तब तक प्रतीक्षा करें। मैं उन बैठे गांव वालों से बातें करने लगा कि पंडित जी के आने तक मैं ही बता दूं कि आप के खेत में किसी नाग देवता की समस्या है इत्यादि। वह बोले यही पूछने वह उन पंडित जी से आये थे।
उन पंडित जी से परिचय बढ़ता गया और मेरे सुझाव से उन्हें शिमला विश्वविद्यालय में तत्कालीन उपकुलपति श्री महरोत्रा जी की कृपा से ज्योतिषि के आधार पर किसी पद पर नियुक्ति मिल गई। उनका आना जाना यदा कदा मेरे निवास पर होने लगा। वह हरिद्वार या कभी जयपुर से नग लाकर ज्योतिष अनुसार अपने भक्तों को देते थे। मैं भी उनके आने पर पूछता था कि यह छोटी पेाटली किस मूल्य की है और यथा संभव खरीद लेता था। किसी ज़रूरतमंद चाहने वाले परिचित को बिना मूल्य दे देता था।
एक दिन पंडित जी शिमला के गेयटी थियेटर के पास मालरोड़ शिमला में काफी समय बाद मिले। मैंने पूछा पंडित जी क्या आज अमुक नग आप के पास है। वह बोले ‘ है तो किन्तु बहुत मूल्य का होने के कारण आप खरीदने में समर्थ नहीं है।‘ मैंने कहा कोई बात नहीं दर्शन तो कराइये। उन्होंने किसी ग्राहक भक्त के बारे में बताकर बड़ी बेरूखी दिखाते हुये मना कर दिया। मैंने सहज रहते ही कहा कि अब आप का यह नग वाला व्यापार समाप्त हो जायेगा। कुछ दिनों कहीं राह में पडित जी मिल गये। मैंने पूछा पंडित जी आज कल आप दिखाई नहीं देते। वह बोले अब सीमेंट फैक्ट्ररी में एक गाड़ी लगा रखी है। वह नगों का लेन देन समाप्त हो गया। मेरे द्वारा कहे शब्द सच हो गये।
शिमला के लोअर बाजार में जगदम्बा ज्वेलर नामक एक ज्वेलरी की शाॅप है। कई साल पहले कुछ खरीदने गया तो उनसे परिचय हो गया। उनसे परा-मनोवैज्ञानिक आधार पर मालिक के पुत्र से यदा कदा बात हो जाती थी। एक दिन मैंने मालिक से कहा कि यह शाॅप बड़ी तंग व छोटी है वह बोले दोनों ओर दुकानें है। पीछे दीवार हैं इस शाॅप को बढ़ाने या बड़ा करने की गुंजाइश ही नहीं हैं। मैंने सहानुभूतिपूर्ण उनसे कहा- कैसे बड़ी होगी, नहीं मालूम किन्तु यह शाॅप बड़ी हो जायेगी और एक नीलम नग मंगाकर मेरे लिये रख लें। मैं शिमला से बाहर जा रहा हूं। लौटने पर उचित लगने पर ले लूंगा।
मूल्य की चिंता न करें। कई महिनों पश्चात मैं शिमला लौटा तो उस शाॅप पर गया तो देखा वह बंद थी। कुछ काम हो रहा था मैंने पास दुकानदार से पूछा तो पता चला कि पास मालरोड़ पर जाने वाली सीढ़ियो की किसी शाॅप पर शिफ्ट कर गये हैं। मैं ढूंढता वहां पहुंचा और मालिक से नीलम के मंगाये नग के बारे में पूछा। तब उन्होंने बताया कि मेरे कथन के अनुसार वह पहली शाॅप बड़ी हो रही है। मैंने आश्चर्य से पूछा कैसे क्या पास की शाॅप खरीद ली या पीछे की शाॅप को बड़ा करने की आज्ञा मिल गई।
यह भविष्यवाणी भविष्य दर्शन पूर्वाभास की मनोवैज्ञानिक घटना है।
एक मित्र मोती खरीदने के लिये बाहर से आये, बंगाली नग विक्रेता से बात कर रहे थे। मुझे पास में बैठा देखकर बोले कि मैं उन्हें राय दूं कि कौन सा लूं। काफ़ी देर मोल भाव होने के बाद किसी निर्णय पर न पहुंचने पर मैंने कहा सुभाष शर्मा जी इंजीनियर, मैं आप दोनों के मन की बात बता रहा हूं कि आप क्या देना चाहते और मोती वाला क्या लेना चाहता है और बीच की इस राशि पर सौदे को अंतिम रूप दीजिये। वह बेचने वाले बंगाली राजी हो गये और मुझसे अपने बारे में कुछ जानने के लिए उत्सुकता से बोला कि मैं आपसे कुछ जानना चाहता हूं।
मैं वहां से उठकर किसी अन्य स्थान पर उससे बात करने चला गया। उसने कुछ पूछा, मैंने कहा कि यह बताओ आपने दिल्ली में किसी मुस्लिम को गुरु बनाया है। उससे मिलकर यहां शिमला आये हो। उसने हां कहा। उस वार्तालाप के पश्चात मैंने उससे पूछा कि आप क्या अमुक शिमला के बंगाली आफ़िसर के संबंधी है, उसने स्वीकृति में कहा कि मैं उनका साला हूं और नौकरी न मिलने पर यह नगो का व्यापार करने लगा। मैंने उससे अपने मित्र राजेश के लिये एक त्रिकोण वाला मुंगा खरीदने के लिये मांगा। उसने नगों के सारे पैकेट देखे और बोला कि त्रिकोण मूंगा नहीं हैं।
मैंने कहा फिर दोबारा देख लें। आपके पास मूंगा है। उसने फिर सारे पैकेट बड़ी सावधानी से देखे तथा अन्य जेबें और बैग को तलाश कर कहा कि वैसा मूंगा नहीं है। मैंने कुछ पैकेट में से एक बड़े से पैकेट को देखकर कहा इस पैकेट को देखो उसने कहा इसमें कहां होगा यह पैकेट किसी अन्य नगों का है। मेरे आग्रह पर जब खोला तो अन्य कहे जाने नगों के पैकट में एक त्रिकोण मूंगा मिल गया। मैंने वह, जो मूल्य बताया खरीद लिया। दूसरे दिन राजेश को त्रिकोण मूंगा की आवश्यकता थी। खोजने पर भी वह उसे शिमला में किसी ज्वेलर के पास नहीं मिला। मैंने उसकी बात सुन अगले दिन मिलकर उसे वह त्रिकोण मूंगा बिना मूल्य दे दिया।
इस घटना को क्या कहा जायेगा? मेरे विचार में एक विशेष प्रकार कंी सोच में शक्ति होती है। वह पांच इंद्रियों से परे छठी सातवीं ‘सिक्स सेंस’ या मिली जुली अथवा कोई और आंतरिक सूक्ष्म या शक्ति होती है। जो दैविक नियमानुसार अपना कार्य अदृश्य से साक्षात दृश्य में परिणित कर मानव को अचम्भित कर देती है। साधारण मानव के लिये वह असम्भव है किन्तु असाधारण मानव के लिये सम्भव है। ऐसे अनेकों उदाहरण जीवन में देखने को मिलते है। किन्तु जान पाना या कर पाना हर व्यक्ति के लिये साधारणतयः कठिन है।