शहर के व्यापार संगठन के अध्यक्ष किशन चंद जी के बेटे का चयन आईपीएस ऑफिसर के पद पर हो गया था। किशन चंद की पत्नी निर्मला देवी ने मंन्नत मॉगी थी कि यदि उनके बेटे का चयन हो जाता है तो वह मंदिर में बड़ा भण्डारा करवायेगी। निर्मला देवी ने पंण्डित जी से अच्छा दिन निकलवाकर भण्डारे का दिन तय कर लिया। भण्डारे का न्यौता सभी रिश्तेदारों और परिचतों को दिया गया। भण्डारा शहर के प्रतिष्ठित व्यापार के संगंठन के अध्यक्ष होने से शहर के सभी व्यापारियों को भी भण्डारे पर निमत्रित किया गया। शहर के विधायक, पार्टीयों के सभी बड़े नेता को भी बुलावा था। शहर के बड़े कैटरिंग वाले को इसका ठेका दिया गया था। कैटरिंग वाले को स्पष्ट कह दिया गया था कि भोजन में कोई कमी नहीं होनी चाहिए और व्यवस्था सही रहनी चाहिए।
भण्डारे के दिन किशन चंद परिवार के साथ मंदिर पहुॅच गये, मंदिर में पूजा अर्चना हुई। ईधर मंदिर के प्रांगण में टेण्ट लगा हुआ था और दूसरी तरफ तरह तरह के पकवान बन रहे थे। भण्डारे में शहर के सभी नामी लोगों का आना शुरू हो गया। किशनंचद जी के पूरे परिवार को बेटे के चयन तथा विशाल भण्डारा करने पर सभी पर बघाई देने रहे थे। भण्डारा 11 बजे से शुरू हो गया था। मॅहगी मॅहगी गाड़ियों में सभी नामी लोग भण्डारा खाने आ रहे थे। सभी लोग भण्डारा छक रहे थे।
कूड़ा बीनते हुए तीन चार बच्चे मंदिर की तरफ आ गये, बच्चों ने भण्डारा होता देखा तो वह वहॉ पर रूक गये। भण्डारे में आये हुए कुछ रईसों को वह बच्चें वहॉ पर खड़े होते अच्छे नहीं लग रहे थे। उन्होंने किशन चंद जी को कहा कि इन बच्चों को यहॉ से भगाओ, देखो कितने गंदे हैं, इनको देखकर खाने का मन नहीं कर रहा है। उधर कुछ महिलायें भी निर्मला देवी को कहने लगी कि इन बच्चों को यहॉ से हटाओ तभी हम भण्डारे का प्रसाद ले पायेगें।
किशन चंद और उसके परिवार वालों ने समाज की बातों को देखते हुए बच्चों को वहॉ से जाने को कहा। इतनी देर में किशन चंद जी के पुराने मित्र ताराचंद जी भी वहॉ आ गये। वह धार्मिक प्रवृत्ति के ज्यादा थे। उन्होंने किशन चंद जी से कहा कि आप इन बच्चों को यहॉ स ेमत भगाओ, इनको अलग से खाना दे दो, इतना सुनते ही शहर के एक नामी व्यक्ति ने कहा कि किशन चंद जी हमको भिखारी समझ रखा है जो इन कूड़े बीनने वाले बिखारियों के साथ खाना खिलाओगे, हम यहॉ से जा रहे हैं, और इस बात पर वहॉ पर गरमा गरमी का माहौल हो गया, किशन चंद जी ने सबसे अनुरोध किया कि आप ऐसा ना करें और भण्डारा खाकर जरूर जायें। किशन चंद जी के अनुरोध पर तथाकथित सामाजिक रईस लोग रूक गये।
तारा चंद जी उन बच्चों के लिए अलग से प्लेट में भोजन लेकर जा रहे थे, और उनको बडे ही प्रेम से उनके बीच बैठकर खुद भी भण्डारे का प्रसारद ग्रहण कर रहे थे। यह देखकर किशन चंद जी उनके पास पहुॅचे और उनको कहा कि ताराचंद जी आप यहॉ क्या कर रहे हो, वहॉ हमारे साथ चलो न भण्डारे का प्रसाद लेने। ताराचंद ने कहा कि मैने तो इन बच्चों के साथ बैठकर प्रसाद ले लिया है। किशन चंद की पत्नी ने कहा कि आप भी भाई साहब इन बच्चों के साथ कहॉ बैठ गये, आप प्रतिष्ठित लोग हैं, वहॉ चलकर भोजन करिये।
ताराचंद ने कहा कि भाभी जी भण्डारा किसी अमीर गरीब को देखकर नहीं किया जाता है, भण्डारा तो खुला किया जाता है, सही कहॅू तो भण्डारा जरूरत मंद भूखे लोगों के लिए ही करने के लिए किया गया है। यह जो आपके भण्डारे में मॅहगी मॅहगी गाड़ियों में आये हैं, ना यह खाने के लिए नहीं बल्कि यह देखने आये हैं कि किशन चंद जी के भण्डारे में कुछ कमी रह जाय और वह इस कमी को गाते फिरते रहें, इनको भूख नहीं है, इनके पेट तो वैसे ही भरे हुए हैं, भरे हुए पेट को खिलाकर तुम्हें भण्डारे का पुण्य नहींं मिलेगा, यदि आप सच्चे दिल से भण्डारा करवाना चाहते हैं, तो ऐसे जरूरत मंद बच्चे जो भूख मिटाने के लिए यह कूड़ा उठाने के लिए मजबूर हैं, जिनकी कई रातें बिना खाये ही गुजर जाती हैं। यदि उनके लिए रोज भण्डारा नहीं कर सकते हो तो कम से कम मंदिर के दरवाजे पर से तो उन्हें भगाओ मत। किशनचंद और उनका परिवार ताराचंद की बात सुनते रहे, उनके पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं है।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।