भारत में वैदिक चिंतन या दर्शन के अनुसार इस गहन व जटिल रहस्य को समझने के लिए परा तथा अपरा विद्या का नाम कहा गया। परा ब्रम्ह को जानने व साक्षात्कार करने की विद्या कहा गया और अपरा विद्या को जीवन के अन्य अनेक पक्षों को जीने की विद्या माना गया।
भारत में आत्मा, मन, शरीर के सूक्ष्म रूपों व क्रियाकलापों पर गहन चिंतन हुआ है। यहां अध्यात्म को भौतिक ज्ञान से श्रेष्ठ माना गया क्योंकि भौतिक को नाशवान कहा गया है।
पाश्चात्य देशों में भौतिक जीवन पर अपेक्षाकृत अधिक बल दिया गया है। यदि सतयुग, त्रेता, द्वापर की अपेक्षा कलयुग अर्थात आधुनिक शताब्दियों की बात करें तो सोलहवीं से अठारवीं शताब्दी में दर्शन शास्त्र से निकलकर उसकी ही एक शाखा मनोविज्ञान ने, मन के विभिन्न सूक्ष्म रूपों, क्रियाकलापों को समझने के लिए प्रयोगशालाओं में तथा स्वतंत्र रूप से प्रयोग करना आरंभ कर दिया जो एक कठिन कार्य है। मन असीमित, सूक्ष्म, अदृश्य किंतु सर्वव्यापी तथा शक्तिशाली है। यूं, दिखने में शरीर तथा भौतिक पदार्थ अधिक शक्तिवान लगते है।
कई सदियों तक पाश्चात्य जगत में अनेकों दर्शन शास्त्रियों, चिंतकों, वैज्ञानिकों ने अपूर्व ढंग से प्रकृति तथा मानव जीवन को समझने जानने के सार्थक प्रयास किए है। आज भी विश्व के वैज्ञानिक नासा द्वारा सृष्टि के रहस्यों को जानने के लिये अंतरिक्ष में वैज्ञानिक उपकरणों से लैस आ जा रहे हैं।
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने जब यह पाया कि मन, मस्तिष्क व्यवहारिक जीवन का मूल कारण हैं तो वह इस पर खोज करने लगे। प्रयोगों में ऐसे असाधारण लोग भी सामने आये जिनके मन की शक्तियां सामान्य मनुष्य से परे या अतिरिक्त व अलग थी। इस प्रकार मनोविज्ञान के साथ परा मनोविज्ञान के अध्ययन का एक अनोखा विषय मानकर अध्ययन होने लगा।
आज से लगभग 60 वर्ष पूर्व लखनऊ विश्व विद्यालय उत्तर प्रदेश में स्नातक होने के नाते मेरी रूचि मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाओं में रही है। इससे पूर्व छोटी आयु में मुझे अनेकों परामनोवैज्ञानिक आभास होते रहते थे जिनके बारे में मुझे कोई विशेष जानकारी नहीं थी। सुनी हुई पौराणिक कथाओं तथा अलिफ़ लैला, (अरेबियन नाइट) हिंदी साहित्य तथा प्रत्यक्ष बड़ी आयु के लोगों से कहानियां, विचित्र साधु संतों की घटनायें जीवनियों का प्रभाव मन पर पड़ता रहा। मैं अंतर मुखी होने के कारण प्रायः एकांकी सोचता था कि सुनी हुई विचित्र रहस्यमयी घटनायें घटना क्या सम्भव है.....क्या साधारण मानव में आंतरिक असामान्य शक्ति होती है? मैं लगभग तब 5 वर्ष का था तो सोते हुए श्री कृष्ण सम्बन्धी उनकी जीवनी बोलता था, ऐसा परिवार के सदस्य बताते थे।
बड़ी कक्षा में आते-आते परीक्षा में आने वाले प्रश्न क्रमबद्ध मुझे आभासित हो जाते थेए किसी व्यक्ति को देखकर उसके सम्बन्ध में अनेकों बातें मस्तिष्क में आने लगती थी।
अभी आरंभिक शिक्षा के बाद जब मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा अध्ययन के लिये गया, तो वहां चिकित्सा मनोविज्ञान का विषय लिया। उस समय भारत में कलकता के अतिरिक्त यह विषय किसी विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाता था। लखनऊ विश्वविद्यालय में यह विभाग नया ही उस समय के उपकुलपति प्रो. के. प्रसाद तथा अन्य दर्शन शास्त्र के विद्वानों के प्रयास से स्थापित किया गया था। अतः कई विदेशी अमेरिकन प्रख्यात मनोवैज्ञानिक भी लेक्चर के लिये बुलाये जाते थे जैसे Gardner Murphy तथा विश्व प्रसिद्ध भारतीय मनोवैज्ञानिक डाॅ. एच. एस. अस्थाना... इत्यादि।
जब मैंने चिकित्सा मनोविज्ञान के लिये एक प्रयोगात्मक पुस्तक ’क्राफ्ट एंड शनीला‘ की सम्मोहन का शिक्षा में प्रयोग पर पढ़ाई जाती थी, जिसमें लिखा था कि किस प्रकार विदेश में कठिन विषय जैसे गणित या कविता इत्यादि विषय सम्मोहन द्वारा बच्चों को अर्धचेतन मानसिक अवस्था में लाकर याद करवाये जाते है। चेतन अवस्था में लाने पर शिक्षक द्वारा बोले विषय बालक बड़ी सरलता से याद कर लेते है।
इस प्रयोग को पढ़कर मुझे प्रथम बार यह आभासित हुआ कि मैं भी किसी व्यक्ति के बारे बिना पूर्व परिचय या जाने हुये उसके सम्बन्ध में बता सकता हूं। उस समय तक मैं चित्रकला में रूचि रखने वाला मनोविज्ञान का विद्यार्थी विभाग में जाना जाता था। यूं, मैं अपने छात्रावास में चिंतनशील कवितायें लिखता था और चित्र बनाता था। अंग्रेजी की कक्षा में विश्व प्रसिद्ध कवि लार्डस वायरन, कीटसए बर्डसवर्थए शैली की कविताओं को कक्षा में सुनकर उनके विचारों के विपरीत कवितायें अंग्रेजी भाषा में लिखता था।
उसी समय मेरी रूचि परा-मनोविज्ञान में स्वतः ही प्रभावित होने लगी। मैं अपने साथी विद्यार्थियों को बिन बताये उनके मन में सोची बात या दृश्य बताने लगा। सर्व प्रथम मेरी सहपाठी भारत की प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी तथा प्रथम अर्जुन अवाॅर्ड पाने वाली मिस मीना शाह के पूछने पर बताया कि वह अपने मन में कोई दृश्य या घटना सोचे और मैं उसे बताने का प्रयास करूंगा और उसे बताया कि उसके एक सम्बन्धी चचेरे भाई पाकिस्तान से भारत लखनऊ अपने दांत की बीमारी के लिये कैसे व क्यों आने वाले है।
यह पहली घटना परा-मनोवैज्ञानिक मैंने हूबहू जैसी सोची गई बता दी। उस प्रश्नकर्ता और मुझे भी इस अदभुत घटना की सच्चाई पर आश्चर्य हुआ। इसके बाद अपना मन एकाग्र करने पर मैं अनेकों देश-विदेश की सहस्त्रों घटनायें बताने लगा।
उस समय मेरे एक प्रो. हरी शंकर अस्थाना जो मनोवैज्ञानिक परीक्षण के लिये विश्व प्रसिद्ध हुये तथा सागर विश्व विद्यालय मध्य प्रदेश के कुलपति भी रहे है, वह मुझे मनोविज्ञान के कुछ विषय पढ़ाते थे। वह एक चिंतनशील, अनुशासित अपने समय के प्रोफेसर रहे हैं। अपने शोध कार्य के लिये विदेश जा चुके थे और उस समय के अनेकों विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञनिक तथा दर्शनशास्त्र के विद्वानों से मिल चुके थे।
मैं रटने वाले विद्यार्थियों से भिन्न खामोश तबियत अंतरमुखी, सृजनात्मक सोच वाला, एकाकी ऐसा विद्यार्थी था जो प्रचलित मनोवैज्ञानिक परीक्षणों, शिक्षा पद्धति, सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था से अधिक संतुष्ट नहीं था। आज और उस समय जो विश्व में मानव परीक्षण किये गये थे उनमें मुझे त्रुटियां दिखाई देती थी। अतः अपने विद्यार्थी जीवन में एक व्यक्ति की क्षमताओं सम्बन्धी ’थ्री डी पर्सनेलिटी टेस्ट‘ मूर्तिकला तथा मनोविज्ञान के मिश्रण से बनाया जिसकी उपयोगिता मानकों की वैलिडिटी मान्यतायें सिद्ध की तथा T.A.T. Projective Test जो विदेशी प्रचलित था और आज भी है। इसे व्यक्तित्व के बारे जानने के लिये सेना, पुलिस इत्यादि में उपयोग किया जाता हैए मैंने इसे गलत सिद्ध कर भारतीय सांस्कृतिक जनजीवन पर सार्वभौमिक सुझाव दिये।
Dr. H.S. Asthana मेरे प्रोफेसर को मेरे सहपाठी Sh. R.K. Misra जो बाद में Dir. Mental Hygene U.S.A. में एक संस्थान में रहेए उन्हें पता चला मैं परा-मनोवैज्ञानिक घटनाओं को बिना विशेष पुस्तकीय अध्ययन के बताता हूंए जो सच होती हैं। मुझे ज्योतिषियों, योगियाें मनोवैज्ञानिकों या अन्य साधकों के समान किसी विशेष सुविधा उपकरण या परिस्थिति की आवश्यकता नहीं पड़ती। एक दिन Dr. Asthana ने मुझे अपने निवास स्थान लखनऊ पर बुलाया और बोले क्या मैं उनके मन में सोचे गये दृश्य को बिना बताये बता सकता हूं। मैंने हां कर दी और कहा कि कोशिश करूंगा। आप जो सोचे वह भारत से बाहर का हो, कुछ क्षणों बाद मैंने हू.ब.हू जब वह 1942 में अपने शोध कार्य की डिग्री के लिए अमेरीका गये थे बता दियाए तब एक लैंड लेडी के यहां ठहरे थे उस समय मैं पास में लखनऊ से दूर अपने पैतृक नगर शाहजहांपूर उतर प्रदेश में 4th Class में पढ़ रहा था... वह दृश्य या घटना थी।
मनोवैज्ञानिक डाॅ. अस्थाना जिस घर में यूएसए में ठहरे थे, उसकी एक लड़की के साथ लड़को की ड्रेस में लाल रंग की टाई बांध बाहर बर्फ में घूमने गये। लैंड लेडी ने एक ग्लास आरेंज जूस अस्थाना को जाने से पूर्व दिया था। वह आगे बर्फ स्थल पर उसके साथ गई। लड़की को हाथ पकड़ कर उठा रहे थे, यह दृश्य उन्हीं ने अपने मन में सोचा था। मैंने जैसे कि मैं स्वयं दृश्य देख रहा था। वह आश्चर्य चकित रह गये फिर बोले कि मैं उस समय के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों के नाम एक काग़ज पर लिखता हूं इनके बारे में मैं लिखे नाम देखकर उनके बारे में बतायें।
मैंने कई लिखे गये नामों को देखकर बताया था। एक मर चुके हैं दूसरे लाइनदार सूट पहने कैसे व्यक्तित्व वाले है इत्यादि। जब उन्होंने कहा बिल्कुल ठीक, तो मैं भी हैरान था किंतु मेरा विश्वास दृढ़ हो गया क्योंकि दोनों घटनायें बताना मेरा इस प्रकार एक मनोवैज्ञानिक विद्व़ान प्रोफेसर के सामने पहला अनुभव था।
इसके पश्चात मैं अपनी शिक्षा समाप्त कर लगभग सौ किलो मीटर अपने पैतृक नगर चला गया। इस बीच एक स्वप्न में मैंने देखा उन्हीं प्रोफेसर ने मुझे किसी परीक्षा में उत्तर पुस्तिका पर सबसे अधिक नंबर दिये हैं। मैं तब सोचता था कि अब आगे क्या घटेगाए क्योंकि उस प्रकार के दृश्य से कोई मेरा सीधा संबंध नहीं था।
वैसे ही सुबह मेरे पिता जी ने एक पोस्ट कार्ड दिया जो मनोविज्ञान विभाग लखनऊ विश्व विद्यालय से आया था। लिखा था कि मैं शीघ्र लखनऊ विश्व विद्यालय मनोविज्ञान विभाग में आ जाउं। जब वहां पहुंचा तो देखा किसी साक्षात्कार के लिए भीड़ लगी थी। मैंने भीड़ देखकर सोचा यहां साक्षात्कार में उतीर्ण होना असम्भव है। वहां कई मेरे सहपाठी भी थे।
साक्षात्कार के अध्यक्ष के तौर पर उपकुलपति बैठे थेए जो बडे़ विद्वान दर्शनशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे। कई विद्वान मनोवैज्ञानिकों के बाद मुझे बुलाया गया और मेरा चयन हो गया। सबसे कठिन कार्य मुझे दिया गया और अधिक नंबर स्वप्न में देखा गया पूर्वाभास सच हो गया।
इस बीच उतर प्रदेश के विद्वान मुख्यमंत्री डाॅ. सम्पूर्णानंद जी और तत्कालीन शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार लखनऊ में हुआ जिसमें विदेशी तथा भारत के विद्धानों, प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक, शरीर विज्ञान, नाड़ी विज्ञान, योगी, साधक इत्यादि के पत्र प्रकाशित हुये। जब मैंने पढ़ा तो मुझे कई क्षेत्रों का ज्ञान हुआ। मेरे अनुभवों की एक संक्षिप्त रिपोर्ट मनोविज्ञान विभाग द्वारा अमेरीका भेजी गई। तब मेरे सहपाठी तीव्र प्रतिभशाली युवा मनोचिकित्सक मुझे लखनऊ कई हस्तियों से मिलवाते थे कि उन्हें अपनी परा शक्ति द्वारा कुछ भूत, भविष्य, वर्तमान व अनसुलझी व खोजपूर्ण घटनाओं के बारे में बताउं। मेरा भी एक नया अनोखा शौक था कि अपनी साधारण परा शक्ति के परिणामों को आजमाउं कि कहां तक सच निकलते है। इसके लिये मैं एक मनोरंजन तथा अपने तरीके से अपने अध्ययन के नये प्रयोगों को करने में रूचि लेने लगा। कभी किसी प्रकार की परा-मनोविज्ञान सम्बन्धी शिक्षा व ट्रेनिंग का ज्ञान नहीं था।
केवल एक पुस्तक मनोवैज्ञानिक के प्रयोगों की पढ़ने को मिल गई थी। पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालय व विद्यालयों में 1916 के बाद 1918 से परा मनोविज्ञान पर शोध कार्य तथा प्रयोग हो रहे थे।
भारत में यह मनोविज्ञान की शाखा केवल योगी, संत, साधुओं, साधकों, तांत्रिकों या ज्योतिष व जादूगरों की एक विचित्र घटना के रूप में जानी जाती थी। पौराणिक कथाओं, मायावी मारीच, महाभारत के दृष्टा संजय, रामायण वेद-पुराणों के ऋषि मुनियों इत्यादि के अध्यात्मिक असीमित क्षेत्र में ही आते थे। जनजीवन में अनेकों किवदंतियां मिलती है। आयुर्वेद में पतंजलि साहित्य रचना प्रक्रिया में असाधारण घटनायें पढ़ने सुनने को मिलती है। किंतु पश्चिमी खोजों की तरह वर्तमान युग में कई संस्थान वैज्ञानिक खोज से वंचित ही है। सुना है दक्षिणी भारत और हरिद्व़ार में कोई शोध कार्य हो रहा है।
खैर, जो भी हो मेरे साथ आज 2019 तक ऐसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कई अनुभव है। जिनकी परिकल्पना कभी भी जीवन में मैंने पहले कभी नहीं की थी। कुछ अपने अनुभव मैं यहां लिख रहा हूं जिनमें......
Telepathy दूरभाष के समान परस्पर आभासित करना
Precognition पूर्वाभास
Prediction भविष्यवाणी
Psychokinesis किसी निर्जीव वस्तु में गति उत्पन्न करना
Dreams स्वपन
To Be Present elsewhere परकाया प्रवेश या सशरीर अन्यत्र दिखाई देना
Rebirth पुर्नजन्म
आकाशवाणी