मैं सपरिवार धर्म कथाओं में वर्णित नैम शरणी तीर्थ स्थान पर दूसरी या तीसरी बार गया। वहां किसी ने बताया कि यहां की प्रसिद्ध श्री ब्यास गद्दी वाला मन्दिर दर्शनीय तथा अति प्राचीन है। मैं परिवार के सदस्यों से कहकर उस मन्दिर में आ गया कि आप लोग अन्य मन्दिरों के दर्शन करें।
मैं थोड़ी सी चढ़ाई चढ़कर जब श्री व्यास जी के मन्दिर पहुंचा तो वहां एक विशाल यज्ञ करने वाले का बोर्ड लगा था। जिसमें कुछ समय पूर्व में चाह कर भी जा नहीं पाया था। पूछने पर पता चला कि व्यास गद्दी वाला मंदिर कहां है। पुजारी युवा पंडित प्रसाद दे रहा था। प्रसाद लेते समय उसके हाथ पर जैसे ही मेरी दृष्टि पड़ी उस पुजारी से कहा कि तुम्हारी कोई समस्या चल रही है। वह जिज्ञासा से सच जानने के लिये पूछने लगा। कुछ क्षण बात करने के पश्चात मैंने एक युवा पंडित पुजारी को भी पास के मन्दिर से बुला लिया। जो पूछा मैंने बता दिया। जो दोनों को ठीक लगा।
वापस लौटते हुये मैंने श्री व्यास गद्दी वाले पुजारी से अन्दर जाकर सजे फूलों में से एक फूल लेने का आग्रह किया। उस युवा पुजारी ने कहा कि अन्दर जाना वर्जित है। उसके बाहर एक और घेरा बना था। उसमें भी फूल बिछे थे, वहां भी दर्शक नहीं जा सकते थे। पुजारी उसके बाहर बैठकर प्रसाद देता था। अन्दर जाने का अधिकार केवल उसके परिवार के विशेष सदस्य को
ही था।
मैंने कहा- मैं आपकी आज्ञानुसार अन्दर किसी भी घेरे में प्रवेश नहीं करूंगा, किन्तु यदि सम्भव हो एक फूल मुझे प्रसाद स्वरूप देने की कृपा करें। उसने एक फूल मुझे उठाकर दे दिया। वह वही फूल था जिसे मैं उन नीचे बिछे हुये फूलों में से लेने के लिये सोच रहा था। उस फूल रूपी प्रसाद को पाकर मैं संतुष्ट भाव से लौटा तो दोनों युवा पुजारी मुझे कुछ दूर विदा करने आये और फिर मिलने की बात की।
जब मैं लौटा तो मेरा परिवार मेरी प्रतिक्षा में खड़ा था। वहां चलकर जब हम लोग जैसे ही मुख्य जल सरोवर के पास पहुंचे चकित रह गये। सालों के पश्चात वह प्राचीन काल से प्रसिद्ध पवित्र सरोवर खाली था। केंद्र में केवल कुछ जल था। पूछने पर ज्ञात हुआ, उस सरोवर की सफाई मशीन द्वारा की जा रही है और पाइप द्वारा पूजा अर्चना हेतु कुछ जल दूसरे पास के और सरोवर स्थल पर स्थानांतरित किया गया है। वह नैमशारणी तीर्थ स्थान प्राचीन काल से ऋषि मुनियों सिद्ध साधकों और अनेकों अनुष्ठानों यज्ञों के लिये प्रसिद्ध व अति पवित्र माना गया है। वहां हजारों सालों से लाखों की भीड़ मेले के समान आती जाती रहती है। दूर तक और उस क्षेत्र में अनेकों मेले की तरह दुकानें इत्यादि है।
किन्तु उस दिन उस समय जब हम सारे पारिवारिक सदस्य गये तो केवल कुछ भक्त ही दिखाई पड़े। मुझे अति आश्चर्य हुआ। उस तीर्थ स्थली पर भी अनायास ही दर्शन करने का प्रोग्राम बना था। सरोवर कुंड का बाहरी घेरा कभी खाली नहीं रहता। मेरी केवल परिकल्पना थी। शिमला से जाना कुछ कारणों से कठिन है, क्यों न दोबारा वहां जाकर मंदिरों के दर्शन किये जाये। कभी बहुत ही अल्प आयु में गया था। धुंधली सी कल्पना बाद में सालों बाद चमत्कारिक रूप से साकार हुई और व्यास गद्दी पर वही फूल पड़ा जो मैं चाहता था। सैंकड़ों पड़े फूलों में से उठा कर मुझे दिया।