एक दिन मेरे निवास पर पड़ोस में रहने वाले शिमला के धर्म परायण प्रसिद्ध सेठ मेला राम सूद के पौत्र श्री यतीश सूद जी आये। वह बोले कि मैं एक चित्र या मूर्ति बनवाने के लिए आया हूं। आप मना मत करें क्योंकि उन्होंने वैष्णों देवी से लौटते हुए जम्मू में श्री रघुनाथ मन्दिर में एक विचित्र घटना घटने के पश्चात प्रण लिया कि वह उस घटना का स्मृति चित्र या मूर्ति मुझसे बनवायेंगे।
मैंने पूछा क्या कोई उस स्थल या घटना का फोटो लाये हैं। श्री यतीश जी बोले नहीं, मैंने कहा तो कैसे बनाउंगा या उस मन्दिर में घटी घटना स्थल पर मुझे ले जाकर दिखायें।
वह बोले कि ‘उन्हें विश्वास है कि मैं वह घटित दृश्य बना दूंगा।’ यह कल्पना मेरे मन में श्री रघुनाथ मन्दिर से निकलने पर मन में आई कि वह मुझसे ही बनवायेंगे।
उनकी श्रद्धा और विश्वास देखकर मैंने हां कर दी किन्तु मैंने पूछा यदि कोई और साथ में था तो उससे बात करवायें और घटना का आंखों देखा विवरण जैसा याद हो बतायें।
दूसरे दिन उन्होंने बताया कि श्री रघुनाथ जी का मंदिर जम्मू में श्री करण सिंह प्रसिद्ध जम्मू के कांग्रेस नेता द्वारा स्थापित है। जर्मनी से लाये तथा स्थापित शिवलिंग में उन्होंने तथा एक शिमला, कैंथू के शिवमन्दिर के पुजारी तथा एक शिमला के मित्र व्यापारी ने वहां स्थापित शिवलिंग के सामने दर्शनार्थ जमीन पर बैठ गये। तीनों ने अपने अपने स्थान से पारदर्शी स्फूटिक शिवलिंग में साक्षात शिव पदमासन में बहती हुई गंगा जल पर ध्यान मुद्रा में बैठे देखा था। सामने एक सर्प के सिर पर दीपक जल रहा है। इतने पावरफुल लग रहे थे जैसे समस्त ब्रम्हांड की शक्ति उनमें ही समाई हो।
मैंने क्रमशः साथ में गये पुजारी व व्यापारी मित्र से घटित दृश्य के सम्बध में पूछा। सभी ने एक सा विवरण अपने-अपने स्थल पर बैठे एक साथ देखा था। फिर तीनों व्यक्ति उस प्रांगण में स्थापित अन्य मन्दिर बिना देखे कुछ दूर जाकर लौट आये। उन्होंने सोचा यह देखा दृश्य कहीं भ्रम तो नहीं है... और बिना अधिक तर्क के फिर उसी तरह शिवलिंग के सम्मुख बैठ
गया। दर्शकों की भीड़ आ जा रही थी।
देव की असीम कृपा से फिर वही दृश्य उन सभी तीनों व्यक्तियों ने वैसा ही देखा। मैंने पूछा कि दूर से किसी उस तरह के चित्र या मूर्ति का प्रतिबिम्ब तो नहीं पड़ रहा था। उन्होंने अपनी शंका दूर करने के लिये चारों ओर दोबारा दर्शन से पूर्व देख लिया था कहीं दूर तक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं थी।
श्री यतीश यह सारा वृतान्त सुनने के पश्चात मुझे मेरे कथनानुसार विशाल 6 फीट के चित्र के लिये एक बोर्ड, पेंट, ब्रश इत्यादि सामग्री लाकर दी। परा-मनोवैज्ञानिक चिन्तन के अनुरूप अपनी कल्पना द्वारा उस शिवलिंग वाले मन्दिर की परिकल्पना के अनुसार पुश्टि की और विजुअलाइज होने के बाद लगा कि मेरे स्थल पर कुछ कारणों से बनाना सम्भव नहीं हैं।
मैंने श्री यतीश को बुलाकर बताया कि वह इस चित्र के निर्माण के लिये कोई कमरा या स्थान जो मैं चाहूंगा उपलब्ध करवायें। वह बोले में मेरे कई होटल व कोठी है चलिये अभी देख लीजिये। मैं उनके साथ कर्मचारियों सहित चल पड़ा। वह बोले कि अमुक होटल ठीक है। मैंने कहा नहीं फिर दूसरे होटल जाकर देखा तो सारे कमरे बुक थे। एक बड़ा कमरा खाली
मिला। मैंने अन्दर जाकर देखा तो अपनी स्वीकृति दे दी। वह बोले कमाल है। यह कैसे अभी तक पर्यटकों के बावजूद खाली रहा। वह बोले इस होटल के पूर्ण बन जाने पर इसी कमरे में उनके दादा जी ने पूजा पाठ करवाया था।
मैंने कहा मुझे नहीं मालूम पर इसकी तरंगें सकारात्मक लगी और उचित प्रकाश व एकान्त में हैं। यह दूसरी मंजिल पर था। मेरी शर्त थी कि कोई कर्मचारी तथा पारिवारिक सदस्य और स्वयं वह मेरी अनुमति के बिना इस कमरे में रचना काल पूर्ण होने तक नहीं आयेगा। न ही मुझसे कोई चित्र के सम्बध में कुछ पूछेगा। उस कमरे की चाबी मेरे पास रहेगी। मैं रात या दिन में जब चाहूं चित्र बनाउंगा तथा जो सुविधा मैं मांगूगा उपलब्ध होगी। श्री यतीश ने सकारात्मक मुद्रा में हां कर कहा, ठीक है। सारी शर्त मानी जायेगी और अपने कर्मचारियों को निर्देश दिया... जैसा मैंने कहा था उसका पालन किया जाये।
मैंनें उस होटल के कमरे में अपनी कल्पना द्वारा चित्र बनाना आरम्भ कर दिया। जैसा आभासित होता रहा, तन्यमता से चित्र बनाता रहा। जब कुछ दिनों बाद लगता था... मैं हर रविवार को कहता था कि यतीश जी चित्र देख लो जैसा घटित हुआ वैसा ही लग रहा है या नहीं... वह सहमति जताते हुये कहते कि मुझे देखकर कुछ भय लग रहा है। मैंने सिर के माथे पर आई शिव की जटा को जरा सा बाल रंग द्वारा हटाकर पूछा... अब तो डर नहीं लग रहा है। वह बोले अब ठीक है। मुझे मालूम था रौद्र का भाव उसमें उत्पन्न हो रहा है, अतः जटा का वह बाल ही हटाना है।
अनेकों बार उसकी प्रतिमूर्ति बनाते-बनाते बदलनी पड़ी। शिव का शिवलिंग में बैठे बहती गंगा की लहरों पर शिव का अनुपात जलेहरी उस पर चढे़ फल धतूरा इत्यादि और समर्पण चित्र के आकार इत्यादि जैसा उस घटित स्थल का आभासित होता था, बनता रहा। जो अनुपात साधारण चित्रों का होता है, उससे अलग इस दैविक चित्र का है।
मेरे निवास की कोठी में एक बड़ा मैदान जैसा खाली स्थान है। वहां एक सपेरा सर्पो के दर्शनार्थ बीच मैदान में आया था। भीड़ देख मैं भी देखने गया। उसके पास धरती पर दो 12-13 फीट लम्बे सुन्दर सर्प थे। एक नाग और दूसरा नागिन थी। नाग का रंग क्रीम रंग और नागिन काली गाढ़े शरीर वाली सुन्दर डिजाइन की थी। उन्हें देख कर डर की बजाय एक कलात्मक आकर्षण लगा।
सपेरे ने बताया कि एक आसाम और दूसरा नेपाल से लाया है। देखिये यह नाग बासुकी के नाग परिवार का है।
मैं जब भी चित्र में सर्प पर जलता दीपक बनाता था तो उस देखे नाग देव की छवि अंकित होने लगती थी। मैंने जो छवि अंकित हो रही थी, बनने दी। जब चित्र पूर्ण बन गया तो मैंने श्री यतीश जी को बुलाकर पूछा अब चित्र ठीक लग रहा है। उन्होंने कहा सब कुछ जैसा उन्हें जम्मू के स्थापित रघुनाथ मन्दिर में शिव लिंग में देखा, वैसा ही है... पर गेंद जैसे फूलों की माला और शिवलिंग के ऊपर चारों ओर चित्रित कर दें, सम्भवतः यह उन्होंने वहां देखी होगी।
मैंने कहा ठीक है। आप अपने बागीचे या और कहीं से एक दो गेंदे के फूल देना... मैं देखकर वैसी माला चित्रित कर दूंगा।
दूसरे दिन लगभग दस बजे प्रातः मैंने चित्र वाला कमरा खोला कि चित्रित करने के लिये जब पुष्प आयेंगे तब तक कोई और कमी न रह गई हो देख लें। किन्तु जैसे ही कला कक्ष खोला सामने कालीन बिछी फर्श पर पीले गेंदे जैसे दो ताजे फूल सीधे खड़े रखे थे। उनका आकार ठीक वैसा ही था जैसा मुझे माला के लिये बनाना था। ना बड़ा ना छोटा... मैंने फूल देखकर सन्तुष्ट बड़ी लग्न से शिवलिंग के ऊपरी सिरे पर पड़ी माला चित्रित कर दी और सोचने लगा कि अब चित्र पूरा हो गया। लगभग दो घंटे बाद यतीश जी आये और बोले कि चित्र में बनाने वाले माला के लिये पुष्प नहीं मिले, न मेरी वाटिका में, न आस-पास। मैंने कहा दो फूल तो कमरे में कालीन पर रखे थे।
मैंने देखकर माला चित्रित कर दी है। यह फूल कहां से आ गये किसी कर्मचारी ने लाकर रखे होंगे... वह हतप्रद्ध रह गये, मैं भी चकित था क्योंकि जब कर्मचारियों से पूछा गया तो सबने कहा कमरे में ताला पड़ा रहता है। चाबी सिर्फ मेरे पास रहती है कोई दूसरी डुप्लीकेट चाबी इस कमरे की नहीं है। ना ही इस कमरे में जाने की किसी को इजाज़त है।
मैं और श्री यतीश जी ने तुरन्त रहस्यमयी घटना सोचकर पास की दीवारों, मालरोड होते नगर पालिका के फूलों वाले पार्क नर्सरी इत्यादि स्थानों को देखा। माली ने कहा कि यह सीजन ऐसे फूलों का नहीं है। संक्षिप्त में यह कि वह दो मिले फूल प्राकृतिक नहीं थे।
हम दोनों एक विशेष दैविक रोमांच भरे लगभग आधे घन्टे में उस चित्र वाले कमरे में लौटकर बात करने लगे। मैंने कहा यह दैविक करिश्मा ही है। जो शिव ने ऐसे विचित्र पुष्प माला के लिये चित्रित करने के लिए भेज दिये।
इसका प्रमाण एक यह भी है कि यदि शीशे, बड़े पर्दे पड़े न होते तो हवा द्वारा कहीं से पुष्प आ जाते। कमरा बंद था चाबी केवल मेरे पास थी। यदि रात को किसी समय ये टूटे फूल कोई रख भी जाता तो यह सीधे खड़े न होकर गिरे हुये होते
जबकि यह बिना मुरझाये ताजा थे।
मैंने इसे श्री यतीश उनके परिवार की श्रद्धा और अपना सौभाग्य माना। उन तीनों ने श्री रघुनाथ जी जम्मू में राजसी मन्दिर में शिवलिंग में शिव के अनूठे दर्शन किये और मैंने एक साधारण चित्रकार के रूप में देव महिमा को साक्षात देखा।
जो भी हो चित्र सम्पूर्ण हो गया जैसा श्री यतीश जी ने कहा था। फिर मैंने सोमवार वाले शुभ दिन में उस चित्र का तीन दिन प्रतिष्ठा वाला पूजन हुआ।
इस बीच श्री यतीश मेरे निवास पर आये और उत्सुकता से पूछा कि प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। आप बताइये कि मैंने उस शिव चित्र पर शिव के ऊपर क्या चन्द्रमा चित्रित किया था। मैंने कहा आपने वह रघुनाथ मन्दिर के वर्णन में नहीं बताया। अतः मैंने चन्द्रमा चित्रित नहीं किया। वह हैरान थे बोले जब चित्र होटल के कमरे में ले जा रहे थे तो निवास पर पहुंचते-पहुंचते एक अर्ध चन्द्रमा उभर आया और जलेहरी पर सफेद संगमरमर जैसे टुकड़े दिखाई पड़ने लगे, जो मैंने जानकर चित्रित नहीं किये थे।
उस 6’4 के साथ लगभग 6श् चैड़ा लकड़ी का फ्रेम जिस कारीगर ने बनाया था उसका वीजा पासपोर्ट आदि के पेपर्स दो साल से नहीं बन रहे थे। उस कारीगर को सउदी अरब आने के लिए सम्बंधित पेपर बनाने की सहमति मिल गई। उसे ढूंढता उसका कोई मित्र आया जैसे ही फ्रेम बनाने का काम उसने पूरा किया था। यह सब विचित्र रहस्यमयी घटनायें मुझे परा-मनोवैज्ञानिक इन पांच इंद्रियों से परे लगती है, घटित हुईं।
ऐसी एक विशालकाय साधारण भारतीय मूर्तियों से अलग हनुमान जी की मूर्ति श्री यतीश परिवार के गुरू संत के कहने पर शिमला के पास सुन्नी के प्राचीन प्रसिद्ध हनुमान मंन्दिर में मेरे द्वारा बनाई गई कई वर्ष पूर्व स्थापित की गई। जिसके पूरा करने से पूर्व रचना काल स्थापना समय और इसके बाद 2017 तक अनेकों असाधारण घटनायें घटित हुई है।
इस मूर्ति से मेरी कई परा-मनोवैज्ञानिक अनुभव जुड़े हुये हैं। जिसमें पूर्वाभास भविष्यवाणी तथा अन्य सूक्ष्म अनुभव सम्बंधित हैं। जिनका विवरण फिर कभी लिखूंगा।
मन की परा शक्ति उसके सूक्ष्म रूपों, क्रिया कलापों को जानने समझने के लिये मेरे विचार से आधुनिक मनोवैज्ञानिक ज्ञान तथा वैज्ञानिक प्रयोग में आने वाले उपकरण और विधियां सक्षम नहीं हैं। इन पर प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक तब तक पूर्ण सफल नही हो सकते जब तक वे स्वयं परा-मनोवैज्ञानिक न हों। इसके लिये केवल शै़क्षणिक डिग्री या अनुभव पर्याप्त नहीं है।
अन्तर मन शब्दों में व्यक्त करना एक जटिल कार्य है। अतः यह विषय अन्य भौतिक विषयों से कई रूपों में भिन्न है।
भारत में इस ज्ञान या विषय पर कोई पाश्चात्य शोधों के समान सम्भवतः कोई शोध नहीं हो रहा है। पश्चिमी विद्या केंद्रों में भी अधिक आगे शोध कार्य नहीं बढ़ सका इस परा-मनोविज्ञान की सामािजक आवश्यकता है।