उद्घाटन से एक दिन पूर्व शिमला सचिवालय के प्रांगण में काफी सुरक्षा थी। बिना प्रमाण पत्र के उस स्थल पर, जहां दीवार पर लगे मूर्ति म्यूराल का उद्घाटन होना था, प्रवेश वर्जित था। कुछ सरकारी वास्तुकार इंजीनियर तथा अधिकारी स्थल का जायजा ले रहे थे। मैं ; मूर्ति म्यूराल को निर्मित करने वाला मूर्तिकार द्ध सम्बंधित व्यवस्था देख रहा था। इतने में न जाने कहां से मेरे मन में आया.... एक नागा साधु को इस समय यहां आना चाहिये। कुछ क्षण में मेरी सामने प्रवेश द्वार पर नजर गई तो देखा एक अधेड़ उम्र का नागा साधु मेरी ओर चला आ रहा है। मुझे अचरज हुआ। फिर भी मैंने सोचा सम्भवतः यह साधारण घटना है। किन्तु वह कुछ अन्य खड़े लोगों की ओर न जाकर सीधा मेरे पास आया। मैंने उसे प्रणाम कर कहा कि महात्मा जी मैं अभी व्यस्त हूं। आप दूसरी ओर खड़े उन लोगों से मिलिये। मैं पांच मिनट बाद आपसे बात करूंगा। वह नागा साधु बड़े आत्मवि़श्वास से बोला, मुझ़े उनसे नहीं मिलना है। आपने मुझे याद किया तो मैं यहां आ गया। मुझे पुष्ट हो गया कि कुछ क्षण पहले मैंने ही सोचा कि काश यहां एक नागा साधु आ जाये।
मैंने उससे कुछ बातें की और कहा कि मेरे द्वारा पास की दीवार पर बनी मूर्ति म्यूराल है। इसका अगले दिन उद्घाटन है। मैं इस अवसर पर कुछ विशेष देखना चाहता हूं।
उस साधु ने अपने बगल की छोटी सी थैली से एक जंगली विचित्र दवा के कैप्सूल के समान कुछ बड़ा फल यह कहते हुये दिया कि जंगली दुर्लभ रूद्राक्ष है। इसको विशेष विधि द्वारा रखकर मूूर्ति म्यूराल के उद्घाटन पर चमत्कार देखना। फिर पूछा... मेरे मिलने का पता क्या है।
मैंने कुछ दान देकर कहा कि आप जहां याद करेंगे, मैं वहीं मिलूंगा। वह बोला कि मैं उसे अपना पता न बताउं, वह मुझे जब चाहेगा भारत में कहीं भी हूं, ढूढ़ लेगा और चला गया।
यह विचित्र घटना अध्ययन का विषय है। इसका सम्बंध पूर्वाभास तथा Mind Over Matter अर्थात् मन की शक्ति द्वारा किसी पदार्थ पर असर होना है।
अगले दिन राज्यपाल के सलाहकार द्वारा उद्घाटन बड़ी धूमधाम से हुआ। पूरा प्रांगण जन मानस शिमला सचिवालय के सैकड़ों कर्मचारियों, अधिकारियों और विशेष प्रशासनिक अधिकारियों से भरा था। खाने पीने का काफी प्रबंध सरकार की ओर से था। मीडिया भी जोश के साथ कार्यरत था।
मैं अपने परिवार के साथ मुख्य अतिथि के साथ चाय पी कर मेज पर बैठ कुछ बात कर रहा था। मैं बीच में चाय छोड़ कर बाहर एक विशेष व्यक्ति को इशारे से आमंत्रित कर एक मिनट में फिर लौट आया।
मुख्य अतिथि ने पूछा... कहां अचानक चले गये थे। मैंने कहा कुछ परा-मनोवैज्ञानिक कार्य था। उनकी जिज्ञासा थी, क्या होती है यह रहस्यमयी विधियां। मैंने अपने द्वारा बनी शिमला रिज पर स्थापित एक बहुचर्चित मूर्ति का चित्र दिखाकर उन्हें कहा... अभी आप व्यस्त है। इस मूर्ति के पास हमारी मुलाकात होगी, तब बात करूंगा। समारोह समाप्त हुआ दर्शकों और प्रशंसकों की भीड़ थी। आकाशवाणी शिमला के संवाददाता प्रेस वाले सुबह लगभग 11 बजे के बाद 3 बजे तक मेरी वार्ता की रिकाॅर्डिंग के लिये प्रतिक्षा कर मेरे निवास पर आये थे।
दूसरे दिन रविवार को मैं उन्मुक्त भाव से सोचता, नितान्त अकेला शिमला के रिज मैदान पर जाकर लौट रहा था। दूर तक चारों ओर एक भी व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा था। जबकि वह स्थल पर्यटकों और स्थायी जनता से सदा भरा रहता है।
जब मैं अपनी विचित्र चर्चित मूर्ति ‘हिमबाला’ के पास आया तो देखा सामने से वही मुख्य अतिथि अपनी धर्म पत्नी सहित मेरी ओर आकर वहीं मिले, जहां मैंने पिछले उद्घाटन वाले दिन एक स्थापित मूर्ति का फोटो दिखाकर कहा था कि वहां वह मिलेंगे, तब बात होगी।
वह हैरान थे मैं भी चकित था कि राज्यपाल जैसी गरिमा वाले अधिकारी बिन लाव लश्कर पैदल कैसे मेरे कथनानुसार पूर्वाभास द्वारा मिले। बस अभिवादन हुआ। मैंने स्थापित फोटो वाली मूर्ति की तरफ इशारा कर कहा कि आप घुमिये, फिर कभी मिलंूगा और वहीं से चला आया।
एक दो दिन के पश्चात कई प्रशासनिक अधिकारियों का मेरे पास फोन आया कि वहां राज्यपाल के सलाहकार मुझसे मिलना चाहते हैं मैं अपने मिलने का समय बताउं। मैंने विसमय मुद्रा से कहा.. कहां मिलूं बताइये। उत्तर था, स्वयं मैं उनसे बात करूंगा। फोन पर उन्होंने मेरे निवास स्थान का पता पूछा और कहा कि वह स्वयं मुझसे मिलने अपनी धर्मपत्नी सहित मेरे निवास स्थान पर आयेंगे।
कुछ देर बाद मेरे निवास पर वह दोनों पधारे। मैंने स्वागत कर चाय इत्यादि पेश की। वह दोनों इतने उत्सुक थे कि मैं कुछ परा-मनोवैज्ञानिक अनुभव उससे शेयर करूं। मैंने उनके हाथ में पहनी अंगूठियों को देखकर कहा कि वह उन्हें किसी संत ने दी है। उस दम्पति से काफी बातें कर मैंने कहा कि मेरे निवास के पास ही दूसरी ओर एक शिमला के सुप्रसिद्ध सेठ मेलराम जी सूद की कोठी है वहां चलिये।आपको आपके साथ घटी घटना सबके सामने बताउंगा और कुछ दिखाउंगा भी।
वहां जाकर मैंने उन्हें बताया कि उनकी धर्मपत्नी सपरिवार गढ़वाल के किसी मन्दिर के दर्शन करने जा रही थीं। वह थककर बैठ गई और परिवार के सारे सदस्य आगे चले गये। तब उन्होंने अपनी इष्ट देवी को याद किया। तुरन्त उसी समय चांदी के एक मन्दिर का दृश्य उनके सामने दिखाई दिया, जिसके वह लोग दर्शन करने जा रहे थे। मेरा यह पूर्व घटित मन्दिर दर्शन की घटना तथा उनके जन्म की तिथि बिल्कुल सत्य निकली। वहां लगभग 15/20 लोग मेला राम सूद के घर बैठे थे।