बलवंत अपनी नौकरी से शाम को घर आया तो उसके लिए गॉव से साली के बेटे की शादी का कार्ड आया हुआ था। बलवंत ने कार्ड खोला और पढा, वहॉ पर सब कार्यक्रम लिखे थे लेकिन न्यूतेर नहीं लिखा था, थोड़ा अचिंभत सा हुआ तब तक उनका छोटा बेटा अमित आ गया। चश्मा नहीं लगाने के कारण कार्ड पढने में नही आ रहा था, उसने अमित को कार्ड देते हुए कहा कि देख बेटा मेरी ऑख क्या सचमुच कमजोर हो गयी या फिर इसमें लिखने मे गलती हो गयी।
अमित ने पूरा कार्ड पढा, गलत कुछ नहीं लिखा था, उसने कहा पापा कार्ड में तो सब सही लिखा है, आपकी ऑखे अभी बिल्कुल ठीक हैं, यह सुनते ही बलवंत ने कहा बेटा शादी में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण न्यूतेर यानी मेहमानों के आवाभगत का होता है, यहॉ पर कहीं भी न्यूतेर नहीं लिखा है, अमित ने हॅसते हुए कहा कि अब लोग न्यूतेर नहीं लिखते हैं, उसकी जगह पर महिला संगीत और शाम को कॉकटेल के साथ मेंहदी हो गयी है, आपको कॉकटेल और बारात दोनो मे बुलावा आया है। यह सुनते ही बलवंत काका ने कहा कि हॉ बेटा अब न्यूतेर तो कॉकटेल और मेंहदी रस्म में रस्म अदायगी के लिए रह गये। शहर में तो यह सब होता ही था लेकिन अब गॉव में भी मेंहदी और कॉकटेल। लेकिन उम्मीद थी कि घर के ऑगन में नीचे बैठकर खाना खाने को तो मिलेगा ही।
बलवंत ने अमित को बताया कि हमारे समय की शादी में न्यूतेर की बड़ी भूमिका होती थी, असली मेहमान नवाजी और मेहमानदारी तो न्यूतेर के दिन ही देखी जाती थी। एक हाथ पर लोटा या चौठी (लकड़ी का बर्तन ) जिसे दैणी कहा जाता है, उस पर घी लेकर दुल्हन और दूल्हे का मामा आता था, तो सब समझ जाते थे कि यह मामा पक्ष के लोग हैं, हाथ पर भेली या कुछ और लेकर आते थे तो उससे करीबी रिश्तेदार का पता लगता था। औजी मेहमान के आने पर ढोल दमों बजाता था, यही न्यूतेर होता था। न्यूतेर के दिन सभी मेहमानों की खूब खातिरदारी की जाती थी, यदि खातिरदारी नहीं की गयी तो मेहमान खासकर फूफा जी और जीजा जी के साथ समधी जल्दी नाराज हो जाते थे, भाई विरादरी भयात कितनी है, यह सब न्यूतेर के दि नही ऑकी जाती थी। अमित ने कहा पिताजी आप सही कह रहे हो लेकिन अब सब बदल चुका है, जैसे ढोल की थाप वैसे नाचो, अब वह जमाना नहीं रह गया है। बलवंत ने कहा कि बेटा बात तो सही है, अब जैसे जमाना है, वैसे ही चलना है, हमने तो रिश्तेदारी निभाने जाना है, इसी बहाने घर जाना भी हो जायेगा।
कुछ दिन बाद बलवंत और उनकी पत्नी जस्सू को लेकर दिल्ली से शादी में घर की ओर चल दिये,। दिन में पहॅुच गये, अभी एक दो मेहमान ही आये हुए थे, दिन का खाना खाया और आराम करने लग गये, लगभग तीन बजे महिला संगीत शुरू हो गया, आस पडौस की महिलायें सब आ गयी। पहले घर गॉव में शादी के दिन गॉव के युवा कोई गेट बनाता था तो कोई बंदनवार लगाता था, तीन चार बजे से लोग सब्जी काटने लग जाते थे, लेकिन यहॉ अभी कुछ नहीं हो रहा था, लगभग चार बजे बाईक में दो लोग आये बलवंत ने समझा मेहमान होगें लेकिन वह पास के ही बाजार के हलवाई थे, उन्होनें फटाफट खाना बनाने की तैयारी करनी शुरू कर दी, बलवंत पेड़ के नीचे बैठकर यह सब देख रहा था। अंदर डिंडयाळी में महिला संगीत चल रहा था, टेंट वाले टेंट लगा रहे थे, अभी गॉव की महिलायेंं ही महिला संगीत में आयी इुई थी, शाम को दो चार मेहमान आने लग गये, हल्का हल्का अॅधेरा हो गया तो ढोल वादक और मसक बीन वाला भी आ गया, बहुत दिन से मसकबीन की धुन नहीं सुनी थी तो बलवंत के कानों में वह धुन अच्छी लगी।
ईधर शाम को दूसरे ऑगन मेंं कुछ युवा कॉकटेल की तैयारी कर रहे थे, बलवंत भी वहॉ पहुॅच गया, वहॉ पर बोतलों की बात हो रही थी, शराब और राजनीति ऐसी चीज है, जिसकी चर्चा हर कहीं सुनने को मिल जाती है। लगभग 10 पेटी से अधिक शराब और बियर की व्यवस्था की गयी थी, जिस शादी में जितनी अधिक शराब होगी वह शादी उतनी ही प्रसिद्ध होगी, जब तक दो चार लड़ाई झगडे, गाली गलौज ना हो, एक दूसरे से लड़े झगड़े ना तब तक शादी अपूर्ण मानी जाती है, यह बात वहॉ पर एक बुजुर्ग आदमी कह रहा था। बलवंत सोचने लगा कि वाकई में नकल करने के मामले में हम लोगों ने तरक्की कर ली है। ईघर महिला संगीत समाप्त हो गया और दो चार मेहमान और आने लग गये, इतने में बलवंत के साला और उनका पूरा परिवार आ गया, वह तो ससुराल पक्ष के थे तो पहचान लिये, वरना यहॉ तो सब एक समान लग रहे थे, पहले तो पता चल जाता था कि यह दूल्हे के मामा, फूफा आ गये।
कुछ देर बाद बाईक में दो लड़के आये और बैग लेकर सीधे दूल्हे को खोजने लगे, पता चला कि यह दोनों मेंहदी लगाने आ रखे हैं। फोटो ग्राफर भी फोटो ले रहा है, डीजे पर पंजाबी गीत तो कभी फुरकी बांद तो कभी फ़वा बागा रे गीत की धुन बज रही है।
ढोल वाले ने एक दो बार हल्का सा बजाया औऱ एक किनारे बैठ गया, ईधर अब गाँव के लोग भी आने लगे, लाइट लगी है हर तरफ, अब गैस वाला जमाना चला गया, बंदनवार लगाने की जंझट खत्म, सब कुछ पैसे के ऊपर है, सब सुविधाएं मिल जाती है।
लगभग 8 बजे आँगन में कॉकटेल पार्टी शुरू हो गयी है, हर कोई खुले होकर पैग लगा रहा है, अब कोई किसी की अदब नहीं कर रहा है। इतने में बलवंत का साला भी आ गया, साले ने कहा जीजा जी चलो आप भी बैठो, आपके लिये मैंने आपकी ब्रांड लेकर आया हूँ, वह साले की मुँह की ओर देखते हुए बोला तुम्हे कैसा पता कि मैं यह ब्राण्ड लेता हूँ, साले ने कहा जीजा जी बस पता लग गया।
एक दो खास लोगों को लेकर बलवंत और उनके साले एक कमरे में चले गए, वँहा दौर शुरू हो गया, बलवंत को हल्का नशा चढ़ना शुरू हो गया, वह अपने समय के किस्से सुनाने लगा।
बलवंत ने बताया कि जब उसके गाँव मे शादी हो रही थी तो तब वह 17 साल का था, उसके साथियों ने उसे कच्ची पहली बार पिलाई थी, वह उस कच्ची को पीने के लिये गौशाला में गए थे, तब आधी रात को आकर चुपचाप सो गए थे, कोई भी अपने से बड़ो के सामने नहीं पीता था, पीते सब थे लेकिन बड़ो का लिहाज करते थे, लेकिन अब सब ओपन हो गया है।
इधर रात्रि भोजन के लिए नीचे पंगत में बैठ गये, बलवंत ने भी खाया, थोड़ा ढोल दमो की थाप पर नाचना चाह रहे थे, लेकिन पता चला कि ढोल वादक सोने के लिये जा चुके है, सब महिला पुरूष डीजे पर नाच रहे है, पंजाबी गाने पर तो समा बंध रही है। ईधर दूल्हे की मेहंदी लगनी शुरू हो गयी है, दो लड़के स्पेशल बुलाये गए हैं, सब लोग उनसे बारी बारी मेहंदी लगवा रहे हैं, पंडित जी भी घर चले गए हैं, बस दो चार झांझी अभी डीजे पर नाच रहे हैं, बलवंत जिस उद्देश्य से आया था, वह सब अधूरा रह गया था, शेष भाग अगले अंक में।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।