ऐसी ही एक साहित्यिक गोष्ठी के लिये मैं अपने निवास से चढ़ाई पर धीरे धीरे चल रहा था। आगे एक युवा पर्यटक चितिंत सा जा रहा था। मैंने उसके समीप जाकर पूछ लिया... क्या आप ‘लार्ड ग्रे होटल’ ढूंढ़ रहे हैं। जबकि उस क्षेत्र में और बहुत से होटल हैं।
उसने रूककर एक डायरी निकाली और पढ़कर बोला हां, आप कैसे जान गये। मैंने कहा अभी बताउंगा। वह होटल कुछ दूर सामने ही है।
मैं उसे होटल ले गया। वह अपना सामान रखकर बोला अब बताइये कि कैसे मैंने उसे बताया। मैंने कहा कि मैं एक परा - मनोवैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यकार हूं। इसे समझने का समय नहीं है। मैं एक गोष्ठी में जा रहा हूं। किंतु आपको यह और बता रहा हूं कि आप आस्ट्रेलिया के निवासी हैं।
आपका एक भाई वहीं है। वह इस समय ग्लाइडिंग के लिये किसी हवाई पट्टी जैसे मैदान में खड़ा है। वह पर्यटक चकित रह गया, बोला बिल्कुल ठीक वह इस समय अपना शौक पूरा करने ऐसे ही मैदान में खड़ा होगा। उस समय मेरी निगाहों के सामने वह सारा दृश्य साकार हो गया। वह फिर मिलना चाह रहा था। अपना पता बताया किन्तु मैं उससे दोबारा नहीं मिल पाया।
शिमला का एक युवक जो प्रायः मुझसे मिलता था और घर वालों की बजाय हर कार्य मेरी राय से पूछ कर करता था। उसका नाम था अरूण तनवर। वह सम्पन्न घराने का एक रिटायर्ड वायुसेना के आफिसर का बेटा था जो शिमला में कचहरी में किसी पद पर कार्यरत थे। उसका सारा परिवार मुझसे परिचित था। उसकी एनसीसी कैडेट होने के नाते नौकरी के लिये वायुसेना के लिए साक्षात्कार था। वह प्रातः ही स्लीपिंग ड्रेस में मेरे निवास पर आ कर बोला कि उसका इंटरव्यू है। घर में कुछ कहासुनी के कारण मैं सोने वाली ड्रेस में ही मुझसे पूछने आया है कि इंटरव्यू दूं या नहीं, क्योंकि इंटरव्यू में एनसीसी की ड्रेस पहनना आवश्यक होता है।
इतना विश्वास अपने पर देखकर मैंने कहा कि बिना उचित कपड़ों के भी तुम चुन लिये जाओगे किंतु ध्यान रहे वहां इस प्रकार इंटरव्यू लेने वाले आफिसर बैठे होंगे। प्रवेश द्वार के सामने दीवार पर कोयले से कुछ लिखा होगा। जब उस पर उसकी नज़र पड़े तो उन लिखे शब्दों को मत पढ़ना, फिर मुझे शाम को मिलकर बताना क्या हुआ।
वह निश्चित स्थान पर और समय पर न मिलकर दूसरे दिन मिला और बोला सर मैं इंटरव्यू में चुन लिया गया। अगले दिन उसे जबलपूर शहर में प्रैक्टिकल अपनी क्षमता दिखाने को जाना पड़ेगा उसमें तो मेरी महारत है। मैं अवश्य पास हो जाउंगा।
मैंने कहा कि उस परीक्षा में तुम उतीर्ण नहीं हो सकते क्योंकि तुम समय पर पिछले दिन मुझसे नहीं मिले। कुछ दिन बाद वह मिला और बोला मैं उतीर्ण नहीं हो सका।
वह अपने विवाह से पहले एक विदेशी युवा लड़की से सम्बन्ध होने के कारण उसकी एक संतान अवैध हुई। वह उसके साथ विदेश बिना घर परिवार के बताये चला गया कि वहां प्रेमिका के साथ कुछ दिन बिताकर अभिभावक की सहमति से शादी कर लूंगा किंतु ऐसा नहीं हो सका। उसके पिता ने अरूण को जान से मारने की धमकी दी। विपरीत परिस्थिति की गंभीरता देख कर वह अपनी कथित बीवी बच्चे को छोड़ किसी तरह पानी के जहाज द्वारा लौटकर शिमला आ गया। मुझे सदा की तरह तलाश कर मिला। मैं उसकी कहानी से अनजान उसके साथ एक रेस्तरां में बैठ गया। मैंने पूछा पिछले बीते कई महीनों से वह कहां था। वह सुनकर रोने लगा और बोला मैं बड़ी उलझन में हूं। आप से मिलकर कुछ बताना चाहता हूं।
मैंने उसके पास एक छोटा ब्रीफकेस देखा और पूछा यह साथ में क्यों लाये। वह बोला इसमें मेरा जीवन है और फिर रोने लगा। मैंने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि अब मेरी कोई राय लेना बेकार है। मैं बताता हूं इस ब्रीफ केस में तुम्हारे अवैध बेटे शिशु का फोटो है। तुम जिस देश में भागकर जिस प्रेमिका के साथ गये वहां लकड़ी की सीढ़ियां वाला दूसरी मंजिल पर जानेे लिये बनी थी। वहां ठहरे थे। उसका पिता तुम्हें जान से मारना चाहता था। तभी तुम किसी तरह भाग कर शिमला पहुंचे। यदि यह ठीक है तो अब अपनी बीती कहानी सुनाओ। उसने विस्तार से घटित जैसे मुझे आभासित हुआ उसकी पुष्टि की। मैंने उसके बच्चे का फोटो कहने पर भी नहीं देखा। कुछ देर बैठकर फिर वह कई वर्षो बाद मेरी कहानियों की पुस्तक जिसमें उसकी एक सच्ची कहानी थी, लेने शराब में धुत मेरे निवास स्थान पर आया। उसकी दूसरी शादी शिमला में हो गई और दो बड़े लड़के है। कहीं किसी प्रसिद्ध होटल में मैनेजर हो गया और कुछ महीने पहले अव्यवस्थित दुखी जीवन में उसकी मृत्यु हो गई।
मेरे अनुभव और प्राप्त ज्ञान के अनुसार मानव मन ही सारी क्रिया कलापों का मूल कारण है। शरीर स्थूल, लंबा, चैड़ा होते हुये मन, मस्तिष्क की आज्ञा का पालन करता है। भारतीय दर्शन साहित्य में साधु संतों, वेद, पुराणों में मन का विशेष सर्वव्यापी रोल माना गया। कहा गया मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। मनोविज्ञान, परा-मनोविज्ञान, मेडिकल विज्ञान, शरीर विज्ञान, सभी मस्तिष्क और मन की शक्ति तथा गरिमा को मानते है।
चिकित्सा मनोविज्ञान का एक सचेत सृजनात्मक विद्यार्थी होने के कारण मैं अपने बचपन से ही मन को सर्वोपरि मानता रहा हूं। विश्वविद्यालय में विदेशी प्रोफेसरों और भारतीय विश्व प्रसिद्ध विद्वानों के बीच रहकर चिकित्सा मनोविज्ञान के सिंद्धातों के गहन अध्ययन ने यह सिद्ध कर दिया है। सारे मानव रोगों तथा स्वास्थ्य लाभ का मूल कारण मन है। अनेकों शोधकर्ताओं ने यह सिद्ध किया है।
मेरे अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर मैं प्रायः बुद्धीजीवियों और साधारण लोगों के बीच कहता हूं कि मन की शक्ति को ऐसे समझें जैसे कि विद्युत यानि बिजली एक शक्तिशाली ऊर्जा है। जिसे यदि हीटर में प्रयोग करें तो गर्मी होगी, फ्र्रिज में उपयोग करें तो ठंडक देगी। खाना पकाती है, जलाती है और शीतलता भी प्रदान करती है। बल्व या बिजली की राॅड में रोशनी देती है। इस विद्युत शक्ति के सैंकड़ों उपयोग हैं।
टीवी, रेडियो विद्युत तरंगों से ध्वनि संगीत चलाते, फिर रंगीन चित्र इत्यादि न जाने क्या सुनाई व दिखाई देते हैं । उसे कंट्रोल करने, खोलने, बंद करने, वाॅल्यूम घटाने- बढ़ाने के लिये रिमोट उपकरण का प्रयोग हम सब दैनिक जीवन में करते हैं। मीलों दूर अंतरिक्ष, विश्व में किसी कोने में कोई वार्तालाप कर सकते है। उसकी सूरत जीवन रेडियो कॉन्फ्रेसिंग द्वारा कर सकते है। उसका सिग्नल डायरेक्शन स्थल के कुछ सिधान्तो पर आधारित होता है।
इसी प्रकार मन के अदभुत अदृश्य वायु के समान असंख्य क्रिया कलापों को प्रत्यक्ष महसूस, देखा तथा अनुभव किया जा सकता है। इस के सैकड़ों अनुभव मैं लगभग पांच वर्ष की अल्प आयु से आज 2019 तक लगभग एक शताब्दी से कर रहा हूं। जिसका उद्देश्य मानव मात्र के लिये सामाजिक उद्देश्य है।
मैं अनेकों संत, साधु, योगी, साधकों, मनोवैज्ञानिकों, साहित्यकारों, चित्रकारों, मूर्तिकारों, प्रसिद्ध संगीतकारों, फिल्मी दुनियां, रेडियो और दूरदर्शन के सृजनात्मक फोटोग्राफर, प्रधानमंत्री, मंत्री, राष्ट्रपतियों तथा अनेकों किसान, मजदूर, साधारण भिखारी, कोढ़ी हर आयु के धनी प्रतिभाशाली, गरीब, अमीर, अंतरमुखी तथा बहिरमुखी व्यक्तियों से मिला हूं। प्रसिद्ध जादूगरों के रहस्यमयी कर्तव्य देखे हैं। तांत्रिक, पुजारी, व्यवसायिक, विद्यार्थी, ब्यूरोक्रेट इत्यादि न जाने कितनों के संपर्क में आकर जीवन के सार को समझने का एक छोटा सा सीमित प्रयास व अनुभव किया।
ऐसे महात्माओं से गुफा में गंगा किनारे मिला हूं। पढ़ा है। शैव नागा साधु और रामानन्दी साधकों के अतिरिक्त प्राचीन अजंता, एलोरा, एलीफेटा, मिना़क्षी खजुराहों, मसरूर के वास्तु शिल्प व मूर्ति शिल्प के मरम को समझने का प्रयास ज्ञान के कई धरातलों पर किया तथा दृश्य कला व साहित्य के लाभ सभी माध्यों में सभी आकारों में स्वयं सीखकर कार्यरत हूं।
अध्यात्मिक व भौतिक ज्ञान के विभिन्न रचनात्मक पहलुओं को समझने का प्रयास किया है। कुंडलीचक्र के जागरण, ज्योतिष, हस्तरेखा, सामुद्रिक शास्त्र, फेस रिडिंग इत्यादि। जैसे सशरीर, मन और मंत्र प्रभाव में लिखित शब्दों तथा उच्चारण का प्रभाव बिन शब्द या ध्वनि के चित्रकला व मूर्तिकला द्वारा दर्शक पर प्रभाव उत्पन्न कर देना इत्यादि शामिल है।
भारत में साक्षरता की अलख जगाने वाली गांधी से प्रेरित वैल्दी फिशर अमेरीकन विदुषी तथा समाज सेवी श्रीमती ‘वेलदी फिशर’ ने महात्मा गांधी से प्रभावित अपने पति स्व. फिशर के नाम पर उनके दिवगंत हो जाने पर उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाने के लिये गांधी जी से मुलाकात की। उस समय उतर प्रदेश के राज्यपाल विद्वान के. एम. मुंशी थे। उन्होंने इलहाबाद उतर प्रदेश में भारत की निरक्षर जनता को साक्षर बनाने के लिये एक संस्थान की परिकल्पना अनुसार स्थापना की। किंतु किसी कारणवश उसे वहां से स्थानांतरित कर लखनऊ में साक्षरता निकेतन ‘ लिटरेसी हाउस ’ की स्थापना की जो अभी तक है।