मैं जब लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ता था तो कुछ सालों के लिये अपने एक सम्बधी के परिचित परिवार में रहा। उनके मकान मालिक के स्वर्गवास के पश्चात वह घर छोड़कर सब अन्य स्थान पर कुछ दिनों के लिये चले गये।
मैं उस दो मंजिला घर में अकेला था। मुझे बहुत तेज बुखार था। रात भर बेहोशी की दशा में पड़ा रहा। सहसा प्रातः लगभग चार बजे द्वार की घन्टी बजी। मैंने बड़ी कठिनाई से उठकर द्वार खोला तो यह देखकर चकित रह गया कि मेरे पिजा जी सामने खड़े थे। जो सौ किलोमीटर से भी अधिक दूर दूसरे पैतृक नगर शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) से चलकर इस आभास के कारण आये कि मैं बीमार हूं।
मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। अपने पिता जी को बिना किसी प्रकार भी सूचित किये या बताये वह कैसे आ गये। इससे पूर्व वह न कभी आये थे और न कई महीनों पूर्व मेरी फोन या पत्र द्वारा कोई बात हुई थी। ना ही कोई समाचार के आदान- प्रदान का साधन या संपर्क उस समय था।
इस विचित्र घटना को टेलीपैथी कहा जायेगा - सम्भवतः मेरे मन के अज्ञात सूक्ष्म विचारों में अपने पूज्य पिता जी को याद किया होगा जिसकी सूक्ष्म तीव्र तरंगों ने पिता जी को लखनऊ तुरन्त पहुंचने का निर्देश आभासित करवाया- मन की सूक्ष्म तरंगें बिजली की तरंगों से भी तीव्र होती है जिसमें वह देश, काल, पात्र की सीमा लांघ कर अपना कार्य करती है।
शिमला से सोलन राजकीय महाविद्यालय में सन 1970/71 में परीक्षा लेने के बाद सोलन के एक होटल में ठहर गया। मिलने वाले विद्यार्थी काफी रात तक बातें करते रहे। देर रात मैं सो गया। स्वप्न में मुझे लगा कि एक सर्प शिमला में मेरी बड़ी पुत्री के बिस्तर के पास है। प्रातः उठकर में अन्य कार्यों को छोड़ शिमला लौट गया। घर पहुंच कर मैंने अपनी पत्नी से पूछा कि सब कुशल है। कल रात कोई अप्रत्याशित घटना तो नहीं घटी... तो उन्होंने बताया कि एक सर्प का बच्चा बड़ी पुत्री के बिस्तर के पास दीवार पर चढ़ रहा था।
इस घटना का समय वही था जब सोलन के एक होटल में स्वप्न अवस्था में देख रहा था।
मेरी पत्नी काफी बीमार होने पर अपने मायके में थी। मैं लगभग 40 किलोमीटर दूर अपने पैतृक घर में अनायास ही सोचने लगा कि मुझे तुरन्त अपनी ससुराल जाना चाहिये। मेरी पत्नी को मेरी उपस्थिति अति आवश्यक है। बिना किसी सूचना के मैं लगभग एक फरलांग बस स्टेशन पर पहुंच कर गंतव्य पर जाने वाली बस का इन्तजार करने लगा। कई बसें उधर जाने वाली आईं किन्तु कोई बस रोकने पर उस स्थल पर नहीं रूकी। वैसे मुझे आभासित हुआ मेरी पत्नी अपने भाई के साथ स्वयं आ रही है। सामने देखा तो बिना किसी पूर्व सूचना के एक दूसरी दिशा से आने वाली बस से मेरी धर्मपत्नी अपने भाई के साथ आकर सामने खड़े हो गई।
मुझे आश्चर्य हुआ। घर पर पहुंच कर बीमार अस्वस्थ पत्नी स्वस्थ होकर साधारण बात कर रही थी। ससुराल वालों ने फोन किया कि वह कई सप्ताह से बीमार है और जाने लायक नहीं थी किन्तु वह बीमारी की दशा में अपने आग्रह पर चली गई।
मन सारे क्रियाकलाप का कारण है। किन्तु इसे साधारणतयः समझ पाना या उस के अनुसार कर्म कर पाना कठिन है। योगी मन द्वारा ही गुफ़ा-बर्फ-गर्मी- बिना भोजन रह पाते है और त्रिकाल दर्शी होते हैं।
मेरी आत्मा से जो उनका सम्बंध था, यह उसका ही प्रतीक था। मेरी माता जी का मेरी अल्प आयु में स्वर्गवास के पश्चात उन्होंने ही मुझे माता-पिता के समान पाला था। यह टैलीपेथी थी। पूर्वाभास की एक अनोखी घटना है जो उन्हें दूर रखकर मेरी बीमारी की दशा का आभास हुआ और दूर से चलकर ठीक समय जब मैं अचेतन या अर्धचेतन अवस्था में उन्हें ही याद कर रहा था। वह रातों रात चलकर सुबह तड़के लखनऊ मेरी देखरेख के लिये आ गये।
कुछ साल पूर्व एक समाचार पत्र में पढ़ा कि पिछली हिमाचल भारतीय जनता सरकार के विरूद्ध पंजाब के कांग्रेस नेता का पत्र छपा था। मुझे वह समाचार पढ़कर ऐसा लगा कि उस समय की सरकार चली जायेगी। जबकि उसके सम्बंध में एक यहां के चर्चित ज्योतिषी जो उस सरकार के शुभचिंतक जानकार थे, कह रहे थे कि वह सरकार बहुमत से जीतेगी किन्तु ऐसा नहीं हो सका और वह पार्टी हार गई।
मेरा दूर-दूर तक कोई राजनैतिक किसी पार्टी से सम्बध नहीं था, यह पूर्वाभास की घटना है।