बेटी की सीख( नाटक)
पात्र परिचय
1. रघुराज : रिटायर अधिकारी
2. राजेश्वरी देवी: रघुराज की पत्नि
3. बंसत कुमार: रघुराज का बेटा 4. माधुरी बसंत की पत्नि
5 मंजू: रघुराज की बड़ी बेटी
6. अंजु: रघुराज की छोटी बेटी
(प्रथम दृश्य
(घर में रघुराज और राजेश्वरी देवी बैठे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर बंसत अखबार पढ़ रहा की तलाश कर रहा है। कुछ देर बाद माधुरी तीन कप चाय लेकर कमरे में प्रवेश करती है।)
माधुरी : मम्मी चाय लीजिए और पापा आप भी लीजिए। राजेश्वरी देवी ( मुंह फुलाकर) उधर रख दो हमारे बंसत की तो किस्मत ही खरा मिली देखो बेचारा कितना परेशान है।
माधुरी- आप लोग चिन्ता मत करो सब ठीक हो जायेगा। रघुराज सब ठीक हो जायेगा यह कहना जितना आसान उतना होता नही है। वैसे भी तुम लोगो को कुछ शर्म तो आती नहीं है।
बसंत कुमार : पापा कोशिश कर रहा हूं। हर रोज आफिस में जा रहा हूं इण्टरव्यू देने लेकिन कही काम नहीं बन पा रहा है।
रघुराज- हम तो बेटा कहते कहते थक गये हैं कि कोई दुकान खोल दो और अपना काम काज सम्भालो लेकिन कोई जब हमारी सुने तो।
राजेश्वरी देवी : आप भी तो कैसी बाते कर रहे हैं, दुकान खोलने के लिए जगह और रुपयों की भी तो जरूरत होती है।। उस की व्यवस्था कहाँ करेगा बेचारा पहले ही परेशान है।
बसंत: पापा इतना रूपया भी तो नहीं है कि हम दुकान खोल सकें। अगर आप थोड़ी बहुत मदद कर सकते है तो काम हो जायेगा।
रघुराज- बेटा मेरे पास तो इतना नहीं हैं कि तुम्हारे लिए दुकान भी खोल सकू और परिवार का खर्चा भी कर सकू। फिर अभी दोनो बेटियों की शादी भी करनी है।
राजेश्वरी देवी: बहु आप अपने पापा के लिए बोलो कि बसंत की थोड़ी मदद कर दे जिस्से की अच्छी दुकान चल सके और हम लोगों की परेशानी दूर हो सके। अगर हम खोलेंगे तो हमें अभी दो बेटियों को पढ़ाना है और शादी भी करनी है।
माधुरी- मम्मी आप लोग वैसे सही कह रही हो लेकिन ये भी आजकल थोड़ी परेशानी में है। बड़ा भाई तरह नौकरी के लिए परेशान है और छोटे भाई को इंजनीयरिंग करानी है। रघुराज हम क्या करें बेटी की शादी से पहले सोचना चाहिए था कि दामाद कुछ नहीं करता तो थोड़ा बहुत बैंक बहु बेटी के नाम कर दें।
राजेश्वरी देवी: अब देखो न मिसेज वर्मा की बेटे की शादी हुई तो लड़की वालों ने चार लाख कैश दिये और एक सफारी कार भी दी है। बहु भी बड़ी समझदार है। घर भी सभालती है और नौकरी भी करती है।
रघुराज: अरे हमारी तो किस्मत ही खराब थी जो रिश्ता भी किया से दो कौड़ी भी नसीब नही हुई है और हमारे मेहमानों की बेइज्जती अलग हुई।
माधुरी : आप लोग ऐसा मत कहो जी मेरे बापूजी से हो सका उन्होने अपनी हैसियत से भी ज्यादा दिया। अगर बंसत की नौकरी नहीं लगती तो इसने मेरा और मेरे मायके वालो का क्या दोष है।
राजेश्वरी देवी: अरे बहू एक तो दहेज लेकर नहीं आयी और जब लाने को कह रहे हैं तो उसे भी नहीं मान रही हो उल्टा हमें ही कह रही हो। बसंतअपनी बहु को समझाओ।
रघुराज : बहु आप चाहती हो कि आप लोगों की परेशानी दूर हो जाती है तो अपने पापा को कह दो कि बसंत की दुकान के लिए एक लाख रूपये की व्यवस्था कर दे, उसका काम बन जायेगा।
माधुरी- पापा आप लोग मेरी किस्मत को यो दोष दे रहे थे खुद तो आप इन्हें कुछ कर रहे हैं और न ही बसंत कुछ करना चाहता है।
बसंत: माधुरी आप ज्यादा बोलने लगी हो आपको मेरे पापा के साथ फालतू बोलने का अधिकार नहीं है आप इस घर की बहु हो,बहु बनकर रहो और हो अगर आपके पापा ने दहेज में कुछ दिया होता तो हमे आज परेशानी नहीं होती।
माधुरी- आप लोग इतने लालची और निर्दयी है यह बात हमें पहले ही पता होती तो मैं आपसे बिलकुल भी शादी नहीं करती।
(यह सुनकर बसत गुस्से में आ जाता है और माधुरी को दो चार थप्पड़ मार देता है। माधुरी रोते हुए यहाँ से चली जाती है)
नाटक का दूसरा दृश्य अगले अंक में।