अंग्रेज़ी शासनकाल का शिमला में उत्तरी भारत का एक प्रसिद्ध लाॅरेटो कान्वेंट ताराहाल स्कूल विशेषकर लड़कियों के लिये प्रसिद्ध है। जहां कई फिल्मी, राजनैतिक तथा शिक्षा के क्षेत्र की प्रसिद्ध छात्राएं है। यह उससे संबंधित लिख रहा हूं। एक दिन वहां प्रधान प्राध्यापिका ‘श्रीमती बराॅडा’ ने मुझसे आग्रह किया कि उन्हें अपने परा-मनोवैज्ञानिक आभास द्वारा उन की सोची हुई बिना बताये घटना के बारे में बताउं ताकि उसकी सत्यता का प्रमाण मिल सके। मैंने मन में किसी ऐसी घटना को सोचने के लिये कहा जो इस भारत देश की ना हो। यह मेरा एक कठिन परीक्षण था। उनके सोचने के पश्चात मैंने उन्हें बताया कि उन दिनों स्काॅटलैंड से पानी के जहाज द्वारा मंगाये विशेष प्रकार के जूते आ रहे हैं क्या सच है? मैंने पूछा वह हतप्रद्ध रह गई और मैं भी चकित था कि जहां कभी न मैं गया न कभी किसी से इस संदर्भ की बात हुई। वह दूरगामी घटना कैसे चरितार्थ हुई।
यह घटना लगभग तीस पैंतीस साल पूर्व की है। किन्तु आज भी 29 जुलाई 2017 को यह लिखते हुये सारा दृश्य बातचीत का साकार हो गया है। मन को अति सूक्ष्म तरंगे Micro Wave से भी तीव्र गति से कहीं प्रवेश कर सकती है। इस मन के लिये देश, दीवार-दूरी-भूत, भविष्य तथा वर्तमान सबको को जानने की क्षमता होती है। इसे ‘त्रिकालदर्शी‘ कहा जाता है।
एक प्रसिद्ध व्यापारी के बेटे तथा उसके पिता ने मुझसे कहा कि उनको विदेशी एनआरआई दामाद मिलना चाहता है। मैंने कहा कि वह अगले दिन फ़ोन कर ले। दूसरे दिन उस दामाद का फोन आया। मैंने उसे एक घंटे बाद मालरोड़ शिमला पर मिलने को कहा वह बोला कि आप मुझे पहचानेंगे कैसे? मैंने बताया फ़ोन पर सुनी आवाज़ से मैं उन्हें भीड़ में भी पहचान लूंगा।
मैं जब पहुंचा तो भीड़ में बताये गये नाम से संबोधन कर पहचान कर रिज पर ‘आशियाना’ रेस्तरां में हम दोनों बैठ गये। मैंने पूछा कि क्या पूछना चाहते है? वह मुझे अपरिचित मानकर संकोच में थे, तो मैंने उसे कागज़ पर लिखा देकर कहा कि आप यही जानना चाहते हैं। वह हैरान थे। मैंने बताया एक घंटे पूर्व जब उनका मिलने के लिए फोन आया तभी मैंने पूछने से पूर्व सारे प्रश्न लिख दिये, जो सब सच थे। मैंने बातचीत में यह भी बताया था कि वह जर्मनी में एक नये व्यापार को आरम्भ करना चाहते हैं । उसकी लैंड में क्या है इत्यादि।
यह मेरी दृष्टि में अदभुत परा-मनोवैज्ञानिक ऐसी घटना है जिसमें मन के द्वारा काल-पात्र- स्थान, दूरी को आभासित करने में देशों की सीमा कोई बाधक नहीं है। हमारे ग्रंथों में मन की शक्तियों द्वारा भूत, भविष्य, वर्तमान, युग दृष्टा की तरह साकार होने लगती है।
मेरे लखनऊ विश्वविद्यालय चिकित्सा मनोविज्ञान के सहपाठी का लगभग 34 साल बाद यूएसए से फोन आया। 1959 के पश्चात किसी प्रकार का कोई संपर्क या जानकारी एक दूसरे की नहीं थी। वह अमेरीका में वशिगंटन में Mental Hygene Institute का निदेशक था। वह मेरी परा-मनोवैज्ञानिक रूचि से भली भांति परिचित था। फोन पर उसकी आवाज़ सुन कर मैं चकित रह गया। उसका नाम था श्री आर. के. मिश्रा। मैंने कहा- मिश्रा जी कहां से बोल रहे हैं और मेरा फोन नंबर कैसे कहां से मिला। उसने कहा कि क्या मैं अभी भी परा-मनोवैज्ञान में रूचि ले रहा हूूं। मैंने कहा- हां। मैं बता रहा हूं कि आप अपने कार्यालय में कहां बैठे है, और सामने कहां किस जगह एक लेडी टाइपिस्ट बैठी है। वह चकित थे। यह कैसे होता है। यद्यपि उसे मेरी अनेकों घटित घटनाओं का ज्ञान था। मैं वह घटनायें बताता था। वह बहुत कुशाग्र सहपाठी मित्र था जिसके सामने में अनेकों घटित होने वाली घटनायें पूर्व ही बता देता था। वह विदेश चला गया और मैं चिकित्सा मनोविज्ञान को छोड़कर कलाकार, लेखक, कवि बन गया। मैं लखनऊ विश्वविद्यालय तथा लखनऊ में अंग्रेज़ी दैनिक ‘पाइनियर‘ की सह संपादक की नौकरी छोड़कर शिमला हिमाचल प्रदेश में राजकीय कला तथा राजकीय महाविद्यालय में आ गया।