सन 1980 के दशक में नौ लोगों का एक खोजी समूह इंग्लैंड तथा हाॅलैंड से भारत आया। इस समूह में डाॅक्टर इंजीनियरों के साथ एक चित्रकार था। वह सारे सदस्य वापस विदेश लौट गये। किन्तु हाॅलैंड के चित्रकार को हिमालय की पर्वत श्रृंखला इतनी पसंद आई कि वह हिमाचल शिमला में रूक गया। वह लैंडस्केप पेंटर दृश्य चित्रण का चित्रकार था।
इसके पास का चित्रकला वाला कागज समाप्त होने के कारण वह पूछता हुआ ‘रामा स्टेशनरी’ शाॅप मालरोड़ पर स्कैंडल प्वाइंट के पास पहुंचा। वहां मैं भी कुछ कला संबंधी रंग इत्यादि ले रहा था। वह विदेशी चित्रकार एक विशेष पेपर मांग रहा था दुकानदार को समझने में कठिनाई आ रही थी। अतः मैंने उसकी समस्या सुलझा दी। वह कलाकार मुझसे बात करते हुये बोला कि भारत में ‘वाॅश पेंटिग‘ विदेशी पाश्चात्य चित्र कला से भिन्न क्यों होती है। मैंने उसे पास के प्रसिद्ध ‘अल्फ़ा रेस्तरां‘ में बैठकर बताने को कहा। हम दोनों जब वहां बैठे तो वह पास के वाॅश रूम में चला गया।
मैंने बैरे से एक नेपकिन पेपर मांगकर चित्रकार की अनुपस्थिति में उसके परिवार का ब्यौरा उस पर लिख दिया कि उसका एक बीमार बच्चा एक कुर्सी पर बैठा है। उसकी मां, पत्नी पीछे खड़ी है और जिस कला विद्यालय में वह सेवारत है, वहां एक लंबी दाढी वाला युवा मूर्तिकार उसका मित्र है इत्यादि। वह चित्रकार आकर बैठा तो मैंने लिखे कागज़ पर सारा ब्योरा दिखाकर कहा कि भारतीय कला कैसे और क्यों पाश्चात्य कला से भिन्न हैं। वह आश्चर्य चकित कुछ घंटे मेरे साथ रहा। मैंने कुछ दूर जाकर पर्वतीय घाटी में दिख रहे पहाड़ी श्रृखंला को दिखाकर बताया जो परिपेक्ष इन श्रृंखलाओं का एक के बाद एक गहरे स्पष्ट और क्रमशः दूर वाली धुंधली है यही रहस्यवाद है। एक के बाद रहस्य का पर्दा, आवरण हटता जायेगा तो चित्रित चित्र धुंधला से स्पष्ट होता जायेगा और वैसे चित्रकार वाॅश पेंटिंग में हलके गहरे रंगों की परतों द्वारा चित्र बनाता है।
वह विदेशी चित्रकार गहन रहस्यवाद के दर्शन और भारतीय ‘वाॅश पेंटिंग‘ का अंतर सहजता से समझकर प्रफुलित था। उसके मन की शंका तथा जिज्ञासा क्षण में प्रत्यक्ष स्थल पर जाकर स्पष्ट हो गई। मैं अपनी चित्रशाला चला आया। दूसरे दिन यहां मालरोड़ शिमला की प्राचीन कला एवं पुस्तकों की शाॅप पर उसके मालिक ‘श्री सूद जी‘ को वह मेरे लिये दो चित्र कला के खरीदे बहुमूल्य काग़ज़ मेरे लिये उपहार स्वरूप कृतज्ञता भाव से दे गया। उसे परा-मनोवैज्ञानिक बातें तथा चित्रकला के गूढ़ रहस्य सब सौ फीसदी सच लगे। उसके परिवार व विद्यालय के मित्र कलाकारों का सही विवरण बताना परामनोविज्ञान के अतिरिक्त असम्भव है।