"नीरज तुम भी जानते हो और मैं भी ..!""क्या…यही ना हम एक नहीं हो सकते..!""हां..पर सोचो ना..!हम अलग ही कहां है..?"ये प्यार में अपनापन हमेशा जोड़े रखेगा हमें..!""कहना आसान है नेहा ..जीवन कैसे गुजरेगा..?""
लोगो के रिलेशनशिप से ये पता चलता है,कि वो किस तरह के इंसान है । किसी ने ये कहा था —रिश्ते टूटने के वजह ...बड़े झगड़े नहीं होते हैं ।बल्कि ...छोटी - छोटी गलतफहमियां होती हैं , जिनका पता भी नह
तुम कलयुग की 'राधा' हो, तुम पूज्य न हो पाओगी, कितना भी आलौकिक और नैतिक प्रेम हो तुम्हारा, तुम दैहिक पैमाने पर नाप दी जाओगी, तुम मित्र ढूँढोगी...वे प्रेमी बनना चाहेंगे... तुम आत्मा सौंप द
ये बात सच है कि सोशल मीडिया के कारण लोगो तक जानकारी आसानी से पहुच रही है ।दुनिया के हर कोने की खबर अब सोशल मीडिया ने सरल कर दी है । यूट्यूब,व्हाट्स्प,टेलीग्राम,फ़ेसबुक की मदद से दूर बैठे रिश्तेदा
भारत में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है । पहले शहर व नगरो में वाहन होते थे लेकिन अब गाँवों में वाहन की संख्या बढ़ती जा रही है चौबीस घंटे हर क्षेत्र में वाहनों से हानिक
व्यसन (बुरी लत)पृथ्वी पर जीवन के आविर्भाव के वैज्ञानिक और आध्यत्मिक दोनों ही दृष्टिकोण हैं । इसमें एक बात तो तय है कि एक जीव मात्र से जीवन के निर्माण तक का सफर मनुष्यता की सबसे महान उपलब्धियों में से
करवा चौथ चार दिन की बारिश के बाद आज धूप खिली है।अक्टूबर के महीना, हल्की हल्की ठंड के बीच हल्की हल्की धूप कलेजे को ठंडक पहुचा रही थी।भाभी,चलो न मार्किट तक, वो टेलर के पास कपड़े पड़े हैं,लेकर आ
पहनावाएक महिला को सब्जी मंडी जाना था। उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मंडी की और चल पड़ी। तभी पीछे से एक रिक्शा वाले ने आवाज़ दी: "कहाँ जायेंगी माता जी...?'' महिला ने ''नहीं भैय्या'' कहा त
जो भी हैं रोग साध्य जग में, संभव उनका उपचार मगर,जो हैं असाध्य, उनके विषाणु से बचना बहुत जरूरी है।समुचित है शाकाहार,सब्जियां,अन्न, दाल, फल, कन्द मूल,हैं जहां नहीं उपलब्ध, मांस खाना उनकी मजबूरी है।।...य
विश्वास की शक्ति ऐसी,देखती नहीं कोई प्रमाण।मन से मन में जुड़े हुए,होते हैं आधार प्रमाण।।विश्वास की शक्ति ऐसी,मन में विचारों का दर्पण।मन में आसक्त विचारों से,सहमत हो मंथन का दर्पण।।विश्वास की शक्ति ऐसी
एक नई उड़ान---------------------------------------------------- क्या आप केतकी को जानते हैं? थोड़ा याद कीजिए। नहीं याद आ रही तो चलिए हम ही बताते हैं। पिछले दिनों मैं चर्चित मॉडल
आँखो में चमक चेहरे पे रौनक़ आ गया । बच्चे उछल-कूद करने लगे लो दिसम्बर आ गया । ये रोज का पढना और पढ़ाना , टीचर की वही नसीहत व आशियाना , मन बोझिल बड़ी देर से राह का ताकना, आखिरकार बिन पायल के झ
वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर
कितने रावण मारे हमने, कितने हर वर्ष जलाए।फिर भी छुपे मुखौटों में, रावण पहचान न पाए।।...उस रावण ने तो फिर भी, मर्यादा कभी न तोड़ी।कलयुग के रावण ऐसे, दुधमुंही तलक ना छोड़ी।।...ये चरित्र के हीन,मानसिक रो
मानव शरीर को यदि मैं अनेक रोगों का पिटारा कहूं तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि मानव शरीर जीवन भर स्वस्थ नहीं रह पाता, उसे समय-समय पर कई शारीरिक रोग घेर ही लेते हैं। इसके अलावा वह अपनी जीवन की आप
मानवीय पूँजी क्या है? मानव पूंजी शब्द एक कार्यकर्ता के अनुभव और कौशल के आर्थिक मूल्य को दर्शाता है। मानव पूंजी में शिक्षा, प्रशिक्षण, बुद्धि, कौशल, स्वास्थ्य, और अन्य चीजें जैसे वफादारी और समय की पा
मधुर व्यवहार और मीठा बोलना एक कला है... जो हरेक के पास नहीं होता... बोलने की कला श्रीराम से सीखो... जहां रावण ने कड़क जबान से अपने सगे भाई विभीषण को खो दिया... वहीं श्रीराम ने मीठी जुबान से दुश