उतार चढ़ाव सी भरी जिंदगी
कर ले ईश्वर की हम बन्दगी
दो दिन है खुशियों का मेला
बाकि दिन रहते ठेलम ठेला।।
मंजिल सफलता की देखी
सीढ़ी दर सीढ़ी कैसे चढ़ी
दर बदर की ठोकरे खाकर
वह असफलता किसने देखी।।
सीढ़ीयो का उपयोग करके
हर कोई आगे बढ़ जाता है
मंजिल पर खड़े आसमा देख
खुद को बादशाह मान लेता है।
अक्सर तरक्की के नशा में
वह इंसानियत भूल जाता है
वक्त आने पर वह वही शख्स
उन सीढ़ियों से ही गिर जाता है।
मंज़िल तक जरूर पहुँचना
सीढ़ियों को कभी मत भूलना
यह जाने का रास्ता दिखाती हैं
लौटने का इंतजार भी करती है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।