हिमानचल के कला, भाषा संस्कृति तथा स्वास्थ्य मंत्री रहे कुल्लू के प्रसिद्ध सर्वप्रिय शायर ‘श्री लाल चन्द प्रार्थी‘ हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डा. वाई एस परमार की कैबिनेट में थे। मैं यहां के राजकीय महाविद्यालय में कला तथा मनोविज्ञान का प्रवक्ता था। उनके आग्रह पर मैंने उन्हें सामने बैठाकर उनकी व्यक्ति मूर्ति बनाना आरम्भ किया। फिर उसे पूरा करने के लिये अपने कला कक्ष निवास पर ले आया। वे कला तथा शायरी के कारण मेरा बड़ा आदर करते थे। कुछ दिनों बाद उनसे परा-मनोवैज्ञानिक पारिवारिक जैसा सम्बंध हो गया।
मैं जिस समय उन्हें याद करता था, वह मुझसे उसी स्थान पर मिल जाते थे। वह एक कुशल विशिष्ट राजनेता और भौतिकवादी होते हुए भी मेरी नज़र में अलग प्रकार के अध्यात्मिक मानववादी सरल मिलनसार शख्सियत के मालिक थे। एक दिन उन्होंने मेरे निवास स्थान पर अपनी गाड़ी भेज कर मुझे अपने मंत्री निवास पर बुलाया। मैंने ड्राइवर से पूछा कि मुझे अकस्मात क्यों बुलाया है। वह बोला... साहब पता नहीं... बस बोले प्रोफ़ेसर साहब यानि मुझे फौरन अपने साथ लेकर आ जाओ। यह मुझे ठीक नहीं लगा... किन्तु ड्राइवर के यह कहने पर कि कुछ विधायक और उनके क्षेत्र के गणमान्य व्यक्ति भी वहां बैठे आपका इंतज़ार कर रहे हैं।
मैं तुरन्त उनकी गाड़ी से मंत्री श्री लालचंद प्रार्थी के निवास स्थान पर पहुंचा। मुझे देखकर मंत्री श्री प्रार्थी जी हंसी का ठहाका (जैसा उनका स्वभाव था) लगाते हुये बड़ी आत्मियता के साथ बोले... आईये प्रोफेसर साहब हम लोग आपका इन्तजार कर रहे हैं। यह सब चाय पर आपसे मिलना चाहते है।
मैंने पूछा कि आपकी मूर्ति अभी पूरी तरह नहीं बनी है, आपने मुझे क्यों बुला लिया। उस समय बंजार कुल्लू के विधायक तथा अन्य लोग यहां बैठे थे। उन विधायक के बेटे को उन्होंने कुल्लू मेले में लैंडस्केप बनाते कागज़ पर देखा तो सोचा क्यों ना आप से शिक्षा निर्देश लिया जाये। इसे चित्र कला का शौक है। इसने किसी से सीखा नहीं है।
मैं इसे इसके पिता बंजार ‘कुल्लू‘ के विधायक के साथ इसे इस शर्त पर शिमला ले आया कि आप से मिलाउंगा।
मैंने कहा कि उस युवक को यहां के कला राजकीय कला महाविद्यालय में प्रवेश दिलवा दीजिये वह चित्रकला विभाग है। मंत्री जी बोले कि आपका मनोवैज्ञानिक तरीका है। वहां ऐसे कलाकार नहीं है। इसके पास इतना समय यहां रहकर चित्रकला सीखने का भी नहीं है। मैंने सहसा कहा फिर तो आपको इसे लेकर मेरे निवास के कला कक्ष पर आना चाहिये था। इतना कहना था कि सारे सज्जन वह युवक प्रार्थी जी और विधायक चाय छोड़ उठ खड़े हुये और मेरे साथ मेरे निवास पर आये। मैं भी आश्चर्य चकित रह गया। सोचा मैंने शायद अपनी धुन में कुछ गलत बोल दिया।
मंत्री जी के यहां उठकर सारे लोग मेरे कला कक्ष पर आ गये। मंत्री जी बोले युवक अपने द्वारा बनाये चित्र मुझे दिखाने को साथ में लाया है। आप इस युवक बेटे से बात कीजिये। हम सब चलते है, फिर मिलेंगे। उनके जाने के बाद मैं लगभग 6 बजे सांय उठकर मालरोड़ की तरफ अपने दैनिक कार्यक्रम के अनुसार चल पड़ा और युवक से पूछा कि वह शिमला में कहां ठहरा है। उसने बताया कि उसके पिता को विधायक निवास ग्रैंड होटल नामक भवन (माल से पहले रास्ते ) में मिला है। मैंने कहा ठीक है, मैं एक रेस्तरां में बैठकर विस्तार से बात करूंगा। यह अपने द्वारा बनाये चित्रों को कागज़ वाले बंडल को ग्रैंड होटल के निवास में रखकर आ जाओ, मैं द्वार पर खड़ा प्रतीक्षा करूंगा। वह युवक रोने लगा और पैर छूंता हुआ बोला कि मैंने उसका चित्रित कार्य नहीं देखा। मंत्री प्रार्थी जी के आश्वासन पर आपसे सीखने आया था। उसे सांत्वना देते हुये मैंने कहा मैं अवश्य सिखाउंगा मैंने बिना चित्रों का बंडल खोले बनाये हुये चित्रों को देख लिया है।
उसने विश्वास न करते हुये कहा बंडल तो बंद ही रहा। मैंने उससे कहा मैं इसका प्रमाण देता हूं, कि तुम्हारी शादी तुम्हारे गांव से अमुक दिशा में एक महीने में हो जायेगी। यह बात केवल तुम्हारे विधायक पिता जी (श्री शबाब जी) को पता है। अन्य तुम्हारी माता या परिवार के किसी सदस्य को तुम्हारे सिवाय मालूम नहीं है। तुम अपने सेब के बागीचों में जिस जगह चित्र (लैंड स्केप) बनाते हो, वहां एक खिड़की से अमुक चित्र की ओर देखकर बनाते हो। यही प्रमाण है कि मैं ने तुम्हारे द्वारा बनाये चित्र देख लिये है।
वह चकित था। उसे विश्वास हो गया कि जो मैं कह रहा हूं सब ज्यों का त्यों सत्य है। फिर मैं रेस्तरां में जाकर और कुछ बातें बताता रहा।
मैं केवल 15 मिनट रोज उसकी राह में पड़ने वाले ग्रैंड होटल जाता और 10 मिनट प्रतिदिन कला निर्देश देता। वह शिमला में 10 दिन ठहरा और मैंने उसे लगभग 3 वर्ष की लैंडस्केप चित्रण कला सिखा दी। वह जाते हुये निराश था कि वह कैसे बंजार कुल्लू जाकर मेरे बिना सीखेगा। मैं तब शिमला के राजकीय कला महाविद्यालय से पोस्टकार्ड में रेखाकंन द्वारा कार्ड डाक द्वारा भेजकर बताता था कि उसने जो पहाड़ बनाया गलत है इसमें कहां कौन सा रंग भरे इत्यादि, जैसे मैं शिमला में बैठा उसके बनाये जाने वाले चित्र देख रहा हूं। एक महीना बाद उसकी शादी हो गई। उसके पश्चात वह अपनी मां और बहु के साथ शिमला मिलने आया।
मुझे ये आश्चर्य है कि यह सब कैसे घटित होता है। यह परा-मनोवैज्ञानिक अजीब घटना पूर्वाभास तथा दूरदर्शन की है। साथ ही कह सकते हैं, सशरीर न सही मन के द्वारा बैठे स्थान पर जो कभी नहीं देखा पहुंचने की है।
प्रो. एस. सी. सक्सेना का परिवार सहित सामूहिक चित्र